कैराना कस्बे में रहने वालों के पलायन को लेकर बैकफुट पर आई उत्तर प्रदेश सरकार ने 5 संतों की जांच कमेटी बनाई थी. इस कमेटी में आचार्य प्रमोद कृष्णम, हिन्दू महासभा के अध्यक्ष चक्रपाणि, कल्याणदेव, स्वामी चिन्मयानंद और स्वामी नारायण गिरी ने कैराना कस्बे का दौरा किया. संतों के दल ने अपनी 13 पेज की जांच रिपोर्ट मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सौंप दी. संतों के इस जाच दल की खा सबात यह थी कि इसे उत्तर प्रदेश की सरकार के द्वारा भेजा गया था. सरकार हमेशा किसी भी मामलें की जांच अपने प्रशासन तंत्र के जरीये करती है. इसमें पुलिस प्रशासन, जिला प्रशासन और मजिस्ट्रेट जांच को शामिल किया जाता है. सरकारें अपनी ही प्रशासन तंत्र की बात को मानती है.

सरकार द्वारा भेजे गये जांच दल पर सवाल उठने लगे है.भाजपा के सांसद हुकुम सिंह कहते हैं कि संतों का काम किसी राजनीतिक दल के लिये रिपोर्ट तैयार करना नहीं होता है. इससे उनके संतत्व पर सवाल उठता है.

दरअसल संतों का जांच दल भेज कर उत्तर प्रदेश की सरकार यह जताना चाहती थी कि वह हिन्दुओ के साथ है. आज के समय में संत भी राजनीतिक खेमेबंदी में शामिल हो गये हैं. जहां कुछ संत भाजपा का साथ देते हैं, तो कुछ भाजपा के खिलाफ हैं. उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने जांच दल में इस बात का खास ख्याल रखा कि भाजपा का समर्थन करने वाले ज्यादा न हों.

कैराना पर संतो की रिपोर्ट का खुलासा उत्तर प्रदेश सरकार ने नहीं किया है. आपसी बातचीत में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा भेजी गई संतों की टीम ने यह बताया कि कैराना में पलायन धार्मिक कारणों से नहीं हुआ. कैराना में बढते हुये अपराधों के कारण वहां से लोगों का पलायन हुआ. संतों की रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश सरकार का बचाव करते यह कहा गया है कि कैराना से लोगों का पलायन पहले से हो रहा है. यह केवल अखिलेश सरकार के समय में ही नहीं हुआ है. संतों की रिपोर्ट ने भाजपा सांसद हुकुम सिंह और पूर्व डीजीपी और अब भाजपा नेता ब्रजलाल को भी घेरने की कोशिश की गई.

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