‘तू मेरे साथ सैल्फी ले, मैं तेरे साथ सैल्फी लूंगा’ का जनून युवाओं के सिर चढ़ कर बोल रहा है, क्योंकि आज हर युवा अपनी लाइफ के हर मूवमैंट को जी भर कर न सिर्फ जीना चाहता है, बल्कि हर पल को कैप्चर भी करना चाहता है. इस के लिए उन्हें जहां कहीं भी मौका मिलता है वे सैल्फी लेने लगते हैं. यहां तक कि सैल्फी लेने के चक्कर में वे अपनी सेफ्टी तक को भी इग्नोर कर देते हैं. क्योंकि वे अपने ग्रुप में सैल्फी के माध्यम से सैंटर औफ अट्रैक्शन जो बनना चाहते हैं.

आप को यह जान कर हैरानी होगी कि जब औक्सफोर्ड डिक्शनरी ने 2013 में सैल्फी वर्ड को ‘वर्ड औफ द ईयर’ घोषित किया था तब भी किसी को इस बात का अंदाजा नहीं था कि इस का प्रचलन हद से ज्यादा बढ़ जाएगा, लेकिन हकीकत तो यही है कि आज युवा सैल्फी के पीछे पागलों की तरह बिहेव करने लगे हैं.

युवा टैक्नोलौजी का इस्तेमाल करें इस में कोई हर्ज नहीं, लेकिन हम इस के चक्कर में खुद का ही नुकसान कर बैठें तो इस में कोई समझदारी नहीं कहलाएगी. जैसे पानी के तेज बहाव के बीच खड़े हो कर या फिर जानवरों के साथ सैल्फी लेना आम देखा जाने लगा है, जो किसी भी सूरत में खतरे से खाली नहीं है.

कहने का तात्पर्य है कि सैल्फी का सीमित और सही प्रयोग होना चाहिए साथ ही सैल्फी के साथ कोई मकसद भी जुड़ा होना चाहिए. जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘सैल्फी विद डौटर’ अभियान शुरू किया. इस का मकसद बेटियों को हाईलाइट करना था, जो हमारे समाज व देश के लिए बड़े गर्व की बात है. इसलिए कोशिश यही करनी चाहिए कि किसी भी टैक्नोलौजी को यूज करते समय उस से ज्यादा से ज्यादा फायदा हो न कि उस का इस्तेमाल कर के टैक्नोलौजी को ही बदनाम करे. क्योंकि बुराई टैक्नोलौजी में नहीं बल्कि हमारे द्वारा की गई अति में है.

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