बेबी
‘बेबी’ फिल्म किसी बच्चे या बेबी पर नहीं है, यह आतंकवाद पर बनी फिल्म है और ‘बेबी’ उस आतंकवाद को खत्म करने के लिए एक मिशन है. दर्शकों को पिछले वर्ष आई फिल्म ‘हौलिडे’ याद होगी. वह फिल्म भी आतंकवाद के खात्मे पर थी और उस में भी अक्षय कुमार ने एक मिशन के तहत आतंकवादियों का सफाया किया था. यह फिल्म भी ठीक उसी प्रकार की है. दोनों फिल्मों की कहानियों में कई समानताएं हैं.
इस फिल्म की कई विशेषताएं हैं. एक तो फिल्म की कहानी और पटकथा काफी कसी हुई है, दूसरे, फिल्म की गति काफी तेज है, कहीं भी फिल्म स्लो नहीं होती. फिल्म का संपादन इतना चुस्त है कि दर्शक दम साधे सीटों पर जमे रहते हैं. फिल्म में सिर्फ आतंकवाद का मुद्दा ही नहीं है, एक अंडर कवर एजेंट की जिंदगी को भी दिखाया गया है. अंडर कवर एजेंट के दिल में देश की सुरक्षा का जनून भरा होता है. वह मरने से नहीं डरता. हालांकि उसे पता होता है कि उस के पकड़े जाने पर उस के देश की सरकार उसे पहचानने से भी इनकार कर देगी, फिर भी वह अपने देश के लिए जीजान तक लगा देता है. इस फिल्म के अंडर कवर एजेंट के घर में उस की पत्नी भी है. हर बार वह अपनी पत्नी को झूठी कहानी सुनाता है.
नीरज पांडे की यह कहानी देशभक्ति से ओतप्रोत है. 26 नवंबर, 2008 को मुंबई में हुए आतंकवादी हमले के बाद कुछ अफसरों की एक टीम बनाई जाती है. उस मिशन का नाम ‘बेबी’ रखा जाता है. इस टीम के मुखिया हैं फिरोज (डैनी). एक जांबाज अफसर अजय सिंह टीम का नेतृत्व करता है. शुक्लाजी (अनुपम खेर) टीम में टैक्नीशियन है. इस टीम में एक महिला एजेंट प्रिया (तापसी पन्नू) भी है और एक मजबूत कदकाठी वाला जय सिंह राठौड़ (राणा दग्गूनाती) भी है. इन का काम आतंकियों की पहचान करना और उन के मनसूबों को विफल करना है. अजय सिंह को एक खूंखार आतंकवादी बिलाल खान (के के मेनन) की तलाश है. मिशन बेबी की शुरुआत इस्तांबुल से होती है. मिशन के सदस्यों को पता चलता है कि आतंकी धर्म के नाम पर किसी खास समुदाय के लोगों को बरगला कर अपने साथ कर रहे हैं और उस समुदाय के लोग अपने देश पर भरोसा खोते जा रहे हैं. अजय सिंह अपने साथियों के साथ मिल कर बिलाल खान को मार गिराता है और आतंकवादियों को बरगलाने वाले एक धार्मिक नेता (यह किरदार हाफिज सईद जैसा लगता है) को गिरफ्तार कर भारत वापस लौटता है.
फिल्म की यह कहानी शुरू होते ही दौड़ लगाती है और अंत में आतंकवादियों के मरने के बाद जा कर रुकती है. इस फिल्म के निर्देशक नीरज पांडे अक्षय कुमार के साथ ‘स्पैशल-26’ में काम कर चुके हैं. इसलिए उन्हें पता था कि इस फिल्म की मुख्य भूमिका सिर्फ अक्षय कुमार ही कर सकता है, क्योंकि ‘स्पैशल-26’ में वे अक्षय की काबिलीयत को देख चुके थे और अक्षय ने भी निराश नहीं किया है. पूरी फिल्म में उस के ऐक्शन सीन भरे पड़े हैं. उस ने अपनी ऐक्ंिटग से अपने फैंस को खुश किया है. फिल्म का क्लाइमैक्स जानदार है. अक्षय के अलावा अनुपम खेर और तापसी पन्नू ने भी काफी ऐक्शन किए हैं जिन्हें देख कर मजा आता है. बाकी कलाकारों का काम भी अच्छा है. हर कलाकार अपने काम में व्यस्त नजर आता है. फिल्म में लव सीन और कौमेडी की गुंजाइश बिलकुल नहीं थी. फिल्म का गीतसंगीत प्रभावित नहीं करता. छायांकन बढि़या है. आबूधाबी के रेत के टीले खूबसूरत लगते हैं.
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तेवर
फिल्म ‘तेवर’ के तेवर घिसेपिटे हैं. जहां तक फिल्म के नायक अर्जुन कपूर की बात है तो यह फिल्म उस के पिता बोनी कपूर ने बनाई है. इसलिए यह तो पक्का है कि फिल्म के हर फ्रेम में अर्जुन ही होगा. फिल्म में एक गीत है, ‘मैं हूं सुपरमैन, सलमान का फैन’, तो जनाब, इस बौलीवुडिया अर्जुन को निर्देशक ने ‘दबंग’, ‘बौडीगार्ड’ के सलमान खान और ‘सिंघम’ के अजय देवगन की तरह दे दनादन फाइट करते हुए दिखाया है. ‘तेवर’ तेलुगू फिल्म ‘ओक्काडू’ की रीमेक है. फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है जो झकझोरे. ‘तेवर’ की कहानी उत्तर प्रदेश की है जहां बाहुबलियों का सरकार और पुलिस पर दबदबा बना रहता है. मथुरा शहर का बाहुबली गजेंद्र सिंह (मनोज वाजपेयी) गृहमंत्री का भाई है. उसे एक पत्रकार की बहन राधिका (सोनाक्षी सिन्हा) को देखते ही उस से प्यार हो जाता है. राधिका उस के प्यार को ठुकरा देती है तो गजेंद्र सिंह उस के पत्रकार भाई की सरेआम हत्या कर देता है. राधिका का पिता डर कर उसे मथुरा से बाहर भाग जाने को कहता है.
राधिका बस स्टैंड पहुंचती है तो गजेंद्र सिंह वहां पहुंच कर उसे जबरदस्ती उठा कर ले जाने लगता है. वहीं पर आगरा का पिंटू शुक्ला (अर्जुन कपूर) राधिका को गजेंद्र सिंह के चंगुल से छुड़ा कर भगा ले जाता है. गजेंद्र सिंह के बहुत से गुंडे पिंटू और राधिका के पीछे लग जाते हैं. भागमभाग लगी रहती है और पिंटू सब की धुनाई करता रहता है. पिंटू और राधिका के बारे में जब पिंटू के पिता एस पी (राज बब्बर) को पता चलता है तो वह पिंटू को गजेंद्र से पंगा न लेने को कहता है. गजेंद्र राधिका को अपने साथ ले जाता है परंतु पिंटू पिता की हिरासत से भाग कर गजेंद्र और उस के गुंडों से अकेले ही भिड़ जाता है. गजेंद्र पिंटू पर गोली चलाने ही वाला होता है कि उस का भाई उसे अपने प्यादे से इसलिए मरवा डालता है क्योंकि गजेंद्र ने सरेआम अपने बड़े भाई गृहमंत्री को थप्पड़ मारा था. अर्जुन और राधिका का मिलन होता है. फिल्म की गति तेज है. अर्जुन कपूर से ज्यादा मनोज वाजपेयी ने प्रभावित किया है. सोनाक्षी सिन्हा की ऐक्ंिटग कामचलाऊ है. राज बब्बर ने अपना प्रभाव छोड़ा है. फिल्म का निर्देशन कुछ हद तक अच्छा है. गीतसंगीत साधारण है. फिल्म में एक आइटम सौंग भी है जो श्रुति हसन पर फिल्माया गया है. फिल्म का छायांकन अच्छा है. मथुरा, आगरा, दिल्ली के अलावा कुछ और शहरों में भी शूटिंग की गई है.
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डौली की डोली
‘डौली की डोली’ एक कौमेडी फिल्म है, जिस में सोनम कपूर ने अपनी चुलबुली अदाओं से दर्शकों को हंसाने की कोशिश की है. ‘भाग मिल्खा भाग’ में एक सीधीसादी लड़की का रोल करने के बाद उस ने ‘खूबसूरत’ में अपने चुलबुलेपन से दर्शकों को चौंकाया और ‘इंजन की सीटी पे म्हारो बम डोले’ गाने पर टल्ली हो कर खूब धूमधड़ाका किया. ‘डौली की डोली’ में भी उस? ने ‘खूबसूरत’ जैसी ऐक्ंिटग ही की है. इस फिल्म में सोनम कपूर ने लुटेरी दुलहन का किरदार निभाया है. कुछ वर्ष पहले देश में लुटेरी दुलहन के किस्से अखबारों में पढ़ने को मिलते थे. यह दुलहन शादी वाली रात को ही घर के सभी लोगों को बेहोश कर घर का सारा कीमती सामान ले कर चंपत हो जाती थी. निर्देशक अभिषेक डोगरा ने इसी विषय पर यह हलकीफुलकी कौमेडी फिल्म बनाई है.
फिल्म की कहानी घिसीपिटी और धीमी है. निर्देशक दर्शकों को बांधे रखने में नाकामयाब रहा है. कहानी डौली (सोनम कपूर) की है. वह इंस्पैक्टर रौबिन सिंह (पुलकित सम्राट) से प्यार करती थी. अचानक कुछ ऐसा हुआ कि रौबिन चाहते हुए भी डौली से शादी नहीं कर पाया. अब डौली का मकसद रह जाता है, शादी करो और ससुराल वालों को लूट कर अगली सुबह रफूचक्कर हो जाओ. इस काम के लिए वह एक गिरोह से मिलती है. इस गिरोह में नकली बाप, नकली भाई और नकली दादी है. एक फोटोग्राफर भी है.
डौली पहले एक हरियाणवी नौजवान सोनू शेरावत (राज कुमार राव) से शादी करती है. वह उस के परिवार वालों को बेहोश कर कीमती सामान ले कर भाग जाती है. उस के बाद वह एक पंजाबी युवक मनोज चड्ढा (वरुण शर्मा) के परिवार वालों को चूना लगाती है. तभी इंस्पैक्टर रौबिन उसे गिरफ्तार कर लेता है. वह कभी डौली से प्यार करता था. डौली उसे भी अपने जाल में फंसाती है और उसे भी ठग कर फरार हो जाती है. अभिषेक डोगरा के निर्देशन में बनी यह पहली फिल्म है. उस ने फिल्म में इमोशंस भी डालने की कोशिश की है. उस ने दुलहन बनी सोनम कपूर को हर दृश्य में दूल्हे और उस के परिवार वालों को नशीला दूध पिलाते हुए दिखाया है. यह बात हजम नहीं होती. क्या सभी लोग इतने बेवकूफ होते हैं कि बहू के हाथ से दूध का गिलास ले कर गटागट पी जाएं? फिर भी छोडि़ए इन बातों को, कौमेडी जो है. सोनम कपूर कई दृश्यों में खूबसूरत लगी है, खासकर वरुण शर्मा के साथ शादी के मौके पर लहंगा पहने हुए. पूरी फिल्म उसी पर फोकस्ड है. राजकुमार राव का हरियाणवी भाषा में बोलना अच्छा लगता है. डौली के भाई की भूमिका में जीशान अयूब का काम भी अच्छा है. इस से पहले वह ‘रांझणा’ में अपनी अदाकारी दिखा चुका है. पुलकित सम्राट को देख कर तो चुलबुल पांडे की याद ताजा हो आती है. फिल्म में मलाइका अरोड़ा पर एक गरमागरम आइटम डांस भी डाला गया है. फिल्म में एक और किरदार दादी का बड़ा ही रोचक है. वह सिर्फ एक ही डायलौग बोलती है, ‘बेटी दे दी, सबकुछ दे दिया.’ इस के अलावा फिल्म में कुछ और रोचक प्रसंग भी हैं जैसे लुटेरी दुलहन द्वारा अपनी सास की ब्रापैंटी भी चुरा कर ले जाना. फिल्म का गीतसंगीत असरदायक नहीं है. छायांकन अच्छा है.