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पूर्वोत्तर राज्य सात बहनों का सतरंगी संसार

पूर्वोत्तर के राज्यों में पर्यटन के लिए सब से अच्छी बात यह है कि एक बार टूर पर निकल कर पूरे पूर्वोत्तर की सैर की जा सकती है. पूर्वोत्तर में असम सहित 7 राज्य हैं और ये 7 बहनों के रूप में जाने जाते हैं. त्रिपुरा के एक पत्रकार ज्योति प्रसाद सैकिया ने पहली बार अपनी किताब में पूर्वोत्तर के 7 राज्यों को यह नाम दिया. असम के अलावा बाकी 6 बहनें मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा और मिजोरम हैं.
असम
पूर्वोत्तर राज्यों का रास्ता असम से हो कर जाता है. असम
का स्थानीय नाम अहोम है. थाईलैंड की अहोम जाति कभी यहां राज किया करती थी. विभिन्न नस्लों और पूर्वोत्तर की संस्कृतियों के संगम के अलावा असम चाय बागानों, फूल, वनस्पति, दुर्लभ नस्ल के गैंडों और यहां मनाए जाने वाले पर्वों, विशेष रूप से बिहू के लिए भी जाना जाता है.
असम के कांजीरंगा नैशनल पार्क का मुख्य आकर्षण एशियाई हाथी और एक सींगवाले गैंडे हैं. इस के अलावा बाघ, बारहसिंगा, बाइसन, बनबिलाव, हिरण, सुनहरा लंगूर, जंगली भैंस, गौर और रंगबिरंगे पक्षी भी हैं.
कांजीरंगा को बर्ड्स पैराडाइज भी कहा जाता है. नैशनल पार्क में हर तरफ घने पेड़ों के अलावा एक खास किस्म की घास, जो हाथी घास कहलाती है, भी देखने को मिलती है. वैसे, कांजीरंगा एलीफैंट सफारी के लिए ही अधिक जाना जाता है. यहां हर साल फरवरी में हाथी महोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है.
इस के अलावा असम के दर्शनीय स्थलों में एक है कामाख्या देवी का मंदिर, जो नीलांचल पर्वत पर स्थित
है. यहां का सालाना अंबुवाची त्योहार विश्वविख्यात है. प्राचीन शिव मंदिर उमानंद ब्रह्मपुत्र नदी के पीकौक टापू पर स्थित है.
गुवाहाटी से मात्र 369 किलोमीटर की दूरी पर शिवसागर है. असम की चाय और तेल व प्राकृतिक गैस के लिए शिवसागर जिला प्रसिद्ध है. यहां शिव मंदिर है, जो भारत का सब से ऊंचाई पर बने मंदिर के रूप में जाना जाता है. ये इलाके धर्मभीरु पर्यटकों को खासे भाते हैं.
ब्रह्मपुत्र पर सरायघाट पुल, बोटैनिकल गार्डन, तारामंडल, बुरफुकना पार्क और साइंस म्यूजियम, मानस नैशनल पार्क की भी गिनती असम के दर्शनीय स्थलों में होती है. पर्यटन के लिए यहां सब
से अच्छा समय अक्तूबर
से मई तक है.
अरुणाचल प्रदेश
असम, मेघालय पर्यटन के बाद अरुणाचल प्रदेश की यात्रा आसानी से की जा सकती है. असम के आगे का रास्ता अरुणाचल की राजधानी ईटानगर को जाता है. ईटानगर में 14वीं सदी का एक ऐतिहासिक किला है जो ईटा फोर्ट कहलाता है. यह 80 लाख ईंटों से बना किला है. मालुकपोंग भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है. यह खूबसूरत और्किड के फूलों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है. यहां और्किड फूलों का एक सैंटर है, टिपी और्किडोरियम. यहां ग्लासहाउस में सुरक्षित रखे गए 300 से भी अधिक विभिन्न प्रजातियों के और्किड के फूलों पर शोधकार्य भी होता है.
यहां हिमालय के नीचे से हो कर एक नदी बहती है, जो स्थानीय लोगों द्वारा गेकर सिन्यी कहलाती है, जिस का अर्थ
गंगा लेक है. राजधानी में जवाहरलाल नेहरू म्यूजियम, क्राफ्ट सैंटर, एंपोरियम टे्रड सैंटर भी हैं. इस के अलावा यहां चिडि़याघर और पुस्तकालय
भी हैं. टिपी और्किड सैंटर से 165 किलोमीटर की दूरी पर बोमडिला है. हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियां विशेष
रूप से गोरिचन और कांगटो
की चोटियां, मनोरम एहसास दिलाती हैं. यहां से लगभग 24 किलोमीटर की दूरी पर सास्सा में पेड़पौधों की एक सैंक्चुरी है. यहां 80 प्रजातियों के 2,600 पौधे हैं जो प्राकृतिक वातावरण में फूलतेफलते हैं. लगभग
100 वर्ग किलोमीटर में फैली इस सैंक्चुरी में मन को मोह लेने वाले प्राकृतिक दृश्य, ऊंचाई से गिरते झरने और बहती कामेंग नदी है. बलखाती सर्पीली पहाड़ी नदी कामेंग में एडवैंचर टूरिज्म के शौकीनों के लिए व्हाइट वाटर राफ्ंिटग का मजा कुछ और ही है. बोमडिला से 45 किलोमीटर की दूरी पर निरांग है जो मठों व गरम झरने के लिए विख्यात है. साथ ही, यह किवी फल के लिए भी मशहूर है. यहां एक खास प्रजाति के याकों और भेड़ का प्रजनन केंद्र है.
बोमडिला से तवांग 190 किलोमीटर की दूरी पर है. यह समुद्र से 12 हजार फुट ऊंचाई पर है. इसी रास्ते में सेला दर्रा है जो 14 हजार फुट की ऊंचाई पर है. यह विश्व का दूसरा सब से ऊंचा दर्रा कहलाता है. यहीं तवांग मठ है. यह जगह मठ के अलावा गुफाओं और झीलों के लिए भी प्रसिद्ध है.
इस के अलावा राज्य के दर्शनीय स्थलों में परशुराम कुंड, नैशनल पार्क और कई झील हैं.
नागालैंड
नागालैंड को किंग व राफ्ंिटग के लिए बेहतरीन स्थल कहा जाता है. इस राज्य में प्रवेश करने का गेटवे दिमापुर है. इस की वजह यह है कि हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन केवल दिमापुर में ही है. इसलिए दिमापुर नागालैंड का मुख्य शहर माना जाता है. दिमासा नदी के किनारे बसे होने के कारण इस का नाम दिमापुर है.
कोहिमा नागालैंड राज्य की राजधानी है और यह दिमापुर से 74 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां द्वितीय विश्वयुद्ध का स्मारक चिह्न है. कोहिमा के दक्षिण में 15 किलोमीटर की दूरी पर जापफू पीक नामक पहाड़ है, जिस की ऊंचाई समुद्रतट से 3048 मीटर पर है. सूर्योदय का दृश्य यहां से बड़ा खूबसूरत नजर आता है. जापफू पर्वत शृंखलाओं की चोटी से जुकोऊ वैली का खूबसूरत नजारा लिया जा सकता है.
पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र यहां का एक चर्च है.  राजधानी कोहिमा के नाम पर इसे कोहिमा कैथेड्रल चर्च कहा जाता है. यह भारत का विख्यात चर्च है, जो 25 हजार वर्ग फुट में फैला है.
यहां एक खूबसूरत दजुकोउ घाटी है. यह घाटी फूलों के खूबसूरत गुलदस्ते के रूप
में जानी जाती है. घाटी की पहाडि़यां सदाबहार जंगलों से पटी हुई हैं. जंगल के ऊंचेऊंचे पेड़ गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रिकौर्ड्स में शामिल हैं. करीब में सेइथेकिमा गांव है. यह जगह ट्रिपल फौल्स के लिए जानी जाती है. दरअसल, यह एक तिमंजिला झरना है.
चुमुकेदिमा नामक एक टूरिस्ट विलेज कौंप्लैक्स दिमापुर के करीब है, यहां से पूरे दिमापुर को देखा जा सकता है. इस के अलावा यहां से 74 किलोमीटर की दूरी पर दोयांग नदी के पास गवर्नर्स कैंप नामक टूरिस्ट स्पौट है. यहां पर्यटक रिवर राफ्ंिटग, फिश्ंिग और कैंपिंग करते हैं.
पर्यटन व परमिट से संबंधित जानकारी दिल्ली, कोलकाता और कोहिमा के पर्यटन निदेशालय से प्राप्त की जा सकती है. विदेशी पर्यटकों को भारत सरकार के गृह मंत्रालय से रेस्ट्रिक्टैड एरिया परमिट यानी आरएपी व प्रोहिबिटैड एरिया परमिट यानी पीएपी लेना जरूरी है. कम से कम 4 लोगों का ग्रुप होना जरूरी है. न्यूनतम 10 दिनों के लिए और अधिकतम 1 महीने के लिए चुनिंदा जिलों में पर्यटन की अनुमति दी जाती है.
त्रिपुरा
त्रिपुरा को नेचर, ईको और वाटर टूरिज्म के लिए जाना जाता है. राजधानी अगरतल्ला के आसपास कई अभयारण्य हैं. अगरतल्ला से 100 किलोमीटर की दूरी पर तृष्ण वन्यजीव अभयारण्य और 75 किलोमीटर की दूरी पर सेपाहीजाला अभयारण्य हैं. इन अभयारण्यों में लगभग 150 प्रजातियों के पक्षी और खास तरह के बंदर हैं.
कमला सागर झील अगरतल्ला से 27 किलोमीटर की दूरी पर है. यही
ईको पार्क है. यहां तेपानिया, कालापानिया, बारंपुरा, खुमलांग, जामपुई दर्शनीय स्थल हैं. राजधानी से 178 किलोमीटर की दूरी पर उनाकोटि पर्यटक स्थल है. यहां चट्टानों को काट कर व तराश कर अनेक कलाकृतियां बनाई गई हैं.
मिजोरम की सीमा जामपुई हिल है जो समुद्रतल से 914 मीटर की ऊंचाई पर है. यहां की सब से ऊंची चोटी बेतलोगछिप है. यह जामपुई हिल का ही हिस्सा है. इस के अलावा पुरातात्त्विक पर्यटन या धार्मिक पर्यटन का हिस्सा बौक्सनगर, गुनावती मंदिर, भुवनेश्वरी मंदिर, पिलक, देवतैमुरा हैं.
राजधानी अगरतल्ला से 55 किलोमीटर की दूरी पर रुद्रसागर झील के किनारे नीरमहल नामक मुगलकालीन स्थापत्य का एक खूबसूरत नमूना है. सर्दी के मौसम में झील में यायावर पक्षियों का जमघट लगा रहता है. त्रिपुरा में खोवाल, कमालपुर और कैलास नाम के 3 छोटे एअरपोर्ट भी हैं. ट्रेन के रास्ते गुवाहाटी से रेल यात्रा द्वारा भी यहां के स्टेशन कुमारघाट पहुंचा जा सकता है. वीजा ले कर यहां से बंगलादेश भी जाया जा सकता है.
मिजोरम
मिजोरम की राजधानी आइजोल 115 साल से भी पुराना शहर है. यह समुद्रतल से लगभग 4 हजार फुट ऊंचाई पर स्थित है. यहां एक म्यूजियम है, जो यहां की संस्कृति व इतिहास को संजोए हुए है. इस छोटे से शांत शहर से 204 किलोमीटर की दूरी पर चंफाई से म्यांमार तक का नजारा बखूबी देखा
जा सकता है. आइजोल से
85 किलोमीटर की दूरी पर टाडमिल लेक है. पर्यटक यहां बोटिंग करते हैं. यहां आसपास के जंगलों में प्रकृति की शोभा दर्शनीय है. यहां से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर वानतांग नाम का एक जलप्रपात है. यह राज्य का सब से ऊंचा स्थान है. यहां का थेंजोल हिल स्टेशन पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है.
ट्रैकिंग और एडवैंचर ट्रिप के लिए फावंगपुई है. यहां न केवल ट्रैकिंग और एडवैंचर का लुत्फ उठाया जा सकता है, बल्कि यहां से मिजोरम का पूरा नजारा भी दिखता है. यहां के पहाड़ों में वनौषधि, मसाले से ले कर विभिन्न किस्म के और्किड भी मिल जाते हैं. मिजोरम के उत्तरपश्चिम में मिजो हिल्स के पास डंपा अभयारण्य है. यहां हिरण, बाघ, चीता और हाथी पाए जाते हैं. यहां के अन्य दर्शनीय स्थानों में न्यू मार्केट, बर्मा लेन, सोलोमन केव, रिट्ज मार्केट, थाकथिंक बाजार आदि हैं.
मिजोरम का अपना कोई रेलवे स्टेशन नहीं है. असम के सिल्चर तक रेल से पहुंचा जा सकता है. सड़क के रास्ते सिल्चर से 7-8 घंटे की ड्राइविंग कर आइजोल पहुंचा जा सकता है. हां, यहां एअरपोर्ट जरूर है. भारत का सीमाक्षेत्र होने के कारण मिजोरम के बहुत सारे इलाकों में विदेशी पर्यटकों को जाने की इजाजत नहीं है. इस के लिए विशेष अनुमति लेनी पड़ती है.

लाहुल-स्पीति का अथाह सौंदर्य

चारों तरफ झीलों, दर्रों और हिमखंडों से घिरी, आसमान छूते शैल शिखरों के दामन में बसी लाहुल-स्पीति की घाटियां अपने सौंदर्य और प्रकृति की विविधताओं के लिए विख्यात हैं. जहां एक तरफ इन घाटियों की प्राकृतिक सौंदर्यता निहारते आंखों को सुकून मिलता है वहीं दूसरी तरफ हिंदू और बौद्ध परंपराओं का अनूठा संगम आश्चर्यचकित कर देता है. वैसे तो लाहुल-स्पीति दोनों को मिला कर एक जिला बनता है, लेकिन ये दोनों ही जगह अपनेअपने नाम के आधार पर सौंदर्य की अलगअलग परिभाषाएं गढ़ती हैं.
स्पीति 
स्पीति हिमाचल प्रदेश के उत्तरपूर्वी भाग में हिमालय की घाटी में बसा है. स्पीति का मतलब बीच की जगह होता है. इस जगह का यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यह तिब्बत और भारत के बीच स्थित है. यह जगह अपनी ऊंचाई और प्राकृतिक सुंदरता के लिए लोकप्रिय है. स्पीति क्षेत्र बौद्ध संस्कृति और मठों के लिए भी प्रसिद्ध है.
इतिहास : हिमालय की गोद में बसी इस जगह के लोगों को स्पीतियन कहते हैं. स्पीतियन लोगों का एक लंबा इतिहास है. इतिहास के पन्नों को पलटें तो पता चलता है कि स्पीति पर वजीरों का शासन था जिन्हें नोनो भी कहा जाता था. वैसे तो समयसमय पर स्पीति पर कई लोगों ने शासन किया लेकिन स्पीतियन लोगों ने किसी की गुलामी ज्यादा दिनों तक नहीं सही. वर्ष 1947 में देश की आजादी के बाद यह पंजाब के कांगड़ा जिले का हिस्सा हुआ करता था. 1960 में यह लाहुल-स्पीति नामक जिले के रूप में एक नए प्रदेश यानी हिमाचल प्रदेश के साथ जुड़ा. बाद में स्पीति को सब डिवीजन बनाया गया और काजा को मुख्यालय.
आबादी : स्पीति और उस के आसपास के क्षेत्रों को भारत में सब से कम आबादी वाले क्षेत्रों में गिना जाता है. इस क्षेत्र के 2 सब से महत्त्वपूर्ण शहर काजा और केलोंग हैं. कुछ वनस्पतियों और जीव की दुर्लभ प्रजातियां भी स्पीति के महत्त्व को बढ़ाती हैं. यहां के लोग गेहूं, जौ, मटर आदि फसलें उगाते हैं.
यातायात : स्पीति जाने के लिए सब से निकटतम हवाई अड्डा भुंतर है, जो नई दिल्ली और शिमला जैसे प्रमुख शहरों से जुड़ा है. अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक भुंतर एअर बेस के लिए दिल्ली से जोड़ने वाली उड़ानों का लाभ ले सकते हैं. स्पीति से निकटतम रेलवे स्टेशन जोगिंद्रनगर है, जो छोटी लाइन का रेलवे स्टेशन है. इस के अलावा स्पीति से चंडीगढ़ और शिमला नजदीकी प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं, जो भारत के प्रमुख शहरों से जुड़े हैं.
यात्री रेलवे स्टेशन से स्पीति के लिए टैक्सियों और कैब की सुविधा आसानी से ले सकते हैं. सड़क से स्पीति राष्ट्रीय राजमार्ग 21 के माध्यम से पहुंचा जा सकता है. स्पीति तक रोहतांग दर्रा और कुंजम पास दोनों से पहुंचा जा सकता है.
मौसम : नवंबर से जून तक भारी बर्फबारी के कारण स्पीति जाने वाले सभी मार्ग बंद हो जाते हैं. इसलिए वहां सर्दियों को छोड़ कर साल भर कभी भी आया जा सकता है. गरमी के मौसम में मई से अक्तूबर तक का महीना स्पीति आने के लिए अनुकूल है क्योंकि यहां का तापमान
15 डिगरी सैल्सियस से ऊपर नहीं जाता है. स्पीति बारिश के छाया क्षेत्र में स्थित है, इसलिए यहां ज्यादा बारिश नहीं होती है. सर्दियों के दौरान यह जगह बर्फबारी से ढक जाती है औैर तापमान शून्य डिगरी से नीचे चला जाता है.
दर्शनीय स्थल
स्पीति एक ऐसी घाटी है जहां सदियों से बौद्ध परंपराओं का पालन हो रहा है. यह घाटी अपने कई मठों के लिए देश और विदेश में विशेष स्थान रखती है. यहां कई मठ ऐसे हैं जिन की स्थापना सदियों पहले की गई थी. इन में तबो और धनकर मठ प्रमुख हैं.
तबो :  तबो मठ को स्पीति घाटी में 996 में खोजा गया. यह स्थान बहुत ही सुंदर है. यह पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है. बताया जाता है कि यह मठ हिमालय पर्वतमाला के सब से पुराने मठों में से एक है. यहां की सुंदर पेंटिंग्स, मूर्तिंयां और प्राचीन ग्रंथों के अलावा दीवारों पर लिखे गए शिलालेख यात्रियों को बहुत आकर्षित करते हैं.
धनकर : यह मठ धनकर गांव में है जोकि हिमाचल के स्पीति क्षेत्र में समुद्र तल से 3,890 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यह जगह तबो और काजा 2 प्रसिद्ध जगहों के बीच में है. स्पीति और पिन नदी के संगम पर स्थित धनकर, दुनिया की ऐतिहासिक विरासतों में भी स्थान रखता है.
काजा : काजा स्पीति घाटी का उप संभागीय मुख्यालय है. यह स्पीति नदी के बाएं किनारे पर खड़ी चोटी की तलहटी पर स्थित है. काजा में रैस्ट हाउस और रहने के लिए कई छोटेछोटे होटल बने हुए हैं. यहां से हिक्किम, कोमोक और लांगिया मठों पर घूमने जाया जा सकता है.
अन्य दर्शनीय स्थल
स्पीति आने वाले लोगों के लिए घूमने के स्थान की कमी नहीं है. यहां किब्बर, गेट्टे, पिन वैली, लिंगटी वैली, कुंजम पास और चंद्रताल कुछ ऐसी जगहें हैं जहां जाए बिना स्पीति की यात्रा पूरी नहीं होती.
लाहुल 
कुछ लोग इसे हिमालयन स्कौटलैंड कहते हैं. वैसे लाहुल को लैंड विद मैनी पासेस भी कहा जाता है क्योंकि लाहुल से दुनिया का सब से ऊंचा हाईवे गुजरता है जो इसे मनाली, लेह, रोहतांग ला, बारालाचा ला, लचलांग ला और तंगलांग ला से जोड़ता है.
नदियां : हिमालय की पर्वत शृंखलाओं से घिरे लाहुल में जो शिखर दिखाईर् देते हैं उन्हें गयफांग कहा जाता है. साथ ही, यहां चंद्रा और भागा नाम की 2 नदियां बहती हैं. इन्हें यहां का जलस्रोत माना जाता है. चंद्रा नदी को यहां के लोग रंगोली कहते हैं. इस के तट पर खोक्सर, सिसु, गोंढला और गोशाल 4 गांव बसे हुए हैं जबकि भागा नदी केलौंग और बारालाचा से बहती हुई चंद्रा में मिल जाती है. जब ये दोनों नदियां तांडी नाम की नदी में मिलती हैं तो इसे चंद्रभागा कहा जाता है.
भाषा और रोजगार : लाहुल की जमीन बंजर है, इसलिए यहां घास और झाडि़यों के अलावा ज्यादा कुछ नहीं उगता. स्थानीय लोग खेती के नाम पर आलू की पैदावार करते हैं. पशुपालन औैर बुनाई ही यहां के लोगों का प्रमुख रोजगार है. यहां के घर लकड़ी, पत्थर और सीमेंट के बने होते हैं. लाहुल के निवासियों की भाषा का वैसे तो कोई नाम नहीं है लेकिन इन की  भाषा लद्दाख और तिब्बत से प्रभावित है.
यातायात : लाहुल पहुंचने के लिए भी स्पीति की तरह भुंतर हवाई अड्डा एकमात्र साधन है. वैसे टैक्सियों औैर कैब के जरिए भी लाहुल पहुंचा जा सकता है. लाहुल का कोई अपना रेलवे स्टेशन नहीं है, इसलिए यात्रियों को पास में स्थित जोगिंदर नगर रेलवे स्टेशन उतरना पड़ता है. फिर वहां से टैक्सी और कैब से सड़क मार्र्ग द्वारा लाहुल जाया जाता है.
प्रमुख स्थल
लाहुल के आसपास घूमने के लिए केलौंग, गुरुकंटाल मठ, करडांग, शाशुर, तैयुल, गेमुर, सिसु और गोंढाल जैसे प्रमुख स्थल हैं जो किसी न किसी विशेषता की चादर ओढ़े हुए हैं.

पैगोडाओं का देश म्यांमार

प्लेन जब म्यांमार की राजधानी यांगोन पहुंचने से पहले म्यांमार के पानी से भरे हुए खेतों के ऊपर विशाल घंटों के आकार के बने बौद्ध मंदिरों और पैगोडाओं के ऊपर से गुजर रहा था, तब मैं बाहरी दुनिया से लगभग कटे हुए और हर जगह सैनिकों से घिरे हुए लोगों की कल्पना कर रहा था. पर क्या मेरी यह कल्पना सही थी? म्यांमार में कुछ दिन रहने के बाद मेरी कल्पना गलत साबित हो गई.
कहने की आवश्यकता नहीं कि आज का म्यांमार (1989 में बर्मा का नाम बदल कर म्यांमार कर दिया गया) अपने पड़ोसी एशियाई देशों की तुलना में 20 या 21 भले ही न हो, उन के बराबर कदम मिलाने की दिशा में आगे अवश्य बढ़ रहा है. वहां भी शहरों में सैटेलाइट डिश जगहजगह दिखाई पड़ती हैं जिन से अमेरिकी सीएनएन के साथ ही कोरियाई सोप कार्यक्रम और सीरियलों का प्रसारण चौबीसों घंटे होता रहता है. इस के साथ ही उस के प्राकृतिक संसाधनों सोना, रूबी, पैट्रोल, गैस और लकड़ी आदि से तो अच्छीखासी विदेशी मुद्रा मिलती ही है, चीन से उस का व्यापार भी बराबर बढ़ रहा है. राजधानी यांगोन (रंगून नाम बदल कर अब यांगोन कर दिया गया है) के साथ ही अन्य शहरों में भी व्यापारी व नौकरीपेशा लोग साफसुथरे सारोंग (म्यांमार की पोशाक) और धुली कमीज पहने मोबाइल पर बात करते नजर आते हैं. उपनिवेशकालीन विशाल भवनों के साथ 
ही फ्लैटों के आधुनिकतम बहुमंजिलीय ब्लौक भी जगहजगह दिख जाते हैं. पर यूरोपीय रंगढंग में रंगे आज के म्यांमार की राजधानी ठेठ एशियाई भी है, इस से इनकार नहीं किया जा सकता.
यांगोन के होटल में पहले ही दिन पता चल गया कि भारत के शहरों के समान वहां भी मच्छर हैं. सुबह नाश्ते के समय देखा कि होटल में इटली, स्पेन, फ्रांस, जरमनी और अमेरिका के साथ ही कोरिया, जापान, चीन, थाईलैंड, सिंगापुर आदि एशियाई देशों के लोग भी कम नहीं थे. सभी मच्छरों के संबंध में ही बातें कर रहे थे. कहने की आवश्यकता नहीं कि इन में से अधिकांश हमारे समान पर्यटक ही थे. उन्हें देख कर यह सोचा ही नहीं जा सकता था कि म्यांमार का यूरोपीय या एशियाई देशों ने बायकौट कर रखा है.
यांगोन, मंडाले और इराबादी नदी के आकर्षण के बावजूद म्यांमार की राजनीति से आप अछूते नहीं रह सकते. चाहेअनचाहे आप को इस से दोचार होना ही पड़ता है. सू की की आवाज दबाई जाती है, प्रजातीय अल्पसंख्यकों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है और सैंसरशिप व बेगार मजदूरी तो दिनप्रतिदिन की बातें हैं. एअरपोर्ट से बाहर निकलने के पहले ही एअरपोर्ट पर मोबाइल फोन ले लिए जाते हैं और यदि आप किसी प्रकार छिपा कर ले भी आए तो फोन कनैक्ट नहीं हो पाएगा. आप अपने होटल में ब्रौडबैंड पर इंटरनैट कनैक्ट कर के देखिए, हौटमेल और याहू कभी नहीं जुड़ पाएंगे. म्यांमार सरकार का नैटवर्क बिना सिमकार्ड के ही हर जगह सक्रिय है. बाहर से मोबाइल फोन लाने पर भले ही रोक हो, पर वहां सप्ताहभर के लिए या महीनेभर के लिए मोबाइल फोन किराए पर मिल जाते हैं. अंतर्राष्ट्रीय रोमिंग सुविधा वहां नहीं है. इन्हीं सब बातों के कारण लोगों से कहा जाता है कि वे म्यांमार नहीं जाएं.
खास हैं पैगोडा
फिर भी कहना पड़ता है कि म्यांमार के लोगों में यदि कुछ ताकत बची है, उन की अंत:चेतना जागृत है तो बौद्ध धर्म में निष्ठा के कारण. इस छोटे से देश में सैकड़ों ही नहीं हजारों पैगोडा हैं, फिर भी नएनए पैगोडा बनते देर नहीं लगती. लोग हैं कि नएनए पैगोडा बनाते जा रहे हैं. आप किसी भी समय जाएं, मंदिरों में दानपात्र क्यात (म्यांमार की मुद्रा) से ऊपर तक भरे दिखेंगे.
1991 में नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त आंग सान सू की और ब्रिटिश प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर द्वारा पर्यटकों के लिए म्यांमार के बहिष्कार की घोषणा की गई थी. उस के बाद से इस के पक्षविपक्ष में दुनियाभर में पत्रपत्रिकाओं में बराबर लिखा गया और अभी भी लिखा जा रहा है. यद्यपि सू की ने पर्यटकों को न आने के लिए कहा है पर उन का यह भी मत है कि पर्यटक ही दुनिया को म्यांमार के संबंध में सही स्थिति बता सकते हैं और म्यांमार के लोग ही पर्यटकों को देश की सही स्थिति बता सकते हैं.
होशियारी से लें काम
पर्यटकों से म्यांमार की सरकार को कम से कम लाभ हो, इस के लिए ऐसा किया जा सकता है कि महंगे होटलों में न ठहर कर सस्ते गैस्ट हाउस और प्राइवेट जगहों में ठहरें. कोशिश यही करें कि किसी बर्मी परिवार में ठहरें. पहचान यही है कि सरकारी होटलों और अन्य स्थानों के बाहर म्यांमार के राष्ट्रीय ध्वज फहरे रहते हैं व उन के नाम भी खासतौर पर शहरों या दर्शनीय स्थानों के नाम पर होते हैं. जिस होटल में ठहरें वहां खाना न खा कर बाहर किसी अन्य जगह खाएं और अलगअलग जगह खाएं. इसी प्रकार हस्तशिल्प की वस्तुएं बड़ी दुकानों से न ले कर छोटी दुकानों से या सीधे कारीगरों से लें. पैकेज टूर तो नहीं ही लें क्योंकि पैकेज टूर का सीधा नियंत्रण सरकार के हाथ में रहता है. इसी प्रकार होटल से टूर लेने की अपेक्षा स्वयं टैक्सी तय कर भ्रमण का कार्यक्रम बनाएं. इस से आप को बचत तो होगी ही, आप के द्वारा दिया गया पैसा सीधे जनता को ही मिलेगा.
म्यांमार आश्चर्यजनक रूप से अंतर्विरोधों का देश है जिस के लोगों ने शताब्दियों तक उत्पीड़न सहा है. (कुबला खान से ले कर जौर्ज छठे तक) वे आधुनिक समय में सैनिक शासन तक का डट कर सामना करते आ रहे हैं. यहां 1962 से सैनिक शासन है. 1987-1988 में देशभर में शांतिपूर्ण प्रदर्शन और सरकार विरोधी आंदोलन व अंतर्राष्ट्रीय दबाव के कारण 1990 में चुनाव कराए गए पर उस में उस समय आंग सान सू की नजरबंदी के बावजूद उन की पार्टी ने 82 प्रतिशत मतों से विजय प्राप्त की पर जुंटा शासक ग्रुप ने सत्ता हस्तांतरण नहीं किया. शायद इसी कारण इस समय दक्षिणपूर्व एशिया के देशों में सब से कम पर्यटक म्यांमार में आते हैं.
अमेरिका और ब्रिटेन द्वारा 2003 में लगाए गए व्यापारिक प्रतिबंध के बावजूद पड़ोसी देश थाईलैंड, मलयेशिया, सिंगापुर, लाओस आदि ने इसे नहीं माना. सब से अधिक व्यापारिक संबंध तो चीन के साथ हैं. म्यांमार की अर्थव्यवस्था का 60 प्रतिशत से अधिक इस समय चीन के नियंत्रण में है. भारत से भी म्यांमार के व्यापारिक संबंध हैं, और तो और 2004 में म्यांमार के प्रधानमंत्री पहली बार राजकीय यात्रा पर भारत आए. बंगलादेश से भी म्यांमार की व्यापारिक संधि है. 
1989 में बर्मा की सरकार ने देश का नाम तो बदला ही, बर्मा के कुछ शहरों के नाम भी बदल दिए गए. तर्क यह था कि पहले के नाम उपनिवेशवादी नाम थे यानी अंगरेजों द्वारा रखे गए थे और नए नाम मूल बर्मी नाम हैं जैसे बर्मा से बदल कर म्यांमार और राजधानी रंगून से बदल कर यांगोन कर दिया जाना. इसी प्रकार इरावदी का नाम अब अय्यारवादी है. शहरों में पेगू अब बागो है, पगान बागान है और सेंडावे थांडवे है. बर्मी लोग अब बमार, करेन लोग कायिन और अराकानीज लोग राखेंग कहलाते हैं. यद्यपि बर्मा का नाम बदल कर अब सरकारी तौर पर म्यांमार कर दिया गया है पर वहां की मुख्य विरोधी पार्टी इस परिवर्तन को स्वीकार नहीं करती. 
भाषा वैज्ञानिकों की दृष्टि में दोनों ही नाम सही हैं. म्यांमार औपचारिक नाम है जो राजाओं के समय में प्रचलित था पर ऐतिहासिक दृष्टि से ‘बामा’, जिस से बर्मा बना, बोलचाल में अधिक आता है. ऐतिहासिक दस्तावेजों में दोनों ही नाम मिलते हैं. 
वैसे भी आंग सान ने अपने स्वतंत्रता आंदोलन का नाम ‘दोह बामा एसोसिएशन’ रखा था क्योंकि उन की दृष्टि में ‘बामा’ शब्द में देश के प्रत्येक वर्ग के लोग आ जाते हैं जबकि म्यांमार शब्द में केवल बहुसंख्यक बामर लोग ही आते हैं. इसी कारण वहां की अल्पसंख्यक जातियां मोन, शान, चिन, कायिन, कचीन और कायाह म्यांमार नाम मानने से इनकार करती हैं. उन को भय है कि वहां की सैनिक सरकार म्यांमार नाम का प्रयोग कर उन की पहचान मिटा देना चाहती है.
दिलचस्प है इतिहास
म्यांमार में इतनी अधिक जातियों के लोग रहते हैं कि उन के संबंध में निश्चित रूप से कुछ भी कहना संभव नहीं है कि वे मूल रूप से बर्मी हैं या नहीं. स्वयं म्यांमार की सरकार ने ही कम से कम 135 अलगअलग वर्गों के लोगों को मान्यता दी है और इन में भी बामर या बर्मन लोगों की अधिकता है. इन्हीं लोगों की भाषा बर्मी, म्यांमार की राष्ट्रभाषा है. म्यांमार की पूरी आबादी के लगभग 70 प्रतिशत लोग बर्मन हैं. इन्हीं के हाथों में सत्ता और व्यापार है और इसी कारण अन्य लोगों द्वारा ये बराबर संदेह की दृष्टि से देखे जाते हैं.
म्यांमार में किसी समय भारतीय लोग भी काफी संख्या में थे. ब्रिटिश शासन में रंगून और मंडाले में 60 प्रतिशत से अधिक लोग भारतीय थे, पर अब यह संख्या घट कर काफी कम रह गई है. 
इस समय पूरे म्यांमार में 
2 प्रतिशत से भी कम भारतीय रह गए हैं. बर्मा में भारतीयों का आगमन 19वीं सदी में शुरू हुआ जब बर्मा ब्रिटिश साम्राज्य का एक भाग बना. ब्रिटिशकाल में भारतीय लोग प्रशासनिक पदों के साथ ही व्यापार में भी सक्रिय थे. काफी लोग श्रमिक के रूप में भी ब्रिटिश सरकार द्वारा वहां लाए गए. 
धीरेधीरे बहुतों ने वहां जमीन खरीद ली, मकान बनवाए और साहूकारी का धंधा भी शुरू किया. बाद में बर्मा पर जापान के आक्रमण के बाद बहुतों को भारत लौटना पड़ा. उस के बाद जो बचे रहे वे बर्मा की स्वाधीनता के बाद लगभग नगण्य से रह गए. म्यांमार में अधिकांश भारतीय दक्षिण भारत से आए हैं. उन में यद्यपि हिंदुओं की प्रमुखता है पर मुसलमान भी कम नहीं हैं जिन के पूर्वज आजकल के पाकिस्तान, बंगलादेश और नेपाल से आए हुए हैं.
नया है अंदाज
यह कहना गलत नहीं होगा कि 35 वर्षों से भी अधिक समय तक बर्मा विदेशी पर्यटकों के लिए एक प्रकार से बंद ही रहा. पर अब वहां की सैनिक सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन के लिए म्यांमार के दरवाजे खोल दिए हैं और अब आसानी से वीजा मिल जाता है. म्यांमार पहुंचने के बाद यांगोन आप्रवास कार्यालय में वीजा की अवधि बढ़वाने में भी कोई मुश्किल नहीं होती. म्यांमार पहुंचने के बाद सभी विदेशी पर्यटकों को पुलिस में रजिस्ट्रेशन कराना आवश्यक होता है. 
यदि आप किसी होटल में ठहरते हैं तो वहां के रजिस्टर में तो रजिस्ट्रेशन होगा ही, इसलिए फिर से पुलिस में रजिस्ट्रेशन कराना आवश्यक नहीं होता. पर यदि किसी मठ या प्राइवेट मकान में या किसी मित्र या परिचित के यहां ठहरते हैं तो रजिस्ट्रेशन कराना आवश्यक है अन्यथा बाद में परेशानी हो सकती है. देश में कहीं आनेजाने पर भी विदेशियों पर अब कोई प्रतिबंध नहीं है. इसलिए कहा जा सकता है कि म्यांमार जाने के लिए इस से अच्छा समय कभी नहीं रहा.
यदि म्यांमार में कोई महंगी चीज खरीदनी हो तो टूरिस्ट डिपार्टमैंट स्टोर, एअरपोर्ट पर ड्यूटी फ्री दुकान या शहरों में आधिकारिक दुकानों से ही खरीद कर रसीद ले लेनी चाहिए अन्यथा बाहर ले जाने पर परेशानी हो सकती है. यद्यपि विदेशी मुद्रा लाने पर वहां रोक नहीं है. भारतीय रुपया भी दुकानों पर ले लिया जाता है पर सर्वश्रेष्ठ मुद्रा अमेरिकी डौलर ही है. यूरो और पाउंड भी कहीं भी स्वीकार किए जा सकते हैं पर उन का रेट वहां अच्छा नहीं मिलता.
 

दिलकश नजारों का शहर दुबई

28 जून की उस तपती दोपहर मरुधरा जोधपुर से दिल्ली के लिए उड़ान भरते वक्त यह एहसास भी नहीं था कि 5 दिन बाद जब हम लौटेंगे तो खट्टीमीठी यादों की इतनी अनगिनत पोटलियां हमारे इर्दगिर्द लटकी होंगी कि हम से संभाले नहीं संभलेंगी.
जोधपुर से कोटा अपने शहर तक की वापसी सड़कयात्रा के दौरान भी हम अपनी ये पोटलियां संभालतेखंगालते रहे. छिटपुट बारिश और हलकेफुलके नाश्ते के मध्य पोटलियों से मीठीमीठी सुमधुर यादों का छलकना पूरे रास्ते मन को उत्फुल्ल बनाए रहा. पर आदत से लाचार लेखकीय मन कलम थामने और कागज रंगने को बेताब हो रहा था. इसलिए एक दिन जब सभी को स्कूल, औफिस भेज कर थोड़ी फुरसत की सांस ली तो यादों की अब तक समेटी पोटलियां खुद ही एकएक कर खुलने लगीं.
जोधपुर से दिल्ली 55 मिनट का हवाई सफर पलक झपकते ही कट गया था. इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे की छटा निराली थी. वहां की सफाई, साजसज्जा देख कर स्वयं के भारतीय होने पर गर्व हो आया था. फूड वेस्ट, पेपर वेस्ट, रिसाइक्लेबल वेस्ट आदि के लिए अलगअलग डस्टबिन थे. पासपोर्ट, वीजा चैकिंग की प्रक्रिया बेहद लंबी व चुनौतीपूर्ण थी.
हम हैरान थे कि इतने तामझाम और सुरक्षा बंदोबस्त के बीच भी कैसे आतंकवादी गतिविधियां घट जाती हैं. हमारे पेरैंट्स भी साथ थे. उन की दवा आदि लेने के लिए रखी छोटी सी पानी की बोतल भी सिक्योरिटी से निकालना भारी पड़ गया क्योंकि नियमानुसार हवाईयात्रा में तरल पदार्थ को ले जाने की इजाजत नहीं है.
एअरपोर्ट पर हम ने खूब तसवीरें लीं. दुबई तक का 3 घंटे का हमारा हवाई सफर आरामदायक रहा. वहां पहुंचते ही हम ने अपनी घडि़यां डेढ़ घंटा पीछे कर लीं. रात को 12 बज रहे थे लेकिन घड़ी के अलावा और कहीं गहन रात्रि होने का आभास नहीं था. चकाचौंध लाइट्स और यात्रियों की गहमागहमी से एअरपोर्ट गुलजार था.
अपनेपन का एहसास
बुर्का पहने औरतों और शेख की वेशभूषा के अलावा उन का सभी कुछ आधुनिक था. आधे से ज्यादा लोग हिंदुस्तानी थे या पाकिस्तानी और हिंदी या अंगरेजी भाषा का इस्तेमाल कर रहे थे. उन का मेकअप, ऐक्सैसरीज, एक्सैंट, शिष्टाचार सभीकुछ हमें सहज बनाते चले गए. हमें लग रहा था हम अपने ही देश में हैं. लेकिन जल्द ही स्वदेश में होने का एहसास लुप्त हो गया क्योंकि एक बार फिर हमें इमीग्रेशन की सख्त प्रक्रिया से गुजरना पड़ा.
एअरपोर्ट से ले कर वहां की किसी भी महत्त्वपूर्ण इमारत, यहां तक कि होटल तक में घुसने पर भी पासपोर्ट, वीजा चैकिंग की प्रक्रिया से दोचार होना पहले दिन से ही हमारी आदत में शुमार हो गया था. कई जगह प्रवेश के पूर्व तसवीर भी उतारी जाती थी. जैसा कि हमें पहले से चेता दिया गया था, वहां सबकुछ सहज उपलब्ध था सिवा डिं्रकिंगवाटर के. होटल में डिं्रकिंगवाटर मंगवाने पर जूस पेश कर दिया जाता था. 
हमारा विदेशभ्रमण का यह पहला अवसर था. और मुझे यह स्वीकारने में कोई संकोच नहीं हो रहा कि मैं ने इतनी स्वच्छ सड़कें, इतना सुरक्षित यातायात, वह भी बिना किसी वरदी वाले की उपस्थिति के पहली बार देखा था. चूंकि हम एक हौलीडे प्लानर के तहत इस यात्रा पर गए थे इसलिए हमें घुमानेफिराने के लिए बढि़या से बढि़या एअरकंडीशंड गाडि़यां, ड्राइवर और गाइड उपलब्ध थे. और नोटिस करने योग्य बात यह थी कि ये 
सभी या तो हिंदुस्तानी थे या पाकिस्तानी और आराम से हिंदी मिश्रित अंगरेजी में बात कर रहे थे. बड़ा अच्छा लगा यह देख कर कि वहां हिंदुस्तानी, पाकिस्तानी एक ही ब्रीड के माने जाते हैं. उन्होंने हमें दुबई के बारे में कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां उपलब्ध करवाईं. मसलन, वहां किसी भी तरह का 
कोई टैक्स नहीं लगता, न सर्विसटैक्स, न सैल्सटैक्स और न ही इन्कमटैक्स.
नियम और कायदे
यह जान कर आश्चर्य हुआ कि जहां दाऊद इब्राहीम जैसा डौन रहता हो वहां जीरो क्राइम है. क्योंकि वहां के कानून बेहद सख्त हैं. हम इंडियंस 
के लिए ये सभी बातें अविश्वसनीय सी थीं. उन्होंने हमें स्पष्ट कर दिया कि यदि हम ने सड़क पर या डस्टबिन के अलावा कहीं भी कुछ गिराया, यहां तक कि उन की गाड़ी को भी गंदा किया, तो 500 दिरहम इंडियन करैंसी में 8,500 रुपए फाइन देना होगा. हम सोचने लगे, ये कितने सख्त दिल वाले लोग हैं. लेकिन कदमकदम पर उन की सहृदयता देख हम अभिभूत हो गए. कहीं भी गाड़ी से चढ़नाउतरना या ज्यादा चलना होता वे आगे बढ़ कर पेरैंट्स का हाथ थाम लेते थे. सुबह से देर रात तक गधों की तरह काम में जुटे रहते हैं. रात को बिस्तर पर निढाल पड़ जाते हैं. सुबह फिर काम पर निकल पड़ते हैं.
सैड ड्यून पर कू्रजर से सवारी के दौरान बेटी का जी मिचलाने लगा तो ड्राइवर ने काफिले का साथ छोड़ दिया और एक साइड में गाड़ी रोक दी. गाड़ी से ठंडा पानी निकाल कर लाया, ‘जब गुडि़या की तबीयत संभलेगी तभी हम आगे बढ़ेगी.’ उस का अरबी अंदाज में बातचीत करना बेटे को बहुत गुदगुदा रहा था. वह मेरे कान में फुसफुसाया, ‘ये अंकल मूवीज की नकल करते हुए बोलते हैं. मूवीज में शेख ऐसे ही बोलते हैं.’ मैं ने उसे समझाया, ‘यह उन की नकल नहीं कर रहा. ऐक्टर्स इन की नकल कर के बोलते हैं.’
गाइड द्वारा प्रस्तुत एक और तथ्य हमें हैरान कर गया और वह था नागरिकता संबंधी नियम. उस ने बताया कि आप चाहे यहां 100 साल रह जाओ, यहां के पुरुष या स्त्री से शादी कर लो पर आप यहां की नागरिकता हासिल नहीं कर सकते. आप का बर्थ चाहे यहां का हो पर आप के पेरैंट्स 
यहां के नहीं हैं तो भी आप को यहां की नागरिकता नहीं मिल सकती.
दुबई सिटी दर्शन के दौरान हम ने जुमैरा बीच, बुर्ज अल अरब, बुर्ज खलीफा, अटलांटिस पाम, दुबई मौल, मौल ए एमीरैट्स, दुबई म्यूजियम आदि खूबसूरत दर्शनीय स्थलों की सैर की. साथ ही, जम कर फोटोग्राफी भी की. बुर्ज खलीफा दुनिया की सब से ऊंची मीनार है. 124 मंजिली इस इमारत की आखिरी मंजिल पर एलिवेटर से पहुंचने में हमें मात्र 64 सैकंड लगे. और आश्चर्य, इतनी तीव्र गति का हमें एहसास तक नहीं हुआ. वह तो ऊपर पहुंच कर नीचे का नजारा देखा तब विश्वास हुआ कि हम कितनी ऊंचाई पर 
हैं. उतरते वक्त म्यूजिकल फाउंटेन के दिलकश नजारे ने मन मोह लिया. लग रहा था किसी मुगल गार्डन में पहुंच गए हैं.
वक्त की पाबंदी इतनी कि हमें कभी कहीं इंतजार नहीं करना पड़ा. एक और बात जिस ने हमें हैरत में डाला, वह थी कदमकदम पर बुर्कों में खड़ी महिला वौलंटियर्स. उन का मेकअपयुक्त चेहरा और नफासतभरी अंगरेजी मन मोह लेती थी. पुरुष वौलंटियर्स सफेद चोगे और सफेद स्कार्फ में नजर आते थे. सभी मुस्तैद और पगपग पर मदद करने को तत्पर. पूरा शहर बेहद खूबसूरत और व्यवस्थित तरीके से बसा हुआ है. एक जैसे आवास, गगनचुंबी इमारतें और मीनारें मन मोह लेने वाली थीं. ट्विस्टिड टावर देखने से लगता है कि बीच से इस इमारत को 90 डिगरी के एंगल पर मोड़ दिया गया है.
पहले दिन सिटी भ्रमण के बाद हम ने होटल आ कर आराम किया. फिर सैंड ड्यूंस पर जाने के लिए दूसरी गाड़ी में सवार हुए. टीलों पर गाड़ी चढ़ाने से पहले ड्राइवर ने पहियों की आधी हवा निकाल दी थी. फिर सब के सीटबैल्ट कस दिए थे. इस के बाद 20-25 गाडि़यों का काफिला टीलों पर भागने लगा था. 
टीलों के बीच बने गंतव्यस्थल तक पहुंचतेपहुंचते हम सब बेदम हो चुके थे. पर वहां पहुंचते ही जो बैठने, खानेपीने, नृत्यसंगीत आदि 
की व्यवस्था देखी तो सारी थकान छूमंतर हो गई. जूस, चाय, कौफी, स्नैक्स सबकुछ अपरिमित मात्रा में पेश किया जा रहा था.
एक बुर्कानशीन सभी महिलाओं के मेहंदी लगा रही थी. कुछ ही देर में बीच में बने मंच पर अरबी नृत्य आरंभ हो गया. घेरदार घाघरा पहने पुरुष लगातार गोलगोल घूमते 40 मिनट तक ‘तनूरा नृत्य’ करते रहे. फिर एक लड़की ने बैले नृत्य प्रस्तुत किया. शरीर का एकएक अंग उस ने तोड़मरोड़ कर रख दिया था. इस के बाद हम ने कैमल सफारी का आनंद लिया. बेटे ने सैंड पर स्पैशल बाइकराइड की. रंगबिरंगी रोशनी के बीच हम ने अरबी, भारतीय, सामिष और निरामिष भोजन का आनंद लिया.
यूएई जाने से पूर्व हमारे मन में यह डर बैठा हुआ था कि वहां सिर्फ नौनवेज और सीफूड ही मिलता है. लेकिन सब मिथ्या साबित हुआ. हमें हर जगह हमारी पसंद का शाकाहारी नाश्ता, खाना मिला. यहां तक कि एक दिन ‘मिनी पंजाबी’ रैस्तरां में हम ने पारंपरिक राजस्थानी थाली भी खाई. कढ़ी, खिचड़ी, बाजरे की रोटी, गुड़, छाछ, गट्टा करी, दालआलू, खमण, सिवइयों की खीर आदि का हम ने छक कर आनंद उठाया.
शौपिंग का आनंद
30 जून, 2013. लंच के पहले का हमारा समय शौपिंग के लिए नियत था. दुबई अपने गोल्ड और इलैक्ट्रौनिक्स आइटम्स के लिए विश्वविख्यात है. वहां के ये उत्पाद क्वालिटी में अव्वल और कीमत में कम होते हैं. हम ने 1 लैपटौप, 2 टैबलेट और 1 मोबाइल खरीदा. 
बच्चों के चेहरे मनपसंद उपहार पा कर खुशी से दमक रहे थे. लंच के बाद हम मीना ज्वैलर्स गए. वहां सोने की ढेरों वैरायटी थीं. व्हाइट, कौपर, गोल्ड, 18 कैरेट, 21 कैरेट, 22 कैरेट. एक स्क्रीन पर सोने के घटतेबढ़ते दाम डिस्प्ले हो रहे थे.
दुबई के सोने के बारे में यह विख्यात है कि विश्व के किसी भी कोने में उस की शुद्धता की परख करा ली जाए और उस में .01 प्रतिशत भी खोट निकल जाए तो जिस दुकान से वह खरीदा गया था वह सीज हो जाती है. इसलिए हम ने बिना किसी भय के अपनी पसंद की ज्वैलरी खरीदी. ज्वैलरी में इतनी वैरायटी और वह भी थोक के भाव से मैं पहली बार देख रही थी.
आज के डिनर का आयोजन कू्रज पर था. रंगबिरंगी रोशनी में जगमगाते कू्रज पर हमारा भव्य स्वागत हुआ. फिर हम लोगों ने जम कर केक और डिनर का लुत्फ उठाया.
दूसरे दिन सुबह होटल से बे्रकफास्ट करने के बाद गाड़ी हमें स्नोपार्क ले गई. बाहर तापमान 40 डिगरी था और अंदर था -4 डिगरी. गमबूट्स, जैकेट्स, ग्लव्स, टोपियां पहन कर हम सैंड, कू्रज के बाद अब बर्फ की सवारी के लिए तैयार थे. वहां स्लाइड, ट्यूब, स्ंिवग के साथसाथ हम ने एकदूसरे पर बर्फ फेंकने का भी खूब आनंद उठाया. एक छोटे से पूल के इर्दगिर्द कई पैंगविन भी घूमती नजर आईं.
अब वक्त था दोस्तों, रिश्तेदारों के लिए उपहार खरीदने का. हम ने कई सारी दुकानें देखीं. परफ्यूम, डियो, घडि़यां, कौस्मैटिक्स, चौकलेट्स आदि खरीदे. आश्चर्य की बात थी कि कुछ दुकानों में भरपूर मोलभाव हो रहा था तो कुछ में एकदम फिक्स्ड प्राइस था. कहना मुश्किल था कि हम घाटे में रहे या लाभ में. लेकिन भारत लौटने पर जब सभी ने दिल खोल कर तोहफों को सराहा तो हमें सुकून हो गया कि हम लाभ में ही रहे.
उस के बाद 2 जुलाई को बे्रकफास्ट के बाद हम अटलांटिस पाम में शिफ्ट हो गए थे. यह 7 स्टार होटल अपनेआप में एक अलग दुनिया है. एक कंपलीट एंटरटेनमैंट पैकेज – डौल्फिन बे, द लौस्ट चैंबर फिश एक्वेरियम, जहां 65 हजार किस्मों के समुद्री जीव और मछलियां हैं, एक्वावैंचर वाटरपार्क जहां एकसाथ 5 हजार लोग पूल ऐक्टिविटी का आनंद उठा सकते हैं, मोनो रेल, स्वीमिंग पूल्स, स्पा जकूजी क्लब, रौयल बीच, सैफ्रौन और कैलोडियोस्केम जैसे रेस्तरां,? जहां बे्रकफास्ट में हमें 418 डिशेज पेश की गईं. कमरे में घुसते ही बड़ी सी टीवी स्क्रीन पर अपने नाम का स्वागत संदेश पढ़ कर दिल खुश हो गया था.
वहां चलने वाली मोनो रेल से हम ने पूरा दुबई देखा. रौयल बीच और ऐक्टिविटी पूल में नहाने का आनंद लिया. कांच की बड़ीबड़ी दीवारों के पार तरहतरह की मछलियां, समुद्री जीव देखे. नाइट क्लब में पाश्चात्य परिधान में संगीत की धुन पर थिरके. एक्वावैंचर में ढेर सारे वाटर स्पोर्ट्स का आनंद उठाया. स्पा और फिटनैस सैंटर में जा कर अपनी थकान मिटाई. होटल की ग्रांड लौबी में बैठ कर झरनों और पिआनो का लुत्फ उठाया. इस होटल में 3 हजार लोगों का स्टाफ है जो 42 देशों से हैं और 68 विभिन्न तरह की भाषाएं बोलते हैं.
होटल से विदाई के वक्त एक खूबसूरत बाला हमारे कमरे में उपस्थित हुई और हमें मुबारकबाद देते हुए एक खूबसूरत सा नजराना थमा कर चली गई. खोलने पर उस में से ढेर सारे स्विस चौकलेट्स निकले. दिल्ली पहुुंच कर हम ने अपनी घडि़यां फिर से 1.30 घंटा आगे कर ली थीं. पर दिल और दिमाग शायद वहीं कहीं पीछे छूट गया था.   

बेमिसाल सिंगापुर

कहा जाता है कि 14वीं शताब्दी में सुमात्रा द्वीप का एक हिंदू राजकुमार जब शिकार हेतु सिंगापुर द्वीप पर गया तो वहां जंगल में सिंहों को देख कर उस ने उक्त द्वीप का नाम सिंगापुरा रख दिया. दक्षिणपूर्व एशिया में निकोबार द्वीप समूह से लगभग 1,500 किलोमीटर दूर एक छोटा, सुंदर व विकसित देश सिंगापुर पिछले 20 वर्षों से पर्यटन व व्यापार के प्रमुख केंद्र के रूप में उभरा है. आधुनिक सिंगापुर की स्थापना 1819 में सर स्टेमफोर्ड रेफल्स ने की जिन्हें ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी के रूप में दिल्ली स्थित तत्कालीन वायसराय द्वारा कंपनी का व्यापार बढ़ाने हेतु सिंगापुर भेजा गया था. आज भी सिंगापुर के डौलर व सेंट के सिक्कों पर आधुनिक नाम सिंगापुर व पुराना नाम सिंगापुरा अंकित रहता है. 1965 में मलयेशिया से अलग हो कर नए सिंगापुर राष्ट्र का उदय हुआ.
वहां पानी मलयेशिया से, दूध, फल व सब्जियां न्यूजीलैंड व आस्ट्रेलिया से, दाल, चावल व अन्य दैनिक उपयोग की वस्तुएं थाईलैंड व इंडोनेशिया आदि से आयात की जाती हैं.
पर्यटन व सिंगापुर
पर्यटन सिंगापुर की अर्थव्यवस्था का एक मुख्य आधार है. अपराध की दर बहुत कम है. वहां का औरचैड रोड क्षेत्र, जहां मल्टीस्टोरी शौपिंग सैंटर तथा होटल हैं, पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र है. वहां पर्यटकों को शौपिंग की सारी चीजें एक ही स्थान पर आसानी से मिल जाती हैं.
दर्शनीय स्थल
सिंगापुर का ‘जू’ हर पर्यटक में उत्कंठा तथा रोमांच पैदा करता है. वहां पर घूमते जानवर पर्यटकों के साथ रूबरू होते हैं, उन्हें बंद सलाखों में नहीं रखा गया है. इसी प्रकार ‘जूरोंग बर्ड पार्क’ एशिया प्रशांत क्षेत्र का सब से बड़ा पक्षी पार्क है. वहां पक्षियों की 8 हजार से ज्यादा प्रजातियां हैं. पर्यटक इन पक्षियों तथा इतनी सारी प्रजातियों को देख कर हर्षित और आकर्षित होते हैं.
जू में दक्षिणी ध्रुव का कृत्रिम वातावरण बना कर ‘पेंग्विन पक्षी’ रखे गए हैं, जिन्हें देख कर बच्चे रोमांचित होते हैं. वहां 30 मीटर ऊंचा मानव निर्मित जलप्रपात भी है. वहां का ‘बर्ड शो’ विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जहां पक्षी टैलीफोन पर बात करते हैं, जो सभी पर्यटकों को खूब आकर्षित करता है.
रोमांच से भरपूर पार्क : सिंगापुर का ‘रैप्टाइल पार्क’ पर्यटकों में रोमांच पैदा करता है. वहां 10 फुट लंबे जिंदा मगरमच्छ के मुंह में प्रशिक्षक द्वारा अपना मुंह डालना अपनेआप में रोमांचकारी प्रदर्शन है. कोबरा सांप का चुंबन लेना भी पर्यटकों में रोमांच पैदा करता है.
प्रमुख संग्रहालय एवं म्यूजियम : सिंगापुर में प्रमुख रूप से 3 संग्रहालय हैं जो वहां की संस्कृति से भरपूर है. सिंगापुर म्यूजियम में सिंगापुर की आजादी की कहानी ‘थ्री डी’ वीडियो शो द्वारा बताई जाती है. इस आजादी की लड़ाई में भारतीयों का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है. वीडियो शो को देख कर हर भारतीय गर्व महसूस करता है. कल्चरल म्यूजियम में विभिन्न जातियों के त्योहारों को प्रदर्शित किया गया है जिन में दशहरा, दीवाली आदि पर्वों का महत्त्व बताया गया है.
जूलौजिकल गार्डन में एनिमल फीडिंग शो तथा लौयन डांस शो हर दर्शक का मन मोह लेते हैं. ‘सिलोसा फोर्ट’ ऐतिहासिक म्यूजियम है. इसे द्वितीय विश्व युद्ध के समय जापानियों के विरुद्ध युद्ध में अपने को सुरक्षित करने के लिए बनाया गया था. द्वितीय विश्व युद्ध की बंदूकें वहां पर देखी जा सकती हैं. वहां पर ‘टाइगर स्काई टावर’ भी बनाया गया है जहां से पर्यटक पूरे ‘सन्टोसा’ का दृश्य देख सकते हैं. इस के अलावा मेरलौयन भी आकर्षक जगह है.
सिंगापुर में खरीदारी : सिंगापुर में खरीदारी की अनेक जगहें हैं, जैसे ‘मैरीना बे’, ‘बुगीस स्ट्रीट’, ‘चाइना टाउन’, ‘गेलौग सराय’, ‘कैंपपौंग जिलम’, ‘अरब स्ट्रीट’, ‘लिटिल इंडिया’, ‘नौर्थ ब्रिज रोड’, ‘औरचैड रोड’ तथा ‘द सुबर्ब’ आदि. वहां पर पर्यटक अपनी रुचि के अनुसार खरीदारी कर सकते हैं. लिटिल इंडिया मार्केट में सभी भारतीय चीजें उपलब्ध हैं, जैसे कपड़े, मसाले, मूर्तियां आदि. इसी प्रकार ‘चाइना टाउन’ में सारा सामान ‘चाइना’ द्वारा बनाया हुआ मिलता है. वैसे ‘औरचैड रोड’ पर अनेक मल्टीस्टोरी शौपिंग मौल हैं जहां पर हर देश के पर्यटक को अपनी रुचि के अनुसार सामान मिल जाता है. इसी क्षेत्र में कई होटल भी हैं जहां पर्यटक रहना पसंद करते हैं.
वर्ष 2007 में सिंगापुर टूरिज्म बोर्ड ने ‘लेट नाइट शौपिंग’ की शुरुआत की. पर्यटक औरचैड रोड के शौपिंग मौल्स में 11 बजे तक शौपिंग कर सकते हैं, साथ ही हर शनिवार को कई चीजों का प्रमोशन होता है, तब पर्यटक कई आकर्षक वस्तुएं सस्ती खरीद सकते हैं.
इस के अतिरिक्त सिंगापुर टूरिज्म बोर्ड ‘वार्षिक सेल’ कर के भी बाजार लगाता है. कई संस्थाएं भी इस में अपने सामान को बेचती हैं. इस सेल में बारगेन कर के अच्छी व सस्ती वस्तुएं प्राप्त की जा सकती हैं.
2006 में यहां ‘वीवोसिटी’ के नाम से सब से बड़ा शौपिंग सैंटर खुला है. यह भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है.
पानी के भीतरी आकर्षण तथा समुद्री किनारा : सिंगापुर में विश्व का सब से बड़ा पानी के अंदर एक्यूवेरियम है, जिस में अनगिनत तथा तरह की मछलियां व अनेक समुद्री जीवजंतु अपने आकर्षक रंगों के साथ दिखाई पड़ते हैं. पानी के अंदर शीशे से बनी नाव द्वारा पूरे समुद्र के अंदर इस दृश्य को देख कर हृदय रोमांचित हो उठता है साथ ही, एक अनोखे आनंद का अनुभव होता है.
सिंगापुर में रात्रिजीवन : सिंगापुर ‘रात्रि जीवन’ के लिए प्रसिद्ध विश्व के 5 देशों में एक है.
बोट द्वारा सिंगापुर की सैर का अलग ही मजा है. ये बोट सिंगापुर नदी के आरंभ स्थल पर उपलब्ध रहती हैं. ये बोट पूरी तरह से ढकी हुई बंद होती हैं. इन बोटों में पब्स, रैस्टोरैंट तथा ‘बार’ भी हैं. खाना खाने के बाद पर्यटक यहां गानों की धुन पर नृत्य का आनंद उठाते हैं.
वार्षिक आकर्षण : सिंगापुर पर्यटक बोर्ड ने कई तरह के कार्यक्रमों का प्रोग्राम वर्षभर रखा है. इन में ‘सिंगापुर आर्ट फैस्टिवल’ तथा ‘सिंगापुर गार्डन फैस्टिवल’ प्रमुख हैं. प्रत्येक वर्ष जुलाई में ‘फूड फैस्टिवल’ का आयोजन किया जाता है. इस के अतिरिक्त ‘सिंगापुर सन फैस्टिवल’ तथा ‘क्रिसमस लाइटअप’ तथा ‘सिंगापुर ज्वैल फैस्टिवल’ आदि भी वार्षिक फैस्टिवल हैं जिन को 2008 से सिंगापुर में आरंभ किया गया है.
क्लार्क क्यूय सैर : क्लार्क क्यूय सैर नदी किनारे की ऐतिहासिक सैर है. इन बड़ी बोटों में रैस्टोरैंट तथा कई एंटीक दुकानें हैं. कई चाइनीज जंक्स भी हैं.
सिंगापुर कैसे जाएं : सिंगापुर का वीजा सिंगापुर दूतावास से प्राप्त किया जा सकता है या फिर किसी भी ट्रैवल एजेंसी से 2,500 से 3 हजार रुपए दे कर 10 सालों का वीजा प्राप्त किया जा सकता है.
कुछ विमान कोलकाता से जाते हैं जिन का किराया कम है, अपनी सुविधानुसार ‘मेक माई ट्रिप’ या अन्य विमानों में भी समय से बुकिंग कराने पर सस्ते टिकट उपलब्ध हो जाते हैं. यदि ट्रैवल एजेंट से टिकट लें तो वही वीजा भी उपलब्ध करा देता है.
 

दिल जीत लेगा लास वेगास

यों तो अमेरिका के कई मशहूर शहर जैसे न्यूयार्क, अलाबामा, सैनफ्रांसिस्को, वाश्ंिगटन व   कैलीफोर्निया पर्यटन स्थल के रूप में विश्वविख्यात हैं लेकिन जो आकर्षण नवादा राज्य में स्थित लास वेगास का है उस का कोई मुकाबला नहीं.
अमेरिका हमेशा से अपनेआप में चुंबकीय आकर्षण रखने वाले देश के रूप में जाना जाता रहा है. विदेश भ्रमण के शौकीन लोगों के लिए अमेरिका ठीक उसी तरह महत्त्वपूर्ण है जिस तरह फैशन जगत से जुड़े लोगों के लिए फैशन का मक्का कहा जाने वाला फ्रांस का नायाब शहर पैरिस.
लास वेगास अमेरिका का एक ऐसा शहर है जो बेशुमार दौलत का गढ़ होने के साथसाथ दुनिया का सब से बड़ा जुआघर होने की वजह से खासा बदनाम भी है. यह एक ऐसा शहर है जहां विश्वभर से आ कर बसे लोगों की इंद्रधनुषी संस्कृति देखने को मिलती है. यहां सिर्फ जुआघर यानी कैसीनो ही नहीं बल्कि कई तरह के मनोरंजन, स्पोर्ट्स, व्यापार और पर्यटन रुचि के ऐसे स्थल मौजूद हैं जिन्हें एक बार देख लेने के बाद पर्यटक बारबार यहां आना चाहता है. बेशक यह शहर बहुत महंगा है लेकिन इस का आकर्षण ‘मुंह को लगी हुई शराब’ से कम नहीं है. अपनी खूबसूरती का दीवाना बना देने वाला नवादा राज्य का यह खूबसूरत शहर लास वेगास अपने स्थापत्य इतिहास के कारण भी विश्व भर के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है.
शहर की साजसज्जा अत्याधुनिक वास्तु के अनुरूप की गई है. खूबसूरत, बड़ेबड़े शोरूम बेशकीमती वस्तुओं से अटे पड़े हैं. चूंकि शहर पर्यटकों के लिए महत्त्वपूर्ण आकर्षण का केंद्र है, इसलिए ग्राहकों की यहां कभी कमी नहीं देखी गई. पर्यटक चाहे अमीर व्यक्ति हो या मध्यम दरजे का, जो भी अमेरिका आता है लास वेगास देखे बिना नहीं रह सकता. अपनी रुचि की कोई न कोई वस्तु हर व्यक्ति को मिल ही जाती है. बहुसंस्कृति, बहुभाषी और बहुधर्मी लोगों का आवास होने के कारण यहां हर समय चहलपहल रहती है लेकिन शहर का असली जीवन शाम ढलने के बाद ही देखा जा सकता है.
लास वेगास अमेरिका का 31वां सर्वाधिक जनसंख्या वाला शहर है जो अपनी धनाढ्यता, रात की रंगीनियों, जुआघरों, गोल्फ कोर्स और व्यापार के लिए विश्वप्रसिद्ध है. यह अमेरिका के शीर्ष 3 व्यापारिक केंद्रों में से एक है.
1931 में यहां पहला कैसीनो ‘नौर्दन क्लब’ के नाम से खुला था जो अब ‘लौ बेयू’ के नाम से जाना जाता है. यहां कैसीनो अपनी भव्यता के 
लिए जाने जाते हैं. एक अन्य कैसीनो ‘बिनियन्स हौर्स शू’ 
है जिसे अब ‘बिनियन्स वाम्बलिंग हौल’ कहा जाता है. लेकिन यहां का सब से बड़ा और भव्य कैसीनो है ‘गोल्डन गेट’. यह अपने नाम को पूरी तरह चरितार्थ करता है. गोल्डन गेट में प्रवेश करते ही आप को एहसास होने लगता है कि आप किसी दूसरी दुनिया में आ गए हैं. अन्य ख्यातिप्राप्त कैसीनो 
में लोकप्रिय हैं-अल कोतरेज द डी, फोर क्वीन्स, गोल्ड स्पाइक और लास वेगास क्लब.
जिस उत्सुकता और आकर्षण को मन में संजोए मैं लास वेगास देखने गया था वह सपना उस समय टूट कर बिखर गया जब भोजन के नाम पर हर तरफ सिर्फ चाइनीज और कौंटिनैंटल फूड के बोर्ड लगे पाए. राजमाचावल, चावलछोले, परांठेदही खाने की इच्छा मन में ही रह गई. मजबूरन मुझे प्रौन, झींगा मछली, फिश, चिकन और सी फूड पर अपना दिन गुजारना पड़ा. दूसरे देशों की तरह यहां भारतीय भोजन उपलब्ध कराने वाला एक भी होटल नहीं मिला. हालांकि मुझे न्यूयार्क, वाश्ंिगटन जैसे बड़े अमेरिकी शहरों में भारतीय रैस्टोरैंट काफी संख्या में मिले. ऐसा नहीं कि मैं मांसाहारी भोजन नहीं करता लेकिन यहां मुझे मजबूरन कौंटिनैंटल फूड पर ही दिन गुजारने पड़े. सो, अगर आप लास वेगास की सैर पर जाने का कार्यक्रम बना रहे हैं तो एक बात का ध्यान रखें, यदि आप शुद्ध शाकाहारी हैं तो आप को समस्या आने वाली है. हां, अगर ‘फुल नौनवेज’ या थोड़ाबहुत ‘नौनवेज’ खा लेते हैं तो काम चल जाएगा. 
1829 में यहां आने वाला सब से पहला व्यक्ति एक मैक्सिकन स्काउट रफैल रिवैरो था. सिनसिटी से बदल कर इस का नाम लास वेगास रखने वाले लोग मैक्सिको निवासी ही थे. वर्षा क्षेत्र होने के कारण यहां बड़ेबड़े जलाशय हुआ करते थे जिन के कारण यहां बेहद विस्तृत और घने चरागाह बन गए थे. चरागाहों को स्पैनिश भाषा में ‘वेगास’ कहा जाता है. अत: इस जगह को नया नाम दिया गया ‘लास वेगास.’
लास वेगास की जीवनधारा है यहां की नाइट लाइफ. यहां दिन ढलते ही एक नई दुनिया जन्म लेती है. दौलतमंद, खुशमिजाज, रंगीनमिजाज, जुए की लत के शौकीन और मस्तमौला लोगों की दुनिया. यदि आप लास वेगास की जीवन शैली का आनंद उठाना चाहते हैं तो दिन ढलने के बाद से प्रात: सूर्योदय तक कैसीनो की सैर करें.
ऐसा सुनने में आया है कि लास वेगास का पुलिस नैटवर्क बहुत तेजतर्रार और अनुभवी है. चूंकि लास वेगास में बड़े पैमाने पर जुआ खेला जाता है और बहुत बड़ीबड़ी राशियों का लेनदेन होता है, सो आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों का सक्रिय होना भी स्वाभाविक बात है. इसलिए पुलिस विभाग का सक्षम और सशक्त होना अनिवार्य हो जाता है.   –
दिन ढलते ही रोशनी में नहाए इस शहर के होटलों की फिजा देखते ही बनती है.
 
 
 
रात की रंगीनियों से सजे लास वेगास के कैसीनो दौलतमंद, खुशमिजाज और रंगीनमिजाज लोगों के  पसंदीदा ठिकाने हैं.  
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