मेरे पति को कुछ सामान खरीदना था. औफिस से वापस आते समय वे एक दुकान में गए. सामान खरीद कर बाहर आए तो एक लड़का उन से टकरा कर गिर गया. उन को लगा कि उन की वजह से वह गिरा. उस को उन्होंने बड़े प्रेम से उठाया और वह धन्यवाद देता हुआ चला गया. इतने में कुछ और चीज याद आई तो उसे लेने वे दुकान में गए और वह ले कर पैसे देने के लिए जेब से बटुआ निकालने लगे तो उन को बटुआ मिला ही नहीं. उन्होंने दुकानदार से कहा कि आप को पैसे दे कर जेब में रखा था बटुआ, मिल नहीं रहा, कहीं गिरा भी नहीं दिखाई पड़ रहा. दुकान वाला बोला, ‘‘जो आप से टकरा गया था उस ने तो नहीं पार कर दिया?’’ यह कह कर दुकानदार हंसने लगा. वे बोले, ‘‘मेरा तो नुकसान हो गया और तुम्हें हंसी आ रही है.’’

सिम्मी सिंह कनेर, वसंतकुंज (न.दि.)

*

मेरे विद्यालय में एक दिन 2 छात्र इंटरवल के दौरान किसी बात पर बहस कर रहे थे. बहस करतेकरते वे गालीगलौज पर उतर आए. उन में हाथापाई भी होने लगी. बच्चों ने आ कर बताया कि कक्षा में 2 बच्चे आपस में लड़ रहे हैं. खाना छोड़ कर मैं व दूसरे अध्यापक भी मेरे साथ तुरंत वहां गए. उन्हें शांत कराया गया. उन में से एक बारबार यही कह रहा था कि स्कूल के बाहर निकलो तो मैं तुम्हारा सिर फोड़ दूंगा. दूसरा छात्र भी कुछ इसी तरह के शब्दों का प्रयोग कर रहा था.

मैं ने उन दोनों छात्रों को बुलाया और कहा, ‘तुम दोनों एकदूसरे का सिर फोड़ना चाहते हो?’ दोनों ने कोई जवाब नहीं दिया, शांत रहे.

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