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खेल खिलाड़ी

श्रीनिवासन की फजीहत 
देश की सब से बड़ी अदालत सर्वोच्च न्यायालय ने बीसीसीआई के अध्यक्ष एन श्रीनिवासन को हटा कर उन की जगह क्रिकेटर सुनील गावस्कर को आईपीएल-7 होने तक अंतरिम अध्यक्ष बनाने के आदेश दे दिए. इस से पहले अदालत ने कहा था कि आईपीएल-6 में सट्टेबाजी और स्पौट फिक्ंिसग मामले में निष्पक्ष जांच के लिए श्रीनिवासन पद छोड़ दें लेकिन वे अंतिम समय तक जुगाड़ भिड़ाने में लगे रहे कि कुरसी हाथ से निकलनी नहीं चाहिए और जमे रहे. पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने उन के मनसूबे पर पानी फेर दिया.
मामला यों था कि आईपीएल-6 में सट्टेबाजी और स्पौट फिक्ंिसग मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस मुकुल मुद्गल कमेटी बनाई थी जिस ने फरवरी माह में सौंपी अपनी रिपोर्ट में बीसीसीआई के अध्यक्ष एन श्रीनिवासन और चेन्नई सुपरकिंग के मालिक गुरुनाथ मयप्पन के अलावा कुछ क्रिकेटरों के नाम भी उजागर किए थे. श्रीनिवासन तभी संदेह के घेरे में आ गए थे जब उन्होंने अपने दामाद गुरुनाथ मयप्पन को एक समिति गठित कर के उन्हें क्लीनचिट दे दी और बीसीसीआई के अध्यक्ष पद से कुछ दिनों के लिए दूर भी रहे. इस ड्रामे के बाद जब मामला थोड़ा शांत हो गया तो अपना दबदबा दिखाते हुए उन्होंने फिर से कुरसी थाम ली.
दरअसल, खेल संघों को राजनीति का अखाड़ा बना दिया गया है और दादागीरी इतनी कि पूछिए मत. चाहे कोई भी खेल संघ हो, इन दिनों हर खेल संघ के ऊंचे पदों पर वही काबिज हैं जिन के पास पैसा और पावर है. इन पदों पर ऐसे लोग जुड़े हुए हैं जिन का खेल से दूरदूर तक वास्ता नहीं लेकिन इतना है कि किसी भी खिलाड़ी को अपनी उंगलियों पर नचाने की कूबत रखते हैं. उन में से श्रीनिवासन भी एक ऐसी ही शख्सीयत हैं लेकिन देश की सर्वोच्च अदालत ने उन की हैसियत बता दी. इस के लिए वे खुद ही जिम्मेदार हैं.
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला स्वागत योग्य है. यह फैसला मनमानी करने वाले क्रिकेट प्रशासन के लिए एक सबक है. कुंडली मार कर बैठे श्रीनिवासन को यह समझना चाहिए था कि इस से न सिर्फ उन की फजीहत हो रही थी बल्कि बीसीसीआई को भी इस का हिस्सा बनना पड़ रहा था. खैर, कुछ भी हो, श्रीनिवासन की छवि धूमिल जरूर हुई है.
सुनील गावस्कर को फिलहाल अध्यक्ष बनाना सही है क्योंकि वे अनुभवी खिलाड़ी हैं और इस से न सिर्फ भारतीय क्रिकेट का भला होगा बल्कि क्रिकेट की बेहतरी के लिए भी अच्छा होगा.
 
60 मिनट का रोमांच
हौकी खेल का समय अब 70 मिनट के बजाय 60 मिनट का होगा. अंतर्राष्ट्रीय हौकी महासंघ यानी एफआईएच ने यह फैसला लिया है. इस खेल में पहले 35 मिनट के 2 हाफ होते थे लेकिन अब 15-15 मिनट के 4 क्वार्टर होंगे. पहले और तीसरे क्वार्टर के बाद 
2 मिनट का बे्रक भी होगा जबकि हाफ टाइम के बाद 10 मिनट का बे्रक वैसा ही रहेगा जैसा पहले था.
समय में बदलाव इसलिए किए गए हैं ताकि यह खेल और रोमांचक बने. अंतर्राष्ट्रीय हौकी महासंघ के अध्यक्ष रोआंद्रो नेगे्र कहते हैं कि हम खेल को रोमांचक बनाना चाहते हैं. बे्रक के दौरान प्रशंसकों को रिप्ले देखने और उसे सही आकलन करने का समय मिलेगा.
इस के अलावा कमेंट्री करने वाले हौकी प्रशंसकों को खेल की बारीकी को सही तरीके से समझा सकेंगे. इस से खिलाडि़यों को भी रणनीति बनाने में मदद मिलेगी.
सवाल है कि क्या 60 मिनट का हौकी मैच कर के ज्यादा रोमांचकारी बन जाएगा? किसी भी मैच में रोमांच पैदा होता है खिलाडि़यों के जोशखरोश, खेलने के तरीके से वे खेल के प्रति कितने समर्पित जनून की हद तक खेल रहे हैं.
क्रिकेट मैच को ज्यादा रोमांचकारी बनाने के लिए 20 ओवर तक सीमित कर दिया तो लोगों के इस खेल के प्रति दीवानेपन का कारण खिलाडि़यों का उत्साह, दिलचस्प अंदाज, खेल के लिए बेहतरीन बंदोबस्त, तैयारियां आदि बातें रही हैं.
देश में हौकी इतने सालों से उपेक्षा का शिकार रहा. न सरकार और न ही खेल संघ ने इस ओर ध्यान दिया. एक समय में नंबर वन रही भारतीय हौकी रसातल में पहुंच गई.
आज हौकी को रोमांचकारी बनाना है तो पहले खिलाडि़यों को जोशीला, पूरी तरह प्रशिक्षित, संतुष्ट करना जरूरी है. यहां बात आती है पैसों की. क्रिकेट से आधा भी पैसा हौकी पर खर्च किया जाए तो हालात काफी सुधर सकते हैं. वरना लस्तपस्त, थकेहारे, अनट्रेंड खिलाडि़यों को 70 मिनट के बजाय 60 मिनट के लिए भी खेल के मैदान में उतारने पर दर्शकों को उन्हें झेलना भारी पड़ेगा. बोरियत के 10 मिनट भी बहुत होते हैं, फिर यहां तो बात 60 मिनटों की है.

पाठकों की समस्याएं

मैं 28 वर्षीय विधवा हूं और मेरा एक 8 वर्षीय बेटा भी है. पिछले दिनों मुझे कालेज के एक लड़के से प्यार हो गया है. मेरे घर पर उस का आनाजाना है और घर वालों के साथ उस का व्यवहार भी अच्छा है. वह मुझ से विवाह करना चाहता है लेकिन डरता है कि कहीं मेरे घर वालों से विवाह की बात करने पर वे उस से नाराज न हो जाएं और विवाह के लिए इनकार न कर दें. आप ही बताइए, मैं क्या करूं?
जब उस लड़के का आप के परिवार वालों से व्यवहार अच्छा है और वे उस के बारे में अच्छी तरह जानते हैं तो उन से विवाह के बारे में बात करने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए. लेकिन फिर भी वह डरता है तो वह अपने किसी दोस्त या नजदीकी रिश्तेदार के जरिए यह बात आप के परिवार वालों से कर सकता है. वैसे, आप के परिवार वालों को भी इस रिश्ते से कोई परेशानी नहीं होगी क्योंकि इस से आप का ही घर बसेगा.
मेरे विवाह को 10 वर्ष हुए हैं. पति की उम्र 31 वर्ष है. समस्या यह है कि पति को सैक्स करने की इच्छा महीने में 2-3 बार ही होती है. मैं जानना चाहती हूं कि क्या इस उम्र में सैक्स की इच्छा कम हो जाती है या पति के साथ अन्य कोई समस्या है?
उम्र का सैक्स की इच्छा से लेनादेना नहीं होता. अगर आप के पति की सैक्स इच्छा कम हो रही है तो इस बारे में उन से खुल कर बात करें, उन्हें औफिस की कोई टैंशन तो नहीं, वे ज्यादा थक तो नहीं जाते या फिर कहीं आप की तरफ से तो कोई कमी नहीं है. इन सब कारणों को जानने की कोशिश करें. इस के अलावा पति की सैक्स इच्छा को जाग्रत करने के लिए नएनए तरीके अपनाएं. इस पर भी बात न बने तो किसी सैक्सोलौजिस्ट से संपर्क करें.
मैं अविवाहित युवती हूं. 4 वर्ष पूर्व मेरी सगाई हुई थी और इस दौरान मंगेतर के साथ मेरे शारीरिक संबंध भी बन गए थे लेकिन किन्हीं कारणों से मेरा वहां से रिश्ता टूट गया और अब मेरी कहीं और शादी हो रही है. मुझे डर है कि क्या सुहागरात के दिन मेरे होने वाले पति को मेरे पूर्व शारीरिक संबंधों का पता चल सकता है? मुझे क्या करना चाहिए सही सलाह दीजिए.
शादी से पूर्व मंगेतर के साथ शारीरिक संबंध बना कर आप ने बहुत बड़ी गलती की लेकिन अब जब आप की कहीं और शादी हो रही है तो इस बारे में अपने होने वाले पति को कुछ भी न बताएं.
जहां तक पति को आप के पूर्व शारीरिक संबंधों के बारे में पता चलने की बात है, उन्हें इस बारे में तब तक पता नहीं चलेगा जब तक आप स्वयं न बताएं या उन्हें कहीं और से न पता चले. इसलिए बेझिझक, बिना डरे अपने वैवाहिक जीवन की शुरुआत करें.
मैं अपने ससुराल के माहौल से काफी परेशान हूं. सासससुर मेरी छोटी सी गलती पर भी पति के कान भरने लगते हैं और पति, बिना मुझ से कुछ जानेसमझे, गालीगलौज करने लगते हैं. बाद में जब मैं सफाई देती हूं और उन्हें पता चलता है कि मेरी कोई गलती नहीं थी तो वे ‘मैं बात नहीं बढ़ाना चाहता’ कह कर टाल देते हैं. मैं पति को इस बारे में समझासमझा कर थक चुकी हूं. कभीकभी मुझे लगता है कि कहीं मैं ही तो ज्यादा इमोशनल नहीं हूं. समस्या सुलझाने में मेरी मदद कीजिए.
आप की बातों से लगता है कि आप के पति कान के कच्चे हैं, शायद इसीलिए आप के विरुद्ध कोई भी बात सुन कर आगबबूला हो जाते हैं और आप से दुर्व्यवहार करने लगते हैं. इस समस्या के समाधान के लिए पहले आप अपने ससुराल वालों से खुल कर बात करें कि आखिर क्यों वे आप की छोटी सी गलती को भी झगड़े का कारण बना देते हैं जिस के कारण आप का रिश्ता तनावपूर्ण हो रहा है.
उन से जानें कि क्या आप की कोई बात उन्हें नापसंद है जिस की वजह से वे ऐसा करते हैं. उस बात को जान कर स्वयं में बदलाव लाएं. इस के अतिरिक्त आप पति का अच्छा मूड देख कर उन से भी इस बारे में बात करें, अपने गुणों से उन्हें खुश करने की कोशिश करें. जब आप दोनों पतिपत्नी के बीच प्यार होगा तो ससुराल वाले भी आप के प्रति अपना व्यवहार बदल लेंगे.
मैं 27 वर्षीय अविवाहित हूं. सेना में नौकरी करता हूं. मुझे 23 वर्षीय बंगाली लड़की से प्यार हो गया है. वह भी मुझे बेहद प्यार करती है. हमारे बीच शारीरिक संबंध नहीं बने हैं. हम दोनों विवाह करना चाहते हैं. कुछ समय पहले उस ने मुझे बताया कि 5 साल पहले उस का विवाह हो चुका है और उस का 4 वर्षीय बेटा भी है, पर अब वह अपने पति से अलग अपने मायके में रहती है, क्योंकि उस के पति का किसी और से अफेयर है. उस लड़की का कहना है कि मैं उस से शादी का फैसला सोचसमझ कर करूं. मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि मैं क्या निर्णय लूं. सही सलाह दीजिए.
यह अच्छी बात है कि उस लड़की ने आप से अपने बारे में कोई भी बात छिपाई नहीं है, और आप दोनों ने विवाह करने से पूर्व शारीरिक संबंध न बना कर भी समझदारी का काम किया है. अब अगर आप दोनों विवाह करना चाहते हैं तो पहले उस लड़की का अपने पति से तलाक लेना जरूरी है.
इस के अतिरिक्त आप इस बारे में अपने परिवार वालों को भी लड़की के बारे में पूरी बात बता दें और उन की राय भी ले लें कि क्या वे एक विवाहित व एक 4 साल के बच्चे की मां को अपनी बहू बनाने को तैयार हैं ताकि बाद में समस्या न हो.

चुनाव में टिकट पाने का आतंकी तरीका

आज फिर मैं पत्नी के ताने सुनतेसुनते 9 बजे सो कर उठा. 3 दिन से वह लगातार कहे जा रही थी, ‘चुनाव होने वाले हैं, कुछ कर लो, किसी अच्छी पार्टी से सांसद या विधानसभा का चुनावी टिकट जुगाड़ लो. यह तो मालूम है कि बुरी तरह हारोगे, फिर भी क्या, अरे तुम्हारे मित्र किशन लालजी को देखो, पिछले बार चुनाव में किसी जुगाड़ से खड़े हो गए थे. मात्र 200 वोट मिले थे, जमानत तक जब्त हो गई थी, पर फिर भी घर में नई कार आ गई थी. मैं तो कहती हूं, कोशिश तो करो, लोग चाहते हैं कि ईमानदार लोग चुनाव जीत कर आएं. तुम तो महान ईमानदार हो, जब कुछ करते ही नहीं तो बेईमानी कैसी? पौपुलर हो, सारे अंकलों और आंटियों का काम मुफ्त में करते रहते हो, किसी के कपड़े प्रैस कराना, किसी की सब्जी लाना, किसी के बच्चों को स्कूल छोड़ना. अरे, कब काम आएंगी तुम्हारी कुर्बानियां? हारने के बाद भी अपनी कुछ इज्जत तो बन ही जाएगी, पुराने, सड़े से स्कूटर में तो अब तुम्हारे साथ बैठने को भी दिल नहीं करता.’
पत्नी बोल तो सच रही थी. कुछ नहीं करने से तो अच्छा है कि चुनाव में खड़े हो जाओ. आज पहली बार मुझे लगा कि वह ठीक बोल रही है. पहली बार पिताजी का कुरतापायजामा पहना. फिर सोचा कि यदि चुनाव में खड़े ही होना है तो किसी बड़े दल से ही टिकट प्राप्त क्यों न करें. सोचतेसोचते एक बड़े दल के मुख्यालय पहुंच गया, वहां पूरा चुनावी माहौल था, बहुत से लोग पेड़ के नीचे खड़े थे, बहुत से मूंगफली खा रहे थे, कुछ बतिया रहे थे. कुछ पेपर पढ़ रहे थे और कुछ पेपर बिछा कर उसी के ऊपर सो रहे थे. पहली बार लगा कि मेरे अलावा दुनिया में और भी बहुत निठल्ले हैं.
अंदर जाने की जुगत में देखा कि मुख्यालय  के गेट पर 2 दरबान खड़े थे. मौका देख कर मैं अंदर जाने लगा, तो उन में से एक ने मुझे रोका और पूछा, ‘‘कहां जा रहे हो?’’
मैं ने जवाब दिया, ‘‘भाई, चुनाव लड़ने की इच्छा है, टिकट लेने आया हूं.’’
मेरी बात सुन कर दोनों हंसने लगे, बोले, ‘‘अच्छा, नेता हो? किस चुनाव के लिए टिकट चाहते हो?’’
मैं ने जवाब दिया, ‘‘जिस का भी मिल जाए, लोकसभा का, विधानसभा या निगम पार्षद का, कुछ भी मिल जाए, मैं तो देश की सेवा करना चाहता हूं.’’
मेरे जवाब पर दोनों फिर हंसने लगे, बोले, ‘‘अच्छा बताइए, आप को ही टिकट क्यों मिले?’’
मैं ने जवाब दिया, ‘‘हम ईमानदार हैं, मेहनती हैं, अपने महल्ले में सब के चहेते हैं.’’
मेरी बात सुन कर वे दोनों हंसतेहंसते लगभग लोटपोट हो गए.
उन में से एक बोला, ‘‘अरे भैया, इतने सारे गुण हैं तो फिर आप का टिकट तो पक्का है.’’
मैं उस की बात सुन कर बहुत खुश हुआ, अपने पर गुस्सा भी आया कि यदि चुनाव के लिए टिकट मिलना इतना आसान था तो नाहक ही मैं ने इतना वक्त बरबाद किया. फिर मैं ने उन से पूछा, ‘‘भैया, क्या आप लोग भी टिकट वितरण की कमेटी में हैं?’’
एक बोला, ‘‘हां भैया, क्यों नहीं, अध्यक्ष साहब ने हम दोनों को गेट की स्क्रीनिंग कमेटी में रखा है. आप की तरह बहुत से होनहार और गुणी लोग चुनाव का टिकट लेने आते हैं, उन का हम खयाल रखते हैं,’’ फिर बोला, ‘‘भाई साहब, आप सामने जो पेड़ देख रहे हैं न, वहीं जा कर आराम करिए, जब अंदर से बुलावा आएगा, हम आप को बुला लेंगे.’’
मैं बुझे मन से पेड़ के नीचे पहुंच गया, जहां पहले से ही बहुत लोग अपना टाइम पास कर रहे थे. कुछ लोग तो इतनी मूंगफली खा चुके थे कि छिलकों का तकिया बना कर सो रहे थे. मैं ने सोचा कि ये सब जरूर वे लोग हैं जिन के नेता अंदर चुनाव का टिकट लेने के लिए गए हैं, और ये सब उन के स्वागत के लिए इंतजार कर रहे हैं. पर पूछने पर मालूम हुआ कि वे सब लोग भी टिकटार्थी हैं. मैं ने एक पास बैठे सज्जन से पूछा, ‘‘भैया, क्या अपने नेता का इंतजार कर रहे हो?’’ जवाब मिला, ‘‘नहीं, हम तो खुद नेता हैं और चुनाव के लिए टिकट के दावेदार हैं.’’
पता चला कि कई महीनों से यहीं डेरा डाले बैठे हैं. उन को अंदर अभी तक नहीं बुलाया गया. पर मुझे इस बात की चिंता नहीं थी क्योंकि मुझे मालूम था कि मैं एक ईमानदार और पौपुलर आदमी हूं, टिकट तो मुझे मिलेगा ही.
उसी समय देखा कि मुख्यालय के गेट से एक व्यक्ति निकला, ढेर सारे समर्थकों के साथ, लोग जिंदाबाद, जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे, ढेर सारे लोग हारफूल पहना रहे थे, ढोलनगाड़ों के साथ वे वहां से चल दिए. पास वाले ने मुझ से कहा, ‘‘देखो, इसे टिकट मिला गया. साला अव्वल दरजे का भ्रष्ट था.’’
उस दिन शाम होने तक भी मेरा बुलावा नहीं आया. झक मार कर मैं खाली हाथ वापस घर आया और पत्नी के ताने सुने.
मेरे साथ इस तरह का व्यवहार 3 दिन तक चलता रहा, रोज मुख्यालय जाता और शाम को खाली हाथ लौट आता और फिर पत्नी के ताने सुनतेसुनते सो जाता. गार्ड मुख्यालय के अंदर घुसने ही नहीं देते थे. एक बार उन से मिन्नत की कि कम से कम मेरी अर्जी तो अंदर पहुंचा दो, तो रहम कर के अर्जी उन्होंने ले ली और जेब में रख ली और बोले, ‘‘नेताजी, आराम करो, अंदर से बुलावा आएगा तो बुला लेंगे.’’
मैं ने सोचा कि बुलाएंगे कैसे, जब अर्जी अंदर ही नहीं पहुंच रही है.
मैं धीरेधीरे डिप्रैशन में जा रहा था. उसी अवस्था में मैं पेड़ के नीचे एक व्यक्ति के पास पहुंचा जो मेरी तरह ही रोज आता था. पूरा पेपर पढ़ता था और वहीं उस को बिछा कर सो जाता था. मैं ने उसे अपनी व्यथा सुनाई. सुन कर वह बोला, ‘‘अरे भैया, हम तो 10 सालों से टिकट के लिए कोशिश कर रहे हैं. पर क्या करें, देते ही नहीं. कहते हैं, आप के खिलाफ कोई भ्रष्टाचार की शिकायत नहीं है, चुनाव क्या खाक लड़ोगे. फिर भी यदि आप टिकट चाहते हो तो उस मूंगफली वाले के पास पहुंच जाओ जो शायद तुम्हारी मदद कर सके. वह खुद भी चुनाव लड़ना चाहता था, पर हताश हो कर यहीं, कुछ सालों से मूंगफली बेच कर हम लोगों की सेवा कर रहा है.’’
मेरी परेशानी सुन कर मूंगफली वाला पहले तो हंसा. फिर बिना मेरे और्डर के 250 ग्राम मूंगफली तौल के मुझे टिका दीं. मैं मजबूर था, मैं ने उसे पूरे पैसे दिए और इंतजार करने लगा कि पता नहीं वह क्या उपाय बताएगा. थोड़ी देर के बाद वह बोला, ‘‘अरे भैया, मैं तो 20 साल से चुनावी टिकट का प्रयास कर रहा हूं, फिर हार कर कुछ दिनों से यहीं मूंगफली बेचने लगा हूं. मैं तो कहता हूं, आप भी बेचने लगो, चुनाव लड़ने से तो यही बेहतर है. पर आजकल, जब से लोगों को मालूम हुआ है कि एक बड़े नेता जो प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं, पहले चाय बेचा करते थे, तब से चाय की गुमटी लगाने पर लोगों का ज्यादा जोर है. यदि कहो तो मैं तुम्हें अपने एक दोस्त के पास भेज सकता हूं, जो चाय की गुमटी बनवाने में आप की मदद कर सकता है.’’
उस की ये बातें सुन कर मेरे अहं को चोट पहुंची. उस की दी हुई सारी की सारी मूंगफली गुस्से में मैं उसी के ठेले पर छोड़ कर घर आ गया. जाने के पहले मैं मुख्यालय के गेट पर खड़े दोनों गार्डों के पास गया. बड़े अदब से पूछा, ‘‘सर, आज 4-5 दिन हो गए हैं, हमारी बात कुछ आगे बढ़ी या नहीं?’’
सुन कर दोनों हंसने लगे. बोले, ‘‘हां, क्यों नहीं? बहुत आगे बढ़ी है, पार्टी तुम्हें प्रधानमंत्री बनाने की सोच रही है, तुम तो घर जाओ, पार्टी वाले खुद ही आएंगे तुम्हारे पास.’’
ऐसा बोल कर वे दोनों फिर हंसने लगे. मेरे अहं को आज के दिन ही दूसरी बार चोट पहुंची.
आज फिर मैं मुंह लटका कर चुपचाप घर में घुस गया, बिना खाना खाए सो गया. दूसरे दिन पत्नी ने हिलाहिला कर जगाने की कोशिश की. मैं सोने का बहाना बना कर बिस्तर में पड़ा रहा. मुझे मालूम था, वह फिर मुझे चुनाव के टिकट के लिए भेजेगी, पर मैं तैयार नहीं था. रोज मेरी फजीहत हो रही थी. पर वह अड़ी हुई थी. बोली, ‘‘जल्दी तैयार हो जाओ और आज साथ में खाना ले जाना.’’
मैं ने पूछा, ‘‘खाना क्यों? वहां तो सब लोग मूंगफली खा कर पेट भरते हैं, फिर मैं अकेला क्यों?’’
बोली, ‘‘तुम नहीं समझोगे, मैं जैसा बोलूं वैसा करते जाओ.’’
मैं मजबूरी में उठ गया.
मेरी पत्नी ने मेरा एक पुराना टिफिन बौक्स निकाला, जिसे यदि हम बिजली के रंगबिरंगे तारों से नहीं बांधे तो सारा खाना बाहर निकल पड़े. नीचे के डब्बे में उस ने परांठे रखे और ऊपर के डब्बे में गोभी की सब्जी. मैं ने कहा, ‘‘ऊपर का डब्बा खाली है, उस में दाल रख दो.’’
सुन कर गुस्सा हो गई, बोली, ‘‘हां, वहां दाल खाने ही तो जा रहे हो, चुनाव के लिए टिकट तो ला नहीं सकते, बस लोगों के कपड़े प्रैस करवाओ और उन के बच्चों को स्कूल से घर लाओ.’’
मेरे निकम्मेपन से वह बहुत गुस्सा थी, पर इन्हीं कामों की वजह से मैं महल्ले में इतना पौपुलर था. वह दोबारा अंदर गई और कबाड़े से एक पुरानी अलार्म घड़ी ले आई, जिसे हम लोगों ने इसलिए फेंक दिया था क्योंकि वह समय तो ठीक नहीं बताती थी पर इतनी जोर से टिकटिक करती थी कि घोड़ा बेच कर सोने वाला भी जाग जाए. पत्नी ने उस में पूरी चाबी भरी और उस घड़ी को टिफिन के ऊपर के खाली डब्बे में रख दिया. फिर टिफिन को पुराने बिजली के रंगबिरंगे तारों से बांध कर एक थैली में रख कर मुझे दे दिया और बोली, ‘‘जाओ, अब चुनाव के लिए टिकट ले आओ, शर्तिया मिलेगा. बस, तुम से यदि कोई पूछे कि इस थैली में क्या है तो बिना मुंह खोले उन को यह थैली दिखा देना.’’

मुझे कुछ समझ नहीं आया पर कुछ और पूछता तो वह फिर भड़क जाती. सिर्फ यह पूछा, ‘‘मैं यह खाना वहां कितने बजे खाऊं?’’
वह बोली, ‘‘तुम्हें ये खाना, खाने के लिए नहीं दिखाने के लिए दे रही हूं. कोई पूछे तो बस चुपचाप थैली खोल कर दिखा देना.’’
मैं कुछ समझा नहीं, पर चुप रहना बेहतर समझा.
आज फिर मैं समय पर पार्टी के मुख्यालय पहुंच गया. टिकटार्थी आज भी जगहजगह खड़े हुए थे, मूंगफली खा रहे थे, सो रहे थे, पेपर पढ़ रहे थे, कुछ ताश भी खेल रहे थे. अधिकतर चेहरों को मैं अब पहचानने लगा था. शायद ये उन लोगों के लिए समय काटने का साधन बन गया था. पर आज मैं बहुत आत्मसम्मान के साथ टिकट लेने आया था. सीधे पार्टी मुख्यालय के मुख्यद्वार से अंदर जाने लगा. इस बार भी रोज की तरह वही 2 मुस्टंडे गार्ड खड़े थे. मुझे देख कर अंदर जाने से रोक दिया और दोनों हंसने लगे. बोले, ‘‘नेताजी, अभी भी चुनाव लड़ने का भूत सिर से नहीं उतरा?’’
मैं कोई जवाब दिए बगैर अंदर जाने लगा. दोनों ने अपने डंडों से मुझे रोक दिया. बोले, ‘‘नेताजी, ऐसे अंदर नहीं जा सकते, वैसे भी आप ने हम से चायपानी तक के लिए पूछा नहीं, फिर अंदर क्या भेंट चढ़ाओगे टिकट पाने के लिए?’’
मैं फिर कुछ नहीं बोला और फिर अंदर जाने की कोशिश करने लगा. दोनों को गुस्सा आ गया. एक ने पूछा, ‘‘नेताजी, जबरदस्ती अंदर जाने की कोशिश कर रहे हो और यह तो बताओ इस थैली में क्या है?’’
मैं थैली आगे करते हुए बोला, ‘‘आप खुद ही देख लो.’’
गार्ड ने थैली में झांक कर देखा, उस के चेहरे पर अचानक भय के भाव उभर आए, बोला, ‘‘अरे, इस में तो बम है.’’
वह क्या कोई भी उस थैली में रंगबिरंगे बिजली के तारों से टिफिन के डब्बों को बंधा देख कर और ऊपर के डब्बे से घड़ी की टिकटिक सुन कर बम ही समझेगा. मुझे पहली बार पत्नी की चतुराई का पता चला. मैं वही थैली दूसरे गार्ड को दिखाने के लिए मुड़ा, पर देखा कि वह वहां से गायब हो चुका था. फिर मैं पहले गार्ड की तरफ मुड़ा, पर वह भी ‘थैली में बम है, थैली में बम है’ चिल्लाता हुआ भागा जा रहा था. उस को इस तरह चिल्लाते हुए और भागते देख आसपास के सभी इंसान और पेड़ के नीचे बैठे टिकटार्थी गायब हो चुके थे.
मुख्यालय के अंदर घुसा, कोई रोकने वाला नहीं था. होंगे तो भी बम की खबर सुन कर सब इधरउधर छिप गए होंगे. मैं बड़े मजे से अपनी थैली ले कर उस कक्ष में पहुंचा जहां पार्टी के बड़े नेता चुनाव के लिए टिकट वितरण करते थे. अंदर देखा कि 3 बड़े नेता टेबल के पीछे बैठे हैं और भय से कांप रहे हैं. मुझे और मेरी थैली देख कर डर से और ज्यादा कांपने लगे. डर के आपस में चिपट गए. सब की घिग्घी बंधी हुई थी. मैं सामने की कुरसी पर बैठ गया और अपने टिफिन की थैली को उन की ही टेबल के ऊपर रख दिया. थोड़ी देर बाद उन में से एक ने बोलने की हिम्मत की. बोला, ‘‘भाई, क्या चाहते हो हम लोगों से?’’
मैं बोला, ‘‘कुछ नहीं, कोई भी चुनाव लड़ने के लिए आप की पार्टी का टिकट चाहता हूं. ईमानदार हूं, अपने महल्ले में बेहद पौपुलर हूं.’’
उन में से एक बोला, ‘‘तो भाई, रोकता कौन है तुम्हें. बोलो तो, किस चुनाव का टिकट चाहिए हम से? पर यह बम तो दूर रख दीजिए.’’
वे बात मुझ से कर रहे थे, पर उन के कान घड़ी की टिकटिक में लगे हुए थे और डर रहे थे कि किसी भी समय बम फट सकता है. मैं ने कहा, ‘‘जिस चुनाव के लिए आप ठीक समझो, दे दीजिए.’’
बोले, ‘‘संसद का दे देते हैं. पर इस थैली को तो हटाओ यहां से.’’
तीनों ने मिल कर एक आदेशपत्र पार्टी की तरफ से लिख कर दिया, जिसे हम चुनाव के लिए टिकट कहते हैं. यही हमें चुनाव अधिकारी को देना था यह बताने के लिए कि हम इस पार्टी से उम्मीदवार हैं.
मैं ने टिकट लिया और जाने लगा. उन की जान में जान आई. पर न जाने जाते हुए मुझे एक अक्ल की बात सूझ गई. मैं ने कहा, ‘‘भाई, अभी तो आप ने मुझे टिकट दे दिया है पर मेरे जाते ही आप एक दूसरा आदेशपत्र जारी कर दोगे जिस में चुनाव अधिकारी के लिए निर्देश होंगे कि मेरी दावेदारी निरस्त की जाती है.’’
मेरा सोचना ठीक था, वे आपस में इसी योजना के लिए कानाफूसी कर रहे थे. मेरी बात सुन कर बोले, ‘‘अच्छा, हम एक और आदेशपत्र आप को देते हैं, जिस में लिख देंगे कि आप की दावेदारी अंतिम है और आगे किसी भी तरह का फेरबदल अमान्य होगा.’’
उन की बात सुन कर मैं खुश हो गया और वे इसीलिए खुश दिख रहे थे कि मैं वहां से जा रहा था और वे सहीसलामत थे. जिस चुनाव के टिकट पाने के लिए मैं इतने दिनों से चक्कर काट रहा था, वह मुझे कुछ ही पलों में इस आसान तरीके से मिल गया. जाते हुए उन के चेहरे के भाव देखे तो लगा जैसे कोई बकरा कसाई के हाथों से कटने से बच गया हो. मुझे जाते हुए देख कर, थैली की तरफ इशारा कर के बोले, ‘‘भैया, यह तो लेते जाइए.’’
मैं ने कहा, ‘‘हां, जरूर.’’
मैं ने आराम से मुख्यालय परिसर का अच्छी तरह मुआयना किया और फिर वहां से बाहर आ गया. पूरे मुख्यालय में सन्नाटा फैला हुआ था. पर जब मैं बाहर के गेट के पास पहुंचा तो देखा बाहर कुछ अलग ही माहौल है. मुख्यालय के मुख्य गेट के चारों तरफ पुलिस के जवान अर्धगोलाकार की स्थिति में खड़े थे, सभी के हाथों में बंदूकें थीं. उन के अफसर
के पास लाउडस्पीकर था, पास ही बम निरोधक कर्मचारी, बम निरोधक वरदी में खड़े हुए थे. चारों तरफ मीडिया के लोग कैमरे और माइक ले कर खड़े हुए थे. ऐसा लग रहा था कि सब लोग सांस रोक कर मेरे बाहर निकलने का इंतजार कर रहे थे.
जैसे ही मैं गेट के बाहर दिखा, वे सब हरकत में आ गए. लाउडस्पीकर पकड़े अफसर ने घोषणा की, ‘‘आप जो कोई भी हो और जिस आतंकवादी संगठन से हो, आप को निर्देश दिया जाता है कि आप हाथ में पकड़े बम को जमीन पर रख दें और अपनेआप को पुलिस के हवाले कर दें.’’
सुन कर मुझे हंसी आ गई. मेरे खाने को वे बम समझ रहे थे. मैं ने चिल्ला कर कहा, ‘‘भाई, कोई बम नहीं है, यह मेरा खाना है,’’ और फिर उस लाउडस्पीकर वाले अफसर की ओर बढ़ा. बोला, ‘‘मैं तो नहीं खा पाया, आप लोग ही खा लें.’’
डर कर सब पीछे हटने लगे, कोई मेरी बात मानने को तैयार नहीं था. बारबार मुझ से सरैंडर करने के लिए उद्घोषणा हो रही थी.
आखिरकार, मैं ने हंसते हुए, अपनी थैली नीचे रख दी. देख कर दर्शकों ने तालियां बजानी शुरू कर दीं और ‘भारतमाता की जय’ के नारे लगाने शुरू कर दिए. पुलिस वालों ने मुझे हथकड़ी पहना दी.
मैं हंसने लगा, जो अफसर मेरे हाथ में रखी थैली से डर रहा था, अब निडर हो गया था और मेरे पास सट कर खड़ा हो गया, क्योंकि मीडिया वाले मेरी फोटो खींच रहे थे. मेरे बारबार कहने के बाद भी कि मेरे पास कोई बमवम नहीं है, कोई मानने को तैयार नहीं था.
बम निरोधक दस्ते वाले पूरे सुरक्षा कवच के साथ मेरे पास आए. एक ने मेरे टिफिन को उठाया. फिर एक बार दर्शकों ने तालियां बजाईं और ‘भारतमाता की जय’ के नारे लगाए. मैं हंस दिया. इस पर एक बड़े, ऊंचे पुलिस अफसर की छड़ी भी मेरी पीठ पर पड़ी और मैं तिलमिला गया. फिर भी मुझे हंसी आ रही थी. मेरा टिफिन उठा कर दूर ले जाया गया.
बम निरोधक दस्ते के लोगों ने थैली के अंदर से मेरे टिफिन को संभाल कर निकाला. लाल, नीले, पीले बिजली के तारों को बारीकी से परखा, फिर एक वायरकटर से नीले तार को काट दिया. इस पर जनता ने उत्साह से तालियां बजाईं, भारतमाता की जय बोली. पर फिर भी दस्ते वाले लोग पसोपेश में दिखाई दे रहे थे क्योंकि घड़ी की टिकटिक की आवाज जोरों से आ रही थी. इस बार लाल तार को काटा, फिर भी टिकटिक की आवाज जारी रही. फिर गुस्से में सभी तारों को काट दिया गया जिस से मेरा टिफिन खुलने से बचने के लिए बांधा गया था. सब लोग पसोपेश में दिखाई दे रहे थे कि यह कैसा बम है.
सभी तार कटने से अचानक टिफिन के डब्बे अपनेआप खुल गए, खाना बाहर गिरने लगा. टिकटिक करती अलार्म घड़ी भी बाहर गिर गई. गुस्से में बम निरोधक दस्ते के लोगों ने अपने कवच फेंक दिए. मीडिया वाले अब निडर हो कर गिरे हुए खाने व टिकटिक करती हुई घड़ी की फोटो खींच रहे थे. भीड़ अब पुलिस वालों के खिलाफ ‘हायहाय’ के नारे लगाने लगी थी. मैं ये सब देख कर हंस रहा था. मेरी पत्नी के बनाए हुए परांठे और सब्जी की खुशबू पास में खड़े हुए लोगों तक पहुंच रही थी. पुलिस वालों के लिए ये शर्मनाक स्थिति थी. आसपास के मीडिया वाले खबर पहुंचा रहे थे कि ‘खोदा पहाड़ और निकली चुहिया.’ पुलिस वाले लगातार मुझे गाली दिए जा रहे थे.
घड़ी और खाने का टिफिन ले कर वे मेरे और अफसर के पास आए. बोले, ‘‘सर, कुछ नहीं मिला. इस आदमी ने जबरदस्ती झूठा आतंक फैलाने की कोशिश की थी. सर, इसे गिरफ्तार कर लेना चाहिए.’’
मैं बोला, ‘‘यह कैसे हो सकता है. मैं ने क्या किया है. मैं तो चुनाव के लिए टिकट लेने अंदर जाना चाहता था. मेरे हाथ में यह खाने का टिफिन था और ऊपर के डब्बे में समय देखने के लिए यह घड़ी. गार्डों ने मुझ से पूछा कि इस थैली में क्या है, मैं ने कहा, खुद ही देख लो. बस, पता नहीं खुद वे ही ‘बम है, बम है’ कहते हुए भाग खड़े हुए. इस में मैं क्या कर सकता हूं.’’
दोनों गार्ड वहीं खड़े थे, मेरी बात पर सहमति जताई. अफसर ने मेरी हथकड़ी खुलवा दी और मुझे बाइज्जत छोड़ दिया.
दूसरे दिन मैं मीडिया में छाया हुआ था. अब मेरे पास चुनाव लड़ने का टिकट भी था, पत्नी बहुत खुश थी. चुनाव में इसी पार्टी से खड़ा हुआ. चुनाव के 4 दिन बाद परिणाम आए, मुझे सिर्फ 50 वोट मिले. मुझे गम नहीं था. क्योंकि चुनाव में मुझे इतना चंदा और पार्टी से चुनावफंड मिल चुका था कि मैं ने एक नई चमचमाती कार ले ली थी.

इन्हें भी आजमाइए

? दरवाजे या खिड़कियों के शीशों को धुंधला करने से आप बाहर की तेज रोशनी और गरमी से बच सकते हैं. इस के लिए वारनिश को गरम कीजिए तथा उस में सेंधा नमक घोल दीजिए. घोल को ब्रश की सहायता से शीशे पर पोत दीजिए. शीशे धुंधले हो जाएंगे.
? दीवार पर या अलमारी में लगा हुआ कागज कुछ समय बाद गंदा हो जाता है. उसे साफ करने के लिए पहले मुलायम कपड़े से उस की धूल पोंछ लें. फिर मुलायम डबलरोटी का गोला बना कागज पर रगड़ें. कागज नए की तरह चमक जाएगा.
? किसी बदबूदार बरतन से बदबू दूर कर के साफ करना हो तो गरम पानी में जरा सा कपूर घोल कर बरतन धो डालें. फिर सोडे के
पानी से धो लें. बरतन बदबूरहित और साफ हो जाएगा.
? बच्चों के एकदो जोड़ी कपड़े, मोजे, जूते अलग से रखें ताकि अचानक कहीं घूमनेफिरने का कार्यक्रम बन जाए तो उन्हें झट से पहना कर तैयार करने में देरी न लगे.
? कलफ किए गए कपड़ों पर प्रैस करने से प्रैस की तली पर दाग पड़ गए हों तो सूखी राख से उस की सतह को रगड़ कर सूखे कपड़े से पोंछ लें. अन्य कपड़ों पर दाग लगने का डर नहीं रहेगा.

बिसात

जिद में आके, ये बात मत करना
वक्त से दोदो हाथ मत करना
 
जाते पंछी से घोंसले ने कहा
लौट आने में रात मत करना
 
गजनवी आके लूट ले न कोई
दिल को तू सोमनाथ मत करना
 
हर कदम पर शकुनि की चालें हैं
जिंदगी को बिसात मत करना
 
शंका, कुशंका, वहम, अंदेशे
इतना भी एहतियात मत करना
 
बोझ बन जाए जो सफर में ‘शशि’
ऐसे लोगों का साथ मत करना.
 डा. शशि श्रीवास्तव

बच्चों के मुख से

मेरी 3 वर्षीया नातिन कुहू, काफी शरारती है. ज्यादा बोलतेबोलते, कभीकभी ऐसी बातें करने लगती है, जिसे समझने में देर लग जाती है. एक दिन मेरे पास आ कर कहने लगी, ‘‘नानीनानी, हम ने ब्लेड और मसाला खा लिया.’’
मैं ने घबरा कर पूछा, ‘‘कहां मिला तुम्हें ब्लेड और मसाला?’’ 
वह टेबल के पास ले गई. वहां पर प्लेट में ब्रैड और मक्खन रखा हुआ था और पास ही बौर्नविटा का डब्बा भी था. उस की सारी बातें समझ कर हम लोग खूब हंसे. सुषमा सिन्हा, वाराणसी (उ.प्र.)
 
एक दिन मेरी ननद और उस की बेटी मार्केट जा रही थीं. रास्ते में उन्हें मेरे ससुरजी मिल गए. उन की बेटी ने मेरे ससुरजी से कहा कि उसे पैसे दो, चौकलेट लेनी है. इस पर ननद बोली, ‘‘तुम मेरे पापा से पैसे क्यों मांगती हो?’’
अगले दिन जब मेरी ननद अपने पति से पैसे ले रही थी तब उन की बेटी तपाक से बोली, ‘‘आप मेरे पापा से पैसे क्यों मांग रही हो?’’ सोनम भाटिया, कानपुर (उ.प्र.)
 
मेरी बेटी 4 वर्ष की थी. एक दिन रसोई में उस ने हीटर पर दूध उबलते देखा तो वह फौरन बोली, ‘‘मम्मी, मैं यह दूध नहीं पीऊंगी, अगर मैं पीऊंगी तो मुझे करंट लग जाएगा.’’
उस की बात सुन कर हम सब हंसतेहंसते लोटपोट हो गए.
साधना वाजपेयी, ग्वालियर (म.प्र.)
 
मेरा 5 वर्ष का बेटा प्रखर बहुत नटखट व हाजिरजवाब है. बात हाल ही की है. स्कूल खुलने के पहले दिन ही मुझे उसे तैयार करने में कुछ विलंब हो गया, जिस के कारण स्कूल बस ड्राइवर को कुछ देर रुकना पड़ गया.
दोपहर को स्कूल से लौटने पर वह कुछ गंभीर हो कर कहने लगा, ‘‘मां, मुझे स्कूल के लिए कल जल्दी तैयार कर देना. वरना मेरी बैंड बज जाएगी.’’
यह सुनते ही हम सब हंसतेहंसते लोटपोट हो गए.
मीना सक्सेना, हरदोई (उ.प्र.)
 
गरमियों की छुट्टियों में मेरी पोती रागिनी, जिस की उम्र 5 साल है, हमारे घर रहने के लिए हरिद्वार आई. एक दिन मेरी सहेली मेरे घर आई और मेरी पोती से पूछने लगी, ‘‘बेटा, आप के घर में कौनकौन रहता है?’’
बड़ी मासूमियत के साथ वह बोली, ‘‘आंटी, मेरे घर में बाबा सिंघल, दादी सिंघल, दीदी राधा सिंघल और हमारा डौगी सिंघल रहते हैं.’’
डौगी सिंघल सुनते ही मेरी सहेली का व मेरा हंसतेहंसते बुरा हाल हो गया.
रेखा सिंघल, हरिद्वार (उत्तराखंड) 

सूक्तियां

अमीरगरीब
कंजूस अपनेआप को गरीब दिखातेदिखाते धनी बन जाता है और मुक्तहस्त व्यक्ति अपनेआप को अमीर दिखातेदिखाते निर्धन हो जाता है.
प्रसिद्धि
संसार में प्रसिद्धि हवा के जैसी है जो कभी इधर बहती है तो कभी उधर, और दिशा बदलने के साथ ही नाम भी बदल देती है.
निर्णयात्मक शक्ति
अपनी निर्णयात्मक शक्ति को मजबूत बनाने का एक ही तरीका है – उस से अधिक से अधिक काम लेना.
मालिक
अगर तुम मालिक हो तो कभीकभी अंधे बन जाओ, अगर नौकर हो तो कभीकभी बहरे हो जाओ.
वीरता
वह व्यक्ति कभी बहादुर नहीं हो सकता जो कष्टों को जीवन की सब से बड़ी बुराई समझता है.
कार्य
वह काम करना ठीक है जिसे कर के पछताना न पड़े और जिस के फल को प्रसन्नमन से भोग सकें.
सोचविचार
सावधानी और सोचसमझ कर किया हुआ काम डर से छुटकारा दिलाता है.

जीवन की मुसकान

कुछ दिनों पहले मैं छात्राओं की बैडमिंटन की टीम ले कर ललितपुर गई थी. ललितपुर से झांसी आ कर हमें बांदा के लिए बुंदेलखंड ऐक्सप्रैस पकड़नी थी. वरना सारी रात प्लेटफौर्म पर ही व्यतीत करनी पड़ती. किसी तरह टिकट इत्यादि ले कर सभी छात्राएं अपनाअपना बैग कंधे पर चढ़ाए प्लेटफौर्म पर पहुंचीं तो गार्ड साहब हरी झंडी दिखा चुके थे. 
गाड़ी अभी चली ही थी कि तभी मेरी एक छात्रा को कुछ न सूझा तो चिल्लाई, ‘‘ऐ हरी झंडी, ऐ हरी झंडी, हमें भी ले लीजिए,’’ पता नहीं, शायद लड़कियों को गिरतापड़ता देख कर गार्ड ने ड्राइवर से गाड़ी रुकवा दी. हम सभी लड़कियों समेत जो भी डब्बा आगे पड़ा उसी में चढ़ गए. 
लड़कियों ने किसी भी यात्री को तंग न करते हुए जमीन पर चादर बिछा ली. अंत्याक्षरी खेलते हुए कब बांदा आ गए, पता ही नहीं चला. हमारा बांदा पहुंचना उस दिन अत्यंत आवश्यक था क्योंकि हमारी एक छात्रा की उसी दिन सगाई होनी थी. ड्राइवर व गार्ड की इंसानियत से हम उस दिन गाड़ी पकड़ पाए. आज भी हम उन्हें श्रद्धा से याद करते हैं.
डा. मनोरमा अग्रवाल अदिति, बांदा (उ.प्र.) 
 
बात उन दिनों की है जब मैं 17-18 वर्ष का रहा होऊंगा. उन दिनों जब भी मेरे घर में कोई पर्वत्योहार जैसे दीवाली या होली वगैरह मनाया जाता तो मैं अकसर कह देता, ‘‘क्या फायदा, इन पर्वों को मनाने का? इस से हमें क्या मिलेगा?’’ घर वाले मेरी इस बात पर सिर्फ मुसकरा कर रह जाते, लेकिन कोई कुछ कहता नहीं.
इसी तरह एक बार घर में दीवाली की तैयारी चल रही थी. सभी सदस्य पूरे जोश से तैयारियों में लगे थे क्योंकि एक दिन बाद ही दीवाली थी. सारी तैयारियों को देखते हुए मैं आदतन बोल पड़ा, ‘‘क्या फायदा?’’ तभी मेरे भैया, जो मेरे पास बैठे थे, मुझे थोड़ा डांटते हुए बोले, ‘‘फायदा क्या होगा? क्या तुम कोई बनिया हो जिसे हर चीज में फायदा चाहिए. जरा देखो तो घर का माहौल कितना खुशनुमा लग 
रहा है. बच्चे कितने खुशी से त्योहार 
की तैयारियों में लगे हैं. हर चीज में फायदानुकसान देखना छोड़ दो. पर्व किसी फायदे के लिए नहीं, पारिवारिक खुशी और आपसी मेलजोल के लिए मनाए जाते हैं. इसी बहाने परिवार के सारे सदस्य घर आ जाते हैं और इकट्ठे हो कर हंसीखुशी त्योहार मनाते हैं.’’
सच, भैया की इन बातों ने मेरे हृदय को छू लिया और मेरे जीवन की सोच को बदल दिया जिस से मेरे जीवन में मुसकान फैल गई और मेरी ये ‘फायदे’ बोलने की आदत हमेशा के लिए छूट गई. अब हर पर्व मैं बिना किसी फायदेनुकसान के बेहद खुशी से मनाता हूं.
अमर कुमार, समस्तीपुर (बिहार) 
 

नेता मस्त मलंग

वोट की खातिर घूम रहा
गलीमहल्ले द्वारेद्वारे
दोनों हाथों में लड्डू हैं
और जेबों में भरी मलाई
पारस पत्थरी रखे हाथ में
करता वारेन्यारे
चेहरे पर अद्भुत आकर्षण
पांच साल में देता दर्शन
मुंह में रखता पान दबाए
बात कोई समझ न पाए
आगे बढ़ कर हाथ मिलाता
दिल से सब को दूर भगाता
नेतागीरी खरी कमाई
लूटो खाओ जीमो भाई
झूठी कसमें झूठे वादे
सूखे आंसू तरल इरादे
अमचेचमचे गाते नारे
नेता मस्त मलंग है प्यारे.
नरेंद्र सिंह ‘नीहार’

खारे पानी में समाता सुंदरवन

विश्व विरासत बन चुका पश्चिम बंगाल का डेल्टाई इलाका सुंदरवन खतरे में है. सिर्फ भौगोलिक तौर पर ही नहीं बल्कि ग्लोबल वार्मिंग की मार झेल रहे इस इलाके में रहने वाली जनबस्तियों के डूबने के पीछे कौन से खतरे हैं, बता रही हैं साधना शाह.
पश्चिम बंगाल का डेल्टाई इलाका सुंदरवन, बन तो चुका है विश्व विरासत लेकिन आज भी इस क्षेत्र से हमारा पूरी तरह से परिचय नहीं हो पाया है. शायद यही कारण है कि यहां के ‘यंग डेल्टा’ पर पर्यावरण का खतरा लाल निशान को छूने लगा है जिस के लिए जिम्मेदार है ग्लोबल वार्मिंग. सुंदरवन के डेल्टाई क्षेत्र का बहुत सारा हिस्सा खारे पानी में समा चुका है. यहां के निवासियों पर दोहरी मार पड़ रही है. उन की जमीन और आजीविका दोनों ही छिनती जा रही हैं. पर्यावरणविद और समाजशास्त्री उन्हें पर्यावरण शरणार्थी का नाम दे रहे हैं.
पर्यावरण शरणार्थी की समस्या लगातार गहराती जा रही है. राष्ट्रसंघ की ओर से भी इस मामले को ले कर सर्वेक्षण चल रहा है. राष्ट्रसंघ के सर्वेक्षण में कहा गया है कि महज 45 सेंटीमीटर यानी आधे मीटर से भी कम जल स्तर के और बढ़ने से सुंदरवन का 75 फीसदी हिस्सा बंगाल की खाड़ी के खारे पानी में समा जाएगा. जादवपुर विश्वविद्यालय की ओर से एक सर्वेक्षण किया गया था, जिस में जो तथ्य निकल कर आया वह भी चिंताजनक था. पता चला कि डेल्टाई क्षेत्र मे ं3.14 मिलीमीटर की दर से जल स्तर प्रतिवर्ष बढ़ रहा है, जबकि अन्य समुद्रों का जल 2 मिलीमीटर प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रहा है. इस सर्वेक्षण को 8 साल बीत चुके हैं. राष्ट्रीय तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार बंगाल की खाड़ी के पश्चिम बंगाल इलाके में जल स्तर 5 मिलीमीटर और बंगलादेश में 10 मिलीमीटर की दर से प्रतिवर्ष बढ़ रहा है. जाहिर है समस्या गंभीर होती जा रही है.
डेल्टा में विलीन होती जमीन
?गंगा और ब्रह्मपुत्र के मुहाने के बीच प्राकृतिक वनांचल में मूलतया मैनग्रोव के जंगल हैं. अनगिनत छोटीबड़ी सहायक नदियां व उन की उपधाराओं से पटा पड़ा है यह क्षेत्र. इस पूरे इलाके का निर्माण ही नदी की गाद या पौली से हुआ है. वर्षों से गंगा और ब्रह्मपुत्र द्वारा बहा कर लाई गई गाद से यहां के टापू निर्मित हुए हैं. लेकिन जो चिंता का विषय है वह यह कि हजारों सालों में भी ये टापू सख्त हो कर पत्थर में परिणत नहीं हुए हैं. यही कारण है कि हाल ही में भू वैज्ञानिकों ने न केवल इस क्षेत्र को बल्कि कोलकाता समेत पूरे दक्षिण बंगाल को यंग डेल्टा क्षेत्र करार दिया है. ग्लोबल वार्मिंग के कारण इस क्षेत्र में बने टापुओं के पानी में समाने का खतरा गंभीर होता जा रहा है. हर महीने नदी का जलस्तर बढ़ने से यहां के लोगों की आजीविका का सहारा इन की जमीन डेल्टा में विलीन होने लगी है. बीते बरसात के मौसम में इस क्षेत्र के बहुत सारे लोगों की जमीन को डेल्टा ने निगल लिया है. जमीन यहां के लोगों की आजीविका का जरिया है. पिछले साल मई महीने से ले कर अब तक पश्चिम बंगाल की सीमा क्षेत्र के कम से कम 10 लोगों की जमीन खारे पानी में विलीन हो चुकी है. वन विभाग का दावा है कि बंगलादेश के डेल्टाई क्षेत्र का भी यही हाल है.
ग्लोबल वार्मिंग की मार
पिछले वर्ष पहली बार 16 मई को अचानक आए जलोच्छ्वास से क्षेत्र के पायलागिरी के सुबोध कुमार पात्र की 1 एकड़ से भी ज्यादा जमीन खारे पानी में विलीन हो गई. सुबोध की इस जमीन में बड़े पैमाने पर तरहतरह की सब्जियां उगाई जाती थीं. अब सुबोध के परिवार के पास रहने के लिए न कोई ठिकाना है और न रोजगार का जरिया. बंगाल के इस डेल्टाई क्षेत्र के आसपास के इलाके देगंगा, बासंती, संदेशखाली, मीनखां, हाड़ोया जैसे कई द्वीपों में जलस्तर बढ़ रहा है. दिलचस्प बात यह है कि यहां के लोगों ने ग्लोबल वार्मिंग का नाम तक नहीं सुना है. पर इस की मार ये लोग झेल रहे हैं. यही नहीं, यहां के पानी के खारेपन में वृद्धि हो रही है. इस बीच भांगादुयानी, केंदो और डलहौजी द्वीप को खारे पानी ने लील लिया है.
इस डेल्टाई क्षेत्र का थोड़ा सा हिस्सा (महज 1330.10 वर्ग किलोमीटर) भारतीय सीमा के अंतर्गत आता है. बाकी पूरा क्षेत्र बंगलादेश की सीमा के अंतर्गत पड़ता है. दोनों देशों को मिला कर इस पूरे डेल्टाई क्षेत्र का क्षेत्रफल लगभग 10 हजार वर्ग किलोमीटर है. दोनों देशों के बीच बंटवारे के समय स्थल हिस्से का तो बंटवारा हुआ लेकिन जंगल का नहीं. जाहिर है दोनों देशों की सीमा में कांटेदार तार से सुंदरवन अछूता ही रहा. राज्य वन विभाग का मानना है कि सुंदरवन के गहरे जंगल में कांटेदार तार लगाना संभव नहीं. यह इलाका इतना दुर्गम है कि कांटेदार तार लगाने के लिए यहां तक पहुंचना ही संभव नहीं.
जंगल का अतिक्रमण
इस क्षेत्र को बहुत ही करीब से जानने वाले पर्यावरणविद चंद्रशेखर भट्टाचार्य का कहना है कि इस पूरे क्षेत्र के निवासी आजीविका के लिए वैकल्पिक उपाय की खोज में जंगल की ओर बढ़ने लगे हैं. धीरेधीरे जंगल का अतिक्रमण होने लगा है. उस पर तुर्रा यह कि बंटवारे के बाद बंगलादेश की आबादी में बेतहाशा वृद्धि हुई है. इस वृद्धि के चलते सुंदरवन के डेल्टाई क्षेत्र पर दबाव लगातार और भी बढ़ता चला जा रहा है.
दूसरा खतरा है ग्लोबल वार्मिंग यानी वैश्विक उष्णता, जिस के कारण हिमनद का आकार लगातार बड़े पैमाने पर छोटा होता जा रहा है. नतीजतन, नदियों का जलस्तर बढ़ता चला जा रहा है. जाहिर है डेल्टाई क्षेत्र में बसी जनबस्तियां इस की चपेट में आ रही हैं. सो, महानगर कोलकाता और इस के आसपास के उपनगरों में पर्यावरण शरणार्थी की समस्या बढ़ती चली जा रही है. इन में बहुत सारे बंगलादेशी भी हैं.
जलस्तर बढ़ने से न केवल जनजीवन पर असर पड़ रहा है, बल्कि वन्य जीवन भी प्रभावित हो रहा है. यहां की प्राकृतिक संपदा, जैसे रौयल बंगाल टाइगर, मेनग्रोव के जंगल, सुंदरी पेड़ को भी खतरा है. यह सुंदरवन अब भी बहुत सारे विशेष प्रजातियों के जीवजंतुओं का आश्रयस्थल है. दुनिया में वन बिलाव की तादाद भले ही विलुप्ति के कगार पर है लेकिन ये आज भी यहां पाए जाते हैं. इस के अलावा यहां जंगली सूअर, विशेष तरह का रंगा सियार और बंदर की एक विशेष प्रजाति के साथ चीतल, हिरण, पैंगोलिन पाए जाते हैं. यहां के लोगों की आजीविका में सुंदरवन के प्राकृतिक संसाधन बड़ा महत्त्व रखते हैं. इसलिए इस क्षेत्र में बसे लोग पानी में मगरमच्छ और जंगल में बाघ के आतंक के बीच अपना जीवन गुजारते हैं.
कभी इस क्षेत्र में हाथी भी हुआ करते थे. बताया जाता है कि ‘अकबरनामा’ में सुंदरवन के दक्षिणी क्षेत्र हाटथुवा जंगल से हाथी पकड़ कर सेना में भरती करने का जिक्र है. लेकिन अब यहां हाथी नहीं पाए जाते हैं. हाथी के अलावा इस क्षेत्र में जावा व सुमात्रा में पाए जाने वाले विशेष प्रजाति के गैंडों के अलावा लाल सींगवाले गैंडे, खारे पानी के हिरण, जंगली भैंसे भी पाए जाते थे. ये सभी अब विलुप्त हो चुके हैं. पश्चिम बंगाल वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, वर्ष 1900 में आखिरी बार लाल सींग वाला गैंडा पाया गया था. लेकिन जहां तक लाल सींग वाले गैंडे का सवाल है तो ये वर्ष 1935 से विलुप्त हो चुके हैं.
विलुप्त होते जीवजंतु
सुंदरवन में पाए जाने वाले जीवजंतुओं की सूची बहुत लंबी है. वन विभाग की ओर से प्राप्त इस सूची का कहीं कोई अंत नहीं है. इन में ज्यादातर जीवजंतु दुर्लभ प्रजाति के हैं. कुछ नाम इस प्रकार हैं : ओपेन बिल्ड स्टर्क, ह्वाइट आइबिस, वाटर हेन, कूट, पारिया काइट, ब्रह्मिनी काइट, मार्स हेरियस, रैड जंगल फाउल, स्पौटेड आउल, जंगली कव्वा, मिनस, कौटन टिल, कैस्पियन टर्न, नाइट हेरन, कौमन स्नाइप, विशेष प्रजाति का कठफोड़वा, हरे कबूतर, रोज रिंग्ड पैराकीट, पैराडाइज फ्लाईकैचर, करमारेंट, समुद्री स्पौटेड ईगल, विभिन्न प्रजातियों के सीगल, वुड सैंड पइपर, पेरिग्रीन फैलकौन, ह्वीमब्रेल, ब्लैक टेल्ड गौडविट, गोल्डन प्लोवर, पिनटेल आदि.
फेहरिस्त यहीं खत्म नहीं होती. यहां सैकड़ों प्रजाति के सांप पाए जाते हैं. इन में बहुत सारे भयंकर विषैले सांप हैं.
सुंदरवन के ये तमाम प्राकृतिक और वन्य संसाधन राष्ट्रीय ही नहीं, विश्व विरासत हैं. यही कारण है कि 1977 में यूनेस्को ने इसे वाइल्ड लाइफ सैंचुरी घोषित किया था. इस के बाद 1985 में इसे विश्व विरासत की सूची में शामिल कर लिया गया. लेकिन आज यह विशाल प्राकृतिक और वन्य संपदा समेत सुंदरवन पर पर्यावरण खतरा पहले से ज्यादा गंभीर होता जा रहा है. यहां के निवासियों के साथ इस क्षेत्र के सैकड़ों द्वीपों पर पर्यावरण खतरा गहराता जा रहा है. राज्य के पर्यावरणविदों का मानना है कि यह खतरा राज्य की राजधानी समेत बंगाल के दक्षिणी हिस्से को भी प्रभावित कर रहा है.
पर्यावरण समस्या की अनदेखी
पर्यावरणविद चंद्रशेखर भट्टाचार्य कहते हैं कि बंगाल की खाड़ी से उठने वाले समुद्री तूफान के वेग को तोड़ने का अहम काम यहां के मैनग्रोव के जंगल करते हैं. एक हद तक मैनग्रोव के ये जंगल टापुओं की भी रक्षा करते हैं. उधर जादवपुर के समुद्री विज्ञान विभाग का कहना है कि पिछले 37 वर्षों में 45 फीसदी मैनग्रोव के जंगल नष्ट हो चुके हैं. वहीं, जलस्तर बढ़ने से खाड़ी के पानी का खारापन बढ़ रहा है. इस से गाद तेजी से नरम पड़ती
जा रही है. नरम गाद से बनी जमीन को पानी में समाने में ज्यादा समय नहीं
लगता. ऐसे में आने वाले समय में अगर सुंदरवन के टापू खाड़ी के पानी में समा गए तो कोलकाता समेत दक्षिण बंगाल के कम से कम 2 जिलों, उत्तर और दक्षिण 24 परगना पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है.
सचाई यह भी है कि औद्योगिकीकरण और शहरीकरण एक समस्या है और हम सब इस समस्या को प्रत्यक्ष देख भी रहे हैं. लेकिन वैश्विक उष्णता से पैदा हुई समस्या को एक हद तक हम देख नहीं पाते हैं. इसलिए पर्यावरण की इस समस्या की अनदेखी कर रहे हैं.
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