भारत कुछ समय से कम से कम एशिया की बड़ी सैनिक शक्ति बनने की कोशिश कर रहा है. भारत का कोचीन में बना विक्रांत जब पानी में उतरा तो बहुत खुशी हुई कि भारत विशाल जहाज बना सकता है जिस पर हवाई जहाज उतर सकें पर उस उस के कुछ दिन बाद ही परमाणु ईंधन से चलने वाली पनडुब्बी सिंधुरक्षक में लगी आग ने भारतीय नौसेना को सकते में डाल दिया है. भारत के पास केवल 8 पुरानी पनडुब्बियां बची हैं और इस दुर्घटना के बाद उन की जांचपड़ताल कुछ ज्यादा ही होगी.
दूसरी ओर चीन के पास डीजल से चलने वाली 47 और परमाणु ईंधन से चलने वाली 8 पनडुब्बियां हैं. वह अपने बेड़े में लगातार विस्तार भी कर रहा है. हमारा प्रबल शत्रु पाकिस्तान भी बहुत पीछे नहीं जबकि उस का समुद्रतट उतना लंबा नहीं है जितना भारत का है. व्यापार की सुरक्षा के लिए नौसेना बहुत आवश्यक है क्योंकि किसी खटपट के चलते यदि शत्रु ने कभी जल रास्ते रोक दिए तो बहुत सी आवश्यक सामग्री, जिस में पैट्रोल सब से महत्त्वपूर्ण है, आना बंद हो सकता है.
हमारी सेना के उपकरणों में हादसे होते रहते हैं. जिस तरह हमारे टैंक, तोपें, मिग हवाई जहाज रखे जा रहे हैं, उस से लगता नहीं कि देश में किसी को रक्षा के महत्त्व का एहसास है. यहां सेना रिश्वत के मामलों में बंटवारे पर होती लड़ाई के समय चमकती दिखाई देती है.
हमारे नेता चुनाव रैलियों में या लालकिले पर चढ़ कर बड़ीबड़ी बातें करते हैं पर देश की सेना कितनी लुंजपुंज है, यह अब किसी से छिपा नहीं है. अरबों के खर्च के बावजूद सेना ऐसा भरोसा नहीं दिला पा रही कि वह रूस, चीन, इंगलैंड जैसे देशों से मुकाबला कर सकती है. हम आमतौर पर हथियारों के लिए उन्हीं रूस, अमेरिका, इटली, जरमनी, डेनमार्क आदि पर निर्भर रहते हैं जो पैसे तो मनमाने लेते हैं पर क्या देते हैं या जो देते हैं, क्या हम उन्हें चलाना भी जानते हैं, इस पर कोई बोलना नहीं चाहता.
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