ओडिशा और पश्चिम बंगाल में कई मानों में ज्यादा फर्क नहीं है और कई मानों में कई बड़े फर्क भी हैं. सियासी लिहाज से उन में से एक यह है कि पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की आबादी 26 फीसदी है तो ओडिशा में इस का 10वां हिस्सा महज 2.6 फीसदी ही मुसलमान हैं. इसलिए वहां हिंदुत्व की राजनीति का हल्ला नहीं सुनाई देता और न ही कोई राम, अयोध्या, काशी, मथुरा सहित विवाद-फसाद की बातें करता. दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों में कुछ समानताएं भी विकट की हैं. नवीन पटनायक और ममता बनर्जी दोनों ही अविवाहित हैं और अपने काम से काम रखना ज्यादा पसंद करते हैं. उन की अपनी अलग स्टाइल है जो उन्हें लोकप्रिय बनाती है.

हाल तो यह है कि जैसे पश्चिम बंगाल ममता दीदी के नाम से जाना जाता है वैसे ही ओडिशा कला और साहित्य प्रेमी नवीन बाबू के नाम से जाना जाता है. जाहिर है, दोनों को ही अपनेअपने राज्य की जनता बेशुमार चाहती है. इस चाहत को बनाए रखना ही इन दोनों ने अपनी जिंदगी का मकसद भी बना रखा है. नवीन पटनायक की दिलचस्पी राजनीति में नहीं थी लेकिन अपने पिता बीजू पटनायक की मौत के बाद वे राजनीति में आए तो फिर राजनीति के ही हो कर रह गए. बीजू पटनायक पायलट भी थे और व्यापारी भी. और इस से भी पहले फ्रीडम फाइटर थे. उन का इंडोनेशिया से गहरा नाता रहा. साल 1969 तक बीजू पटनायक कांग्रेस में रहे. फिर उन्होंने अपनी पार्टी उत्कल कांग्रेस बना ली थी जिस का विलय जनता पार्टी के गठन के दौरान जनता दल में हो गया था. ओडिशा में कांग्रेस की तरफ से यह दौर जानकी वल्लभ पटनायक और नंदिनी सत्पथी जैसे कद्दावर नेताओं का था जिसे बीजू ने दरकाया था.

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