इंदिरा गांधी वाले आपातकाल में अच्छेअच्छे वक्ताओं की घिग्घी बंध गई थी. इंदिरा गांधी की तानाशाही पर बिना डरे जिन्होंने विरोध दर्ज कराया था, दुष्यंत कुमार त्यागी उन में से एक थे. दुष्यंत कुमार को हिंदी गजलों का गालिब कहा जाता है. उस दौर में उन्होंने जो गजलें कहीं वे आज भी गजलप्रेमियों के जेहन में संग्रहित हैं. इन दिनों जाने क्यों कइयों ने दोबारा उन की गजलों को याद करना शुरू कर दिया है.

दुष्यंत भोपाल के जिस सरकारी मकान में रहते थे उसे, स्मार्ट सिटी बनाने के लिए, प्रदेश सरकार ने जमींदोज कर दिया और दुष्यंत कुमार पांडुलिपि संग्रहालय को तोड़ने के लिए सरकार भी आमादा हो आई तो साहित्यकार, कलाकार, पत्रकार और बुद्धिजीवी तिलमिलाते सड़कों पर आ गए. और संग्रहालय न तोड़ने की मांग करने लगे. इन्हें कौन समझाए कि इन संग्रहालयों, धरोहरों, मूर्तियों और स्मारकों में झांकने भी कोई नहीं जाता.

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