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वृक्षारोपण की औपचारिकता पूरी हुई तो मैं पार्क का चक्कर काटने के बहाने एक सुरक्षाकर्मी के साथ उस परिचित कोने की ओर खिसक लिया. पार्क में प्रवेश करने के साथ ही उमा आंटी की यादें मेरे दिमाग के द्वार थपथपाने लगी थीं और शायद उन्हीं यादों के वशीभूत मेरे कदम इस ओर उठ आए थे. पल्लू से ओट किए वहां बैठी एक वृद्धा के चेहरे की झलक दिखी तो मैं चौंक उठा. ‘अरे, ये तो उमा आंटी हैं!’

सुरक्षाकर्मी बीच में टपक पड़ा था, ‘मंत्रीजी हैं. पार्क में वृक्षारोपण के लिए आए हैं.’

मैं ने झुक कर प्रणाम किया तो उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया, ‘ऐसे ही नेक काम करते रहो. पर याद रखना बेटा, बीज बोने से बड़ा काम उसे सींचना है. यदि सींचने की हिम्मत नहीं रखते तो कभी बीज बोने की जुर्रत भी मत करना. न धरती के गर्भ में और न किसी स्त्री के गर्भ में.’ अपनी बात समाप्त कर वे उठ कर एक ओर चल दी थीं. मैं अवाक सा उन्हें जाते देखता रह गया था.

सवेरे उठा तो फिर वही बात जेहन में उभर आई. मैं गाड़ी उठा कर पार्क की ओर चल पड़ा. कदम सीधे वहीं जा कर रुके जहां मैं ने कल पौधा लगाया था. कल जहां पब्लिक, प्रैसवालों का जमघट लगा हुआ था आज वहां पर एक चिड़िया भी नजर नहीं आ रही थी. पौधा मुरझा कर लटक गया था. मैं दूर कहीं बहते पाइप को खींच कर लाया और पौधों को पानी पिलाया. तृप्त पौधों के साथ मेरा मन भी ख़ुशी से लहलहाने लगा. पाइप छोड़ कर पलटा तो उमा आंटी खड़ी मुसकरा रही थीं, ‘तुम सच्चे अर्थों में जनता के सेवक हो.’

मेरी बांछें खिल उठी थीं, ‘आप ने मुझे पहचाना नहीं. कुछ साल पहले हम यहीं पार्क में मिले थे. मैं आप के कालेज में एग्जाम देने आया था. आप ने अपना टिफिन खिला कर मेरी मदद की थी.’ ‘मैं ने पहचान लिया था. पर की गई नेकी की बातें याद रखना, दोहराना मुझे पसंद नहीं. वह कहावत नहीं सुनी तुम ने, नेकी कर कुएं में डाल.’

‘जी, सुनी है,’ मैं हंस पड़ा था. कहना चाहता था, आप की बेटी तो आप को इन्हीं नेक कारनामों की वजह से ‘इमोशनल फूल’ कहती थी. पर प्रत्यक्ष में चुप रहा.

‘आप की सैर तो पूरी हो गई होगी. चलिए, मैं आप को गाड़ी से घर तक छोड़ देता हूं.’

अपने घर के पास उतरते वक्त उन्होंने अंदर चल कर चाय पीने का आग्रह किया जैसा कि स्वाभाविक था पर मैं ने रास्ते में ही जवाब सोच लिया था. ‘वैसे भी घर में बिना बताए आया हूं. थोड़ी देर और हुई तो सुरक्षाकर्मी खोजने निकल पड़ेंगे. मंत्री बनने के बाद इंसान की जिंदगी अपनी कहां रह जाती है? पर वादा करता हूं, इधर किसी काम से आना हुआ तो आप के यहां चाय पी कर जाऊंगा.’ मैं ने गाड़ी मोड़ ली थी. इस के साथ ही मन उमा आंटी से जुड़ी अतीत की यादों की ओर घूम गया था.

मेरा परीक्षाकेंद्र जिस कालेज में था वह घर से काफी दूर था. इसलिए मैं घर से टैक्सी, खाने आदि के लिए पर्याप्त पैसे ले कर निकला था. कालेज उतरा, तब भी परीक्षा में काफी समय था. कुछ खा-पी लेने के इरादे से जेब में हाथ डालते हुए रैस्तरां की ओर बढ़ा तो जी धक से रह गया. किसी ने जेब काट ली थी. उफ, अब क्या होगा? खानापीना तो छोड़ो, वापस घर कैसे जाऊंगा? थकहार कर कालेज के सामने बने उसी पब्लिक पार्क में जा कर बैठ गया था जहां कल वृक्षारोपण के लिए जाना हुआ था. पार्क की एकमात्र बैंच पर एक महिला विराजमान थी. ये ही उमा आंटी थीं.

‘परीक्षा देने आए हो?’

मैं ने हां में गरदन हिला दी थी.

‘डर लग रहा है? सालभर पढ़ाई नहीं की?’

‘परीक्षा की चिंता नहीं है. वह मैं कर लूंगा. जेब कट गई है. न खाने के पैसे हैं, न वापस जाने के.’ ‘ओह, डोंट वरी,’ उन्होंने अपने बैग से टिफिन निकाल कर मेरे सामने खोल कर रख दिया था.

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