पूर्व सेना अध्यक्ष विजय कुमार सिंह  का सार्वजनिक रूप से यह मान लेना कि आजादी के बाद से ही सेना, जम्मूकश्मीर के मंत्रियों को शांति बनाए रखने के लिए पैसा देती रही है, एक गंभीर अपराध है. यह बात उन्होंने अपने बचाव में तब कही जब उन पर आरोप लगे कि वे पैसा दे कर जम्मूकश्मीर की सरकार को गिराना चाहते थे. अब वे यह नहीं कह रहे कि यह तथ्य गलत है बल्कि यह कि इस बात का खुलासा करने वाले को दंडित किया जाए.

जम्मूकश्मीर निसंदेह बहुत संवेदनशील राज्य है. मुसलिम बहुल इस राज्य पर सिख राज के जमाने से हिंदू शासकों ने कब्जा जमा लिया था और 1947 में राजा हरिसिंह नलवा ने काफी हिचक और नानुकुर करने के बाद ही भारत में उस के विलय की संधि पर हस्ताक्षर किए थे. उस देरी के कारण ही राजा का एकतिहाई हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में चला गया था और आज तक भारत उसे छुड़ा नहीं पाया है.

यही नहीं, भारत खासा पैसा खर्च करने के बावजूद वहां की जनता को पूरी तरह प्रभावित नहीं कर पाया कि उस का जीवन भारत में ज्यादा सुखी रहेगा. कश्मीर के कठमुल्ले कश्मीरियों को पाकिस्तान में विलय के लिए उकसाते रहते हैं. और पाकिस्तान अंगरेजों द्वारा नियुक्त रैडक्लिफ आयोग की रिपोर्ट के सिद्धांत के अनुसार, कश्मीर पर अपना हक मानता है. ऐसे में सिर्फ बयानबाजी से मामले को उलझाना बेवकूफी है.

पूर्व सेना अध्यक्ष वी के सिंह वास्तव में विवाद खड़े करने में माहिर हैं. कभी वे सेना की खरीद पर विवादों में आते हैं, कभी अपनी उम्र पर तो कभी अपने निजी गुप्तचर संगठन पर.  क्या भारतीय जनता पार्टी को ऐसे ही विवादित लोग मिलते हैं जो निर्माण की जगह विध्वंस में विश्वास करते हैं? नरेंद्र मोदी ने 2002 में धर्म के नाम पर मुसलमानों की सुरक्षा के एहसास का विध्वंस किया, लालकृष्ण आडवाणी ने राममंदिर के लिए बाबरी मसजिद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अब नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए राजग यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का.

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