बैंक के कर्मचारी राहुल कुमार के एक दोस्त ने जब उनसे अपने परिवार में किसी के बीमार होने पर उधार मांगा तो राहुल ने तुरंत उन्हें 40,000 रुपये दे दिए. दो दिन बाद राहुल को पता चला कि उनके दोस्त ने झूठ बोला था और उसने स्मार्टफोन का नया मॉडल खरीदने के लिए पैसा लिया था. राहुल को एक ऐसे व्यक्ति ने धोखा दिया, जिसे वह अपना दोस्त मानते थे.

हमारे देश में दोस्तों और रिश्तेदारों को उधार देना आम बात है. इसमें वास्तविक और काल्पनिक आपात स्थितियों के लिए कम रकम की उधारी से लेकर बिजनेस शुरू करने के लिए दिए जाने वाले बड़े कर्ज शामिल होते हैं. इस तरह की उधारी के लिए आमतौर पर कोई पेपरवर्क या लिखा-पढ़ी नहीं की जाती और इसी वजह से इसमें धोखा खाने की आशंका अधिक रहती है.

आपको अपने जानने वालों को उधार देते समय कुछ सावधानी बरतनी चाहिए. उधार देने से पहले खुद से पूछें कि क्या आप इसे अफोर्ड कर सकते हैं? याद रखें कि शायद लंबे समय तक आपको अपनी रकम वापस नहीं मिलेगी. अगर आप घर खरीदने या अपने बच्चे की एजुकेशन के लिए सेविंग कर रहे हैं तो उधार देने से आपके इस तरह के किसी फाइनेंशियल गोल पर असर पड़ सकता है.

अगर आप उधार लेने वाले को अच्छी तरह जानते हैं तो भी जांच-पड़ताल करना बेहतर रहेगा. केवल उनके कहने पर उन कारणों को स्वीकार न करें जिनके लिए वे उधार मांग रहे हैं, जैसा कि राहुल ने किया था.

मुंबई के आईटी इंजीनियर क्षितिज शर्मा को भी ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़ा था. उनसे एक दोस्त ने अपने परिवार के किसी सदस्य के इलाज के लिए उधार मांगा था. क्षितिज ने उन्हें 50,000 रुपये दिए थे. बाद में क्षितिज को पता चला कि उनके दोस्त ने इसी तरह का कारण बताकर अन्य लोगों से भी एक लाख रुपये का उधार लिया था. उस दोस्त के परिवार में कोई भी बीमार नहीं था और उसने उधार की रकम को फिजूल की चीजों पर खर्च कर दिया था. क्षितिज ने छह महीने तक अपने दोस्त के पीछे पड़कर अपनी रकम वसूल की.

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