राजनीति में बडबोलापन तब तक अच्छा लगता है, जब तक उसके निशाने पर विरोधी हों. जब निशाना खुद अपनी ओर होता है तो यह पंसद नहीं आता. बडबोले नेताओं को जब आगे बढाया जाता है, तो वह अपनी लक्ष्मण रेखा भूल जाते हैं. ऐसे नेता गले की फांस बन जाते हैं. सुब्रमण्यम स्वामी जब तक कांग्रेस पर हमला कर रहे थे, तब तक भाजपा नेताओं को वह खूब पसंद आ रहे थे. रिजर्व बैंक के गर्वनर रघुराम राजन तक पर किया गया हमला भाजपा नेताओं को पसंद आया.
सोशल मीडिया से लेकर भाजपा के बाकी प्रचारतंत्र में सुब्रमण्यम स्वामी के बयानों को खूब प्रचार दिया जा रहा था. इससे उत्साह में आये सुब्रमण्यम स्वामी अपनी लक्ष्मण रेखा भूल कर सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम पर सवाल उठाने लगे. सुब्रमण्यम स्वामी ने उनको हटाने की मांग कर दी. मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम का मसला सीधे वित्त विभाग से जुडा था. जो भाजपा के नम्बर 2 की हैसियत रखने वाले मंत्री अरुण जेटली से जुडा विभाग है. सुब्रमण्यम स्वामी के बयान को अप्रत्यक्ष रूप से अरुण जेटली पर हमला माना गया.
भाजपा में हो रही इस बयानबाजी ने विरोधी दलों को चुटकी लेने का मौका दे दिया. इससे भाजपा खुद को असहज महसूस करने लगी. खुद अरुण जेटली ने सुब्रमण्यम स्वामी का नाम लिये बिना अनुशासन में रहने और सोच समझ कर बोलने की हिदायत दी. इस बात पर सुब्रमण्यम स्वामी और भी ज्यादा भड़क गये. वह बोले की यदि मैने अनुशासन की उपेक्षा की तो ब्लडबाथ होगा, जिसका मतलब था कि खून की नदी बह जायेगी. ट्विटर के जरीये नेताओं के इस साइबर वार ने भाजपा के अंदर की राजनीति को गरम कर दिया है.