चारों तरफ झीलों, दर्रों और हिमखंडों से घिरी, आसमान छूते शैल शिखरों के दामन में बसी लाहुल-स्पीति की घाटियां अपने सौंदर्य और प्रकृति की विविधताओं के लिए विख्यात हैं. जहां एक तरफ इन घाटियों की प्राकृतिक सौंदर्यता निहारते आंखों को सुकून मिलता है वहीं दूसरी तरफ हिंदू और बौद्ध परंपराओं का अनूठा संगम आश्चर्यचकित कर देता है. वैसे तो लाहुल-स्पीति दोनों को मिला कर एक जिला बनता है, लेकिन ये दोनों ही जगह अपनेअपने नाम के आधार पर सौंदर्य की अलगअलग परिभाषाएं गढ़ती हैं.
स्पीति 
स्पीति हिमाचल प्रदेश के उत्तरपूर्वी भाग में हिमालय की घाटी में बसा है. स्पीति का मतलब बीच की जगह होता है. इस जगह का यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यह तिब्बत और भारत के बीच स्थित है. यह जगह अपनी ऊंचाई और प्राकृतिक सुंदरता के लिए लोकप्रिय है. स्पीति क्षेत्र बौद्ध संस्कृति और मठों के लिए भी प्रसिद्ध है.
इतिहास : हिमालय की गोद में बसी इस जगह के लोगों को स्पीतियन कहते हैं. स्पीतियन लोगों का एक लंबा इतिहास है. इतिहास के पन्नों को पलटें तो पता चलता है कि स्पीति पर वजीरों का शासन था जिन्हें नोनो भी कहा जाता था. वैसे तो समयसमय पर स्पीति पर कई लोगों ने शासन किया लेकिन स्पीतियन लोगों ने किसी की गुलामी ज्यादा दिनों तक नहीं सही. वर्ष 1947 में देश की आजादी के बाद यह पंजाब के कांगड़ा जिले का हिस्सा हुआ करता था. 1960 में यह लाहुल-स्पीति नामक जिले के रूप में एक नए प्रदेश यानी हिमाचल प्रदेश के साथ जुड़ा. बाद में स्पीति को सब डिवीजन बनाया गया और काजा को मुख्यालय.
आबादी : स्पीति और उस के आसपास के क्षेत्रों को भारत में सब से कम आबादी वाले क्षेत्रों में गिना जाता है. इस क्षेत्र के 2 सब से महत्त्वपूर्ण शहर काजा और केलोंग हैं. कुछ वनस्पतियों और जीव की दुर्लभ प्रजातियां भी स्पीति के महत्त्व को बढ़ाती हैं. यहां के लोग गेहूं, जौ, मटर आदि फसलें उगाते हैं.
यातायात : स्पीति जाने के लिए सब से निकटतम हवाई अड्डा भुंतर है, जो नई दिल्ली और शिमला जैसे प्रमुख शहरों से जुड़ा है. अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक भुंतर एअर बेस के लिए दिल्ली से जोड़ने वाली उड़ानों का लाभ ले सकते हैं. स्पीति से निकटतम रेलवे स्टेशन जोगिंद्रनगर है, जो छोटी लाइन का रेलवे स्टेशन है. इस के अलावा स्पीति से चंडीगढ़ और शिमला नजदीकी प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं, जो भारत के प्रमुख शहरों से जुड़े हैं.
यात्री रेलवे स्टेशन से स्पीति के लिए टैक्सियों और कैब की सुविधा आसानी से ले सकते हैं. सड़क से स्पीति राष्ट्रीय राजमार्ग 21 के माध्यम से पहुंचा जा सकता है. स्पीति तक रोहतांग दर्रा और कुंजम पास दोनों से पहुंचा जा सकता है.
मौसम : नवंबर से जून तक भारी बर्फबारी के कारण स्पीति जाने वाले सभी मार्ग बंद हो जाते हैं. इसलिए वहां सर्दियों को छोड़ कर साल भर कभी भी आया जा सकता है. गरमी के मौसम में मई से अक्तूबर तक का महीना स्पीति आने के लिए अनुकूल है क्योंकि यहां का तापमान
15 डिगरी सैल्सियस से ऊपर नहीं जाता है. स्पीति बारिश के छाया क्षेत्र में स्थित है, इसलिए यहां ज्यादा बारिश नहीं होती है. सर्दियों के दौरान यह जगह बर्फबारी से ढक जाती है औैर तापमान शून्य डिगरी से नीचे चला जाता है.
दर्शनीय स्थल
स्पीति एक ऐसी घाटी है जहां सदियों से बौद्ध परंपराओं का पालन हो रहा है. यह घाटी अपने कई मठों के लिए देश और विदेश में विशेष स्थान रखती है. यहां कई मठ ऐसे हैं जिन की स्थापना सदियों पहले की गई थी. इन में तबो और धनकर मठ प्रमुख हैं.
तबो :  तबो मठ को स्पीति घाटी में 996 में खोजा गया. यह स्थान बहुत ही सुंदर है. यह पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है. बताया जाता है कि यह मठ हिमालय पर्वतमाला के सब से पुराने मठों में से एक है. यहां की सुंदर पेंटिंग्स, मूर्तिंयां और प्राचीन ग्रंथों के अलावा दीवारों पर लिखे गए शिलालेख यात्रियों को बहुत आकर्षित करते हैं.
धनकर : यह मठ धनकर गांव में है जोकि हिमाचल के स्पीति क्षेत्र में समुद्र तल से 3,890 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यह जगह तबो और काजा 2 प्रसिद्ध जगहों के बीच में है. स्पीति और पिन नदी के संगम पर स्थित धनकर, दुनिया की ऐतिहासिक विरासतों में भी स्थान रखता है.
काजा : काजा स्पीति घाटी का उप संभागीय मुख्यालय है. यह स्पीति नदी के बाएं किनारे पर खड़ी चोटी की तलहटी पर स्थित है. काजा में रैस्ट हाउस और रहने के लिए कई छोटेछोटे होटल बने हुए हैं. यहां से हिक्किम, कोमोक और लांगिया मठों पर घूमने जाया जा सकता है.
अन्य दर्शनीय स्थल
स्पीति आने वाले लोगों के लिए घूमने के स्थान की कमी नहीं है. यहां किब्बर, गेट्टे, पिन वैली, लिंगटी वैली, कुंजम पास और चंद्रताल कुछ ऐसी जगहें हैं जहां जाए बिना स्पीति की यात्रा पूरी नहीं होती.
लाहुल 
कुछ लोग इसे हिमालयन स्कौटलैंड कहते हैं. वैसे लाहुल को लैंड विद मैनी पासेस भी कहा जाता है क्योंकि लाहुल से दुनिया का सब से ऊंचा हाईवे गुजरता है जो इसे मनाली, लेह, रोहतांग ला, बारालाचा ला, लचलांग ला और तंगलांग ला से जोड़ता है.
नदियां : हिमालय की पर्वत शृंखलाओं से घिरे लाहुल में जो शिखर दिखाईर् देते हैं उन्हें गयफांग कहा जाता है. साथ ही, यहां चंद्रा और भागा नाम की 2 नदियां बहती हैं. इन्हें यहां का जलस्रोत माना जाता है. चंद्रा नदी को यहां के लोग रंगोली कहते हैं. इस के तट पर खोक्सर, सिसु, गोंढला और गोशाल 4 गांव बसे हुए हैं जबकि भागा नदी केलौंग और बारालाचा से बहती हुई चंद्रा में मिल जाती है. जब ये दोनों नदियां तांडी नाम की नदी में मिलती हैं तो इसे चंद्रभागा कहा जाता है.
भाषा और रोजगार : लाहुल की जमीन बंजर है, इसलिए यहां घास और झाडि़यों के अलावा ज्यादा कुछ नहीं उगता. स्थानीय लोग खेती के नाम पर आलू की पैदावार करते हैं. पशुपालन औैर बुनाई ही यहां के लोगों का प्रमुख रोजगार है. यहां के घर लकड़ी, पत्थर और सीमेंट के बने होते हैं. लाहुल के निवासियों की भाषा का वैसे तो कोई नाम नहीं है लेकिन इन की  भाषा लद्दाख और तिब्बत से प्रभावित है.
यातायात : लाहुल पहुंचने के लिए भी स्पीति की तरह भुंतर हवाई अड्डा एकमात्र साधन है. वैसे टैक्सियों औैर कैब के जरिए भी लाहुल पहुंचा जा सकता है. लाहुल का कोई अपना रेलवे स्टेशन नहीं है, इसलिए यात्रियों को पास में स्थित जोगिंदर नगर रेलवे स्टेशन उतरना पड़ता है. फिर वहां से टैक्सी और कैब से सड़क मार्र्ग द्वारा लाहुल जाया जाता है.
प्रमुख स्थल
लाहुल के आसपास घूमने के लिए केलौंग, गुरुकंटाल मठ, करडांग, शाशुर, तैयुल, गेमुर, सिसु और गोंढाल जैसे प्रमुख स्थल हैं जो किसी न किसी विशेषता की चादर ओढ़े हुए हैं.

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