उद्धव का दम
अपने सियासी कैरियर के शुरुआती दौर में लड़खड़ाने के बाद शिवसेना प्रमुख बने उद्धव ठाकरे अब पूरे दमखम से ताल ठोकते हुए मैदान में हैं. महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में उन्हें साबित करना है कि वे बाल ठाकरे से कम नहीं. चौतरफा परेशानियों से जूझ रहे उद्धव ने पहली कामयाबी महायुति के मुद्दे पर पाई तो दूसरी उस से भी ज्यादा अहम थी, अपने चचेरे भाई राज ठाकरे को 5वेंछठे नंबर पर पहुंचाने की. उद्धव महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने की अपनी दबी ख्वाहिश भी उजागर कर चुके हैं. इस से शिवसैनिकों में जोश है तो कांग्रेस व एनसीपी चिंतित हैं. वजह, उद्धव का धीरेधीरे बड़ा ब्रैंड बनते जाना है, जिन्हें चुनौती देने के लिए मैदानी नेता किसी दूसरे दल के पास नहीं.
विधवा समस्या
अपने संसदीय क्षेत्र मथुरा गईं सांसद अभिनेत्री हेमा मालिनी विधवाओं की बदहाली देख इतनी व्यथित हो उठीं कि उन्हें खदेड़ने की ही मांग कर डाली. वृंदावन से विधवाओं को हटाने की बात भर कहने से विधवा समस्या हल होने का आसान तरीका कोई और हो भी नहीं सकता. जाने क्यों हेमा मालिनी का ध्यान विधवा जीवन की दुश्वारियों पर नहीं गया और न ही इस तरफ गया कि ये हजारों विधवाएं परिवार और समाज से तिरस्कृत हैं और वृंदावन इन की मंडी बेवजह नहीं है, उन से हजारों पंडों और संस्थाओं के पेट भरते हैं. सफेद लिबास, सूनी मांग और चेहरे की बेबसी देख दक्षिणा और दान बटोरे जाते हैं. यह सच जब उन्हें शुभचिंतकों ने बताया तो उन्होंने माफी भी मांग ली लेकिन वे यह नहीं कह पाईं कि जरूरत भगाने की नहीं, विधवा जीवन की परेशानियों को दूर करने की है.
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