क्या आप ने कभी गौर किया है कि हास्य की विभिन्न विधाओं, फिर चाहे वह चुटकुला हो, कार्टून हो, हास्य कविता हो या व्यंग्य हो, में अकसर महिलाओं को ही निशाना क्यों बनाया जाता है, क्योें उन्हें ही मजाक का पात्र बनाया जाता है? आप कोई भी टीवी चैनल, अखबार या पत्रपत्रिका उठा कर देखिए, महिलाओं पर ही अधिक जोक्स, व्यंग्य देखने को मिलते हैं. औफिस में भी जहां महिलापुरुष एकसाथ काम करते हैं, हंसीमजाक में महिलाओं के फैशन, उन की चालढाल, उन की बातचीत, उन की शारीरिक बनावट पर व्यंग्य किए जाते हैं. और तो और, सोशल नैटवर्किंग साइट्स के चैट बौक्स या मोबाइल के जरिए भी ऐसे ही जोक्स भेजे जाते हैं.
जैंडर आधारित भेदभाव
अंगरेजी में कहावत है, ‘मैन आर फ्रौम मार्स, वीमेन आर फ्रौम वीनस’ यानी पुरुष मंगल ग्रह से और महिलाएं शुक्र ग्रह से आई हैं. यानी दोनों अलगअलग हैं फिर चाहे वे शारीरिक रूप से हों, मानसिक रूप से या स्वभाव के तौर पर. पेनसिल्वेनिया विश्वविद्यालय से जुड़े अमेरिकी वैज्ञानिकों द्वारा स्त्री व पुरुषों के मस्तिष्क पर किए गए अध्ययन के अनुसार, महिला व पुरुष दोनों की मस्तिष्क संरचना भिन्न होती है जिस से उन के अलगअलग परिस्थितियों में अलगअलग व्यवहार व प्रतिक्रिया को समझा जा सकता है. शायद इसी आधार पर महिलाएं व्यंग्य का शिकार अधिक होती हैं.
महिलाएं और फैशन
निसंदेह प्रकृति ने स्त्रियों को ऐसा बनाया है कि वे सुंदर दिखना चाहती हैं और अपनी खूबसूरती को बरकरार रखने के लिए कुछ भी कर गुजरती हैं. सर्दियों में महिलाएं बिना शाल के शादी अटैंड करती हैं. मैरिज गार्डन के ओपन लौन की सर्द हवा में, जहां मर्दों के दांत किटकिटाने लगते हैं वहां ये वीर बालाएं एक्स्ट्रा रुपए दे कर दरजी से बनवाए ब्लाउज के यू कट व डीप नैक को दिखाने के लिए स्वेटर नहीं पहनतीं. 4 घंटे के फंक्शन में उन्हें अपनी चारों ड्रैसें पहननी होती हैं. हर नई ड्रैस पहनने से पहले यह कन्फर्म करना होता है कि पहले वाली सब ने देखी या नहीं. ऐसी बहादुर वीरांगनाओं का हर साल 26 जनवरी को सम्मान होना चाहिए. कैसा लगेगा जब घोषणा होगी कि पिंकी कुमारी ने अदम्य साहस, अटूट इच्छाशक्ति और अद्भुत पराक्रम का परिचय देते हुए भीषण शीत लहर के बीच इस सीजन की 7 शादियां बिना शौल व स्वेटर के अटैंड कीं. नारीशक्ति का यह रूप अद्भुत है जिस के लिए वे बधाई की पात्र हैं.
शौपिंग एडिक्शन
शौपिंग की एडिक्ट महिलाएं खरीदारी का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहतीं. इस के पीछे भी उन की खूबसूरत दिखने और तारीफ पाने की चाहत झलकती है. अपने इस शौक को वे पति पर इमोशनल अत्याचार कर के पूरा करवाती हैं. शौपिंग से परेशान पति अपनी पत्नी की शौपिंग करने को टालने के लिए नित नए बहाने ढूंढ़ता रहता है-
त्नी : सुनिए जी, मुझे एक नई साड़ी दिला दीजिए, प्लीज.
पति : लेकिन तुम्हारी अलमारी तो साडि़यों से भरी पड़ी है, फिर नई क्यों?
पत्नी : वे सभी साडि़यां तो महल्ले वालों ने देख ली हैं.
पति : हम साड़ी क्यों खरीदें. महल्ला ही बदल लेते हैं.
बातूनी स्वभाव
गप करने में सब से आगे रहती हैं महिलाएं. फिर चाहे वे औफिस में हों, पड़ोस में हों या मार्केट में. इसीलिए उन के ऊपर जोक्स बनते हैं. जैसे एक सिंगल लाइनर चुटकुला- रेल का महिला डब्बा वह होता है जो इंजन से भी ज्यादा आवाज करता है. इसी तरह एक अन्य प्रसिद्ध चुटकुला जिस में पत्नी अपने पति से कहती है, सुनो, मैं 2 मिनट में पड़ोसिन से मिल कर आ रही हूं. आप आधे घंटे बाद पानी भर लीजिएगा. सिर्फ अपनी कहने वाली और पति की न सुनने वाली पत्नी पर एक अन्य जोक-
पति : एक लेखक ने लिखा है कि पति को भी घर के मामलों में बोलने का हक होना चाहिए.
पत्नी : देखो, वह बेचारा भी लिख ही पाया, बोल नहीं पाया.
ऐसा नहीं है कि पुरुषों पर जोक्स या व्यंग्य नहीं बनते लेकिन जो बनते हैं वे भी ऐसे पुरुषों पर बनाए जाते हैं जो पत्नी से डरते हैं या घर के वे काम करते हैं जो महिलाओं के लिए निर्धारित हैं, जैसे रसोई में खाना बनाना, कपड़े धोना, बच्चे संभालना, बरतन मांजना आदि. ये सभी काम कम पुरुष ही करते हैं और बहुमत ऐसे लोगों का है जो इन कामों को करने में अपनी तौहीन समझते हैं.
खानपान और महिलाएं
जिस समाज में औरतें आज भी रसोई की बागडोर अपने हाथ में संभालती हैं, वहां भी महिलाओं पर जोक्स बनते हैं फिर चाहे वे उन के खानेपीने के शौक को ले कर हों या कुकिंग में उन के माहिर होने को ले कर-
पत्नी : खाने में क्या बनाऊं– इटैलियन, इंडियन, कौंटिनैंटल या चायनीज?
पति : पहले तुम बना लो, नाम तो शक्ल देख कर रख लेंगे.
पुरुष प्रधान समाज
समाज में जहां पुरुषों के लिए महिलाओं पर अपना रोब जमाना शान की बात समझी जाती थी वहां अब महिलाएं घर से बाहर निकल कर दोहरी जिम्मेदारी संभालने लगी हैं. ऐसे में पुरुषों को महिलाओं से दबने या उन्हें बराबरी का दरजा देने को उन के डरपोक व कमजोर होने के रूप में देखा जाता है और उस पर भी जोक्स बनते हैं. उदाहरण के तौर पर, पतियों की भारी मांग पर एक नई ऐप लौंच की जा रही है ‘डर’. इस में आप को सिर्फ ‘वाइफ’ कहना होगा और यह अपनेआप सारी वैबसाइट्स बंद कर देगी, चैट छिपा देगी, सभी स्पैशल फोल्डर छिपा देगी और सब से अच्छा फीचर यह कि यह ऐप अपनेआप ही आप की पत्नी की तसवीर को मोबाइल का वालपेपर बना देगी. इन जोक्स का विश्लेषण कुछ इस तरह भी किया जा सकता है कि या तो पत्नियां शक्की स्वभाव की होती हैं या फिर पति आशिकमिजाज होते हैं जो हासपरिहास का कारण बनते हैं.
महिलाओं को देर से समझ आता है मजाक
कैलिफोर्निया स्थित स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के अनुसार, किसी व्यंग्य, चुटकुले या कार्टून को समझने के लिए महिलाएं, पुरुषों की तुलना में अपने मस्तिष्क के अधिक हिस्से का इस्तेमाल करती हैं. उन्हें चुटकुले सुनने या कार्टून देखने के बाद पुरुषों की अपेक्षा थोड़ी अधिक देर में हंसी आती है. लेकिन अच्छी पंचलाइन का वे पुरुषों की तुलना में ज्यादा लुत्फ उठाती हैं. इस अध्ययन का उद्देश्य खुलासा करना था कि हमारा हास्य बोध कैसे काम करता है. अध्ययन के तहत महिलाओं को कार्टून दिखा कर उन की प्रतिक्रिया ली गई जिस में पाया गया कि महिलाओं ने मजेदार चुटकुलों पर प्रतिक्रिया जाहिर करने में कुछ ज्यादा वक्त लिया. शायद इसीलिए ‘रहने दो, तुम्हें समझ नहीं आएगा’ या ‘अरे, तुम तो मजाक भी नहीं समझती हो’ जैसे वाक्य महिलाओं के लिए आम सुने जाते हैं. इस का एक नमूना पेश है :
पत्नी : सुनो जी, अखबार में खबर है कि एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी को बेच डाला.
पति : ओह, कितने में?
पत्नी : एक साइकिल के बदले में. कहीं तुम भी तो ऐसा नहीं करोगे?
पति : मैं इतना मूर्ख थोड़े ही हूं, तुम्हारे बदले में तो एक कार आ सकती है.