पूर्वोत्तर के राज्यों में पर्यटन के लिए सब से अच्छी बात यह है कि एक बार टूर पर निकल कर पूरे पूर्वोत्तर की सैर की जा सकती है. पूर्वोत्तर में असम सहित 7 राज्य हैं और ये 7 बहनों के रूप में जाने जाते हैं. त्रिपुरा के एक पत्रकार ज्योति प्रसाद सैकिया ने पहली बार अपनी किताब में पूर्वोत्तर के 7 राज्यों को यह नाम दिया. असम के अलावा बाकी 6 बहनें मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा और मिजोरम हैं.
असम
पूर्वोत्तर राज्यों का रास्ता असम से हो कर जाता है. असम
का स्थानीय नाम अहोम है. थाईलैंड की अहोम जाति कभी यहां राज किया करती थी. विभिन्न नस्लों और पूर्वोत्तर की संस्कृतियों के संगम के अलावा असम चाय बागानों, फूल, वनस्पति, दुर्लभ नस्ल के गैंडों और यहां मनाए जाने वाले पर्वों, विशेष रूप से बिहू के लिए भी जाना जाता है.
असम के कांजीरंगा नैशनल पार्क का मुख्य आकर्षण एशियाई हाथी और एक सींगवाले गैंडे हैं. इस के अलावा बाघ, बारहसिंगा, बाइसन, बनबिलाव, हिरण, सुनहरा लंगूर, जंगली भैंस, गौर और रंगबिरंगे पक्षी भी हैं.
कांजीरंगा को बर्ड्स पैराडाइज भी कहा जाता है. नैशनल पार्क में हर तरफ घने पेड़ों के अलावा एक खास किस्म की घास, जो हाथी घास कहलाती है, भी देखने को मिलती है. वैसे, कांजीरंगा एलीफैंट सफारी के लिए ही अधिक जाना जाता है. यहां हर साल फरवरी में हाथी महोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है.
इस के अलावा असम के दर्शनीय स्थलों में एक है कामाख्या देवी का मंदिर, जो नीलांचल पर्वत पर स्थित
है. यहां का सालाना अंबुवाची त्योहार विश्वविख्यात है. प्राचीन शिव मंदिर उमानंद ब्रह्मपुत्र नदी के पीकौक टापू पर स्थित है.
गुवाहाटी से मात्र 369 किलोमीटर की दूरी पर शिवसागर है. असम की चाय और तेल व प्राकृतिक गैस के लिए शिवसागर जिला प्रसिद्ध है. यहां शिव मंदिर है, जो भारत का सब से ऊंचाई पर बने मंदिर के रूप में जाना जाता है. ये इलाके धर्मभीरु पर्यटकों को खासे भाते हैं.
ब्रह्मपुत्र पर सरायघाट पुल, बोटैनिकल गार्डन, तारामंडल, बुरफुकना पार्क और साइंस म्यूजियम, मानस नैशनल पार्क की भी गिनती असम के दर्शनीय स्थलों में होती है. पर्यटन के लिए यहां सब
से अच्छा समय अक्तूबर
से मई तक है.
अरुणाचल प्रदेश
असम, मेघालय पर्यटन के बाद अरुणाचल प्रदेश की यात्रा आसानी से की जा सकती है. असम के आगे का रास्ता अरुणाचल की राजधानी ईटानगर को जाता है. ईटानगर में 14वीं सदी का एक ऐतिहासिक किला है जो ईटा फोर्ट कहलाता है. यह 80 लाख ईंटों से बना किला है. मालुकपोंग भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है. यह खूबसूरत और्किड के फूलों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है. यहां और्किड फूलों का एक सैंटर है, टिपी और्किडोरियम. यहां ग्लासहाउस में सुरक्षित रखे गए 300 से भी अधिक विभिन्न प्रजातियों के और्किड के फूलों पर शोधकार्य भी होता है.
यहां हिमालय के नीचे से हो कर एक नदी बहती है, जो स्थानीय लोगों द्वारा गेकर सिन्यी कहलाती है, जिस का अर्थ
गंगा लेक है. राजधानी में जवाहरलाल नेहरू म्यूजियम, क्राफ्ट सैंटर, एंपोरियम टे्रड सैंटर भी हैं. इस के अलावा यहां चिडि़याघर और पुस्तकालय
भी हैं. टिपी और्किड सैंटर से 165 किलोमीटर की दूरी पर बोमडिला है. हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियां विशेष
रूप से गोरिचन और कांगटो
की चोटियां, मनोरम एहसास दिलाती हैं. यहां से लगभग 24 किलोमीटर की दूरी पर सास्सा में पेड़पौधों की एक सैंक्चुरी है. यहां 80 प्रजातियों के 2,600 पौधे हैं जो प्राकृतिक वातावरण में फूलतेफलते हैं. लगभग
100 वर्ग किलोमीटर में फैली इस सैंक्चुरी में मन को मोह लेने वाले प्राकृतिक दृश्य, ऊंचाई से गिरते झरने और बहती कामेंग नदी है. बलखाती सर्पीली पहाड़ी नदी कामेंग में एडवैंचर टूरिज्म के शौकीनों के लिए व्हाइट वाटर राफ्ंिटग का मजा कुछ और ही है. बोमडिला से 45 किलोमीटर की दूरी पर निरांग है जो मठों व गरम झरने के लिए विख्यात है. साथ ही, यह किवी फल के लिए भी मशहूर है. यहां एक खास प्रजाति के याकों और भेड़ का प्रजनन केंद्र है.
बोमडिला से तवांग 190 किलोमीटर की दूरी पर है. यह समुद्र से 12 हजार फुट ऊंचाई पर है. इसी रास्ते में सेला दर्रा है जो 14 हजार फुट की ऊंचाई पर है. यह विश्व का दूसरा सब से ऊंचा दर्रा कहलाता है. यहीं तवांग मठ है. यह जगह मठ के अलावा गुफाओं और झीलों के लिए भी प्रसिद्ध है.
इस के अलावा राज्य के दर्शनीय स्थलों में परशुराम कुंड, नैशनल पार्क और कई झील हैं.
नागालैंड
नागालैंड को किंग व राफ्ंिटग के लिए बेहतरीन स्थल कहा जाता है. इस राज्य में प्रवेश करने का गेटवे दिमापुर है. इस की वजह यह है कि हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन केवल दिमापुर में ही है. इसलिए दिमापुर नागालैंड का मुख्य शहर माना जाता है. दिमासा नदी के किनारे बसे होने के कारण इस का नाम दिमापुर है.
कोहिमा नागालैंड राज्य की राजधानी है और यह दिमापुर से 74 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां द्वितीय विश्वयुद्ध का स्मारक चिह्न है. कोहिमा के दक्षिण में 15 किलोमीटर की दूरी पर जापफू पीक नामक पहाड़ है, जिस की ऊंचाई समुद्रतट से 3048 मीटर पर है. सूर्योदय का दृश्य यहां से बड़ा खूबसूरत नजर आता है. जापफू पर्वत शृंखलाओं की चोटी से जुकोऊ वैली का खूबसूरत नजारा लिया जा सकता है.
पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र यहां का एक चर्च है.  राजधानी कोहिमा के नाम पर इसे कोहिमा कैथेड्रल चर्च कहा जाता है. यह भारत का विख्यात चर्च है, जो 25 हजार वर्ग फुट में फैला है.
यहां एक खूबसूरत दजुकोउ घाटी है. यह घाटी फूलों के खूबसूरत गुलदस्ते के रूप
में जानी जाती है. घाटी की पहाडि़यां सदाबहार जंगलों से पटी हुई हैं. जंगल के ऊंचेऊंचे पेड़ गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रिकौर्ड्स में शामिल हैं. करीब में सेइथेकिमा गांव है. यह जगह ट्रिपल फौल्स के लिए जानी जाती है. दरअसल, यह एक तिमंजिला झरना है.
चुमुकेदिमा नामक एक टूरिस्ट विलेज कौंप्लैक्स दिमापुर के करीब है, यहां से पूरे दिमापुर को देखा जा सकता है. इस के अलावा यहां से 74 किलोमीटर की दूरी पर दोयांग नदी के पास गवर्नर्स कैंप नामक टूरिस्ट स्पौट है. यहां पर्यटक रिवर राफ्ंिटग, फिश्ंिग और कैंपिंग करते हैं.
पर्यटन व परमिट से संबंधित जानकारी दिल्ली, कोलकाता और कोहिमा के पर्यटन निदेशालय से प्राप्त की जा सकती है. विदेशी पर्यटकों को भारत सरकार के गृह मंत्रालय से रेस्ट्रिक्टैड एरिया परमिट यानी आरएपी व प्रोहिबिटैड एरिया परमिट यानी पीएपी लेना जरूरी है. कम से कम 4 लोगों का ग्रुप होना जरूरी है. न्यूनतम 10 दिनों के लिए और अधिकतम 1 महीने के लिए चुनिंदा जिलों में पर्यटन की अनुमति दी जाती है.
त्रिपुरा
त्रिपुरा को नेचर, ईको और वाटर टूरिज्म के लिए जाना जाता है. राजधानी अगरतल्ला के आसपास कई अभयारण्य हैं. अगरतल्ला से 100 किलोमीटर की दूरी पर तृष्ण वन्यजीव अभयारण्य और 75 किलोमीटर की दूरी पर सेपाहीजाला अभयारण्य हैं. इन अभयारण्यों में लगभग 150 प्रजातियों के पक्षी और खास तरह के बंदर हैं.
कमला सागर झील अगरतल्ला से 27 किलोमीटर की दूरी पर है. यही
ईको पार्क है. यहां तेपानिया, कालापानिया, बारंपुरा, खुमलांग, जामपुई दर्शनीय स्थल हैं. राजधानी से 178 किलोमीटर की दूरी पर उनाकोटि पर्यटक स्थल है. यहां चट्टानों को काट कर व तराश कर अनेक कलाकृतियां बनाई गई हैं.
मिजोरम की सीमा जामपुई हिल है जो समुद्रतल से 914 मीटर की ऊंचाई पर है. यहां की सब से ऊंची चोटी बेतलोगछिप है. यह जामपुई हिल का ही हिस्सा है. इस के अलावा पुरातात्त्विक पर्यटन या धार्मिक पर्यटन का हिस्सा बौक्सनगर, गुनावती मंदिर, भुवनेश्वरी मंदिर, पिलक, देवतैमुरा हैं.
राजधानी अगरतल्ला से 55 किलोमीटर की दूरी पर रुद्रसागर झील के किनारे नीरमहल नामक मुगलकालीन स्थापत्य का एक खूबसूरत नमूना है. सर्दी के मौसम में झील में यायावर पक्षियों का जमघट लगा रहता है. त्रिपुरा में खोवाल, कमालपुर और कैलास नाम के 3 छोटे एअरपोर्ट भी हैं. ट्रेन के रास्ते गुवाहाटी से रेल यात्रा द्वारा भी यहां के स्टेशन कुमारघाट पहुंचा जा सकता है. वीजा ले कर यहां से बंगलादेश भी जाया जा सकता है.
मिजोरम
मिजोरम की राजधानी आइजोल 115 साल से भी पुराना शहर है. यह समुद्रतल से लगभग 4 हजार फुट ऊंचाई पर स्थित है. यहां एक म्यूजियम है, जो यहां की संस्कृति व इतिहास को संजोए हुए है. इस छोटे से शांत शहर से 204 किलोमीटर की दूरी पर चंफाई से म्यांमार तक का नजारा बखूबी देखा
जा सकता है. आइजोल से
85 किलोमीटर की दूरी पर टाडमिल लेक है. पर्यटक यहां बोटिंग करते हैं. यहां आसपास के जंगलों में प्रकृति की शोभा दर्शनीय है. यहां से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर वानतांग नाम का एक जलप्रपात है. यह राज्य का सब से ऊंचा स्थान है. यहां का थेंजोल हिल स्टेशन पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है.
ट्रैकिंग और एडवैंचर ट्रिप के लिए फावंगपुई है. यहां न केवल ट्रैकिंग और एडवैंचर का लुत्फ उठाया जा सकता है, बल्कि यहां से मिजोरम का पूरा नजारा भी दिखता है. यहां के पहाड़ों में वनौषधि, मसाले से ले कर विभिन्न किस्म के और्किड भी मिल जाते हैं. मिजोरम के उत्तरपश्चिम में मिजो हिल्स के पास डंपा अभयारण्य है. यहां हिरण, बाघ, चीता और हाथी पाए जाते हैं. यहां के अन्य दर्शनीय स्थानों में न्यू मार्केट, बर्मा लेन, सोलोमन केव, रिट्ज मार्केट, थाकथिंक बाजार आदि हैं.
मिजोरम का अपना कोई रेलवे स्टेशन नहीं है. असम के सिल्चर तक रेल से पहुंचा जा सकता है. सड़क के रास्ते सिल्चर से 7-8 घंटे की ड्राइविंग कर आइजोल पहुंचा जा सकता है. हां, यहां एअरपोर्ट जरूर है. भारत का सीमाक्षेत्र होने के कारण मिजोरम के बहुत सारे इलाकों में विदेशी पर्यटकों को जाने की इजाजत नहीं है. इस के लिए विशेष अनुमति लेनी पड़ती है.

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