लुटाना आता है, मांगना सीखा नहीं

दे कर खुश होती हूं, पाना सीखा नहीं

समझो तो आदर समझ लो, नहीं तो मजाक

सही पर जिस दिन दासी समझो

मुझे सम्मान भी जाएगा और आदर भी

समझो तो स्नेह समझ लो, नहीं तो ठिठोली

सही पर मेरी यह बात याद रखना, भूलना नहीं

कहना तो और बहुत चाहती हूं, कैसे कहूं

हर बात बोल कर बताना, जरूरी तो नहीं

अलविदा कहने की भी जरूरत नहीं

जरूरी हो भी तो सामर्थ्य नहीं

भरोसा करने की तुम में ताकत नहीं

फिर भी कोई गिलाशिकवा नहीं

रोकने का तो हक नहीं, साथ चल लेती मगर

वादे कुछ खुद से किए हैं, झुठला सकती नहीं

गरूर की चिंगारी तो कभी थी ही नहीं

स्वाभिमान की लौ अभी बुझी नहीं

जो मैं ने सीखा, उस के लिए धन्यवाद

मेरे बाद जीवन तुम्हारा, रहे आबाद

भूल भी जाओ मुझे तो गम नहीं

भक्त थी तुम्हारी, दासी नहीं.      

                        - नेहा सैनी

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