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जसप्रीत कौर की सांस बहुत तेजी से चल रही थी. 65 साल की उम्र में कभी कोई उन्हें प्रोपोज करेगा, उन्होंने कभी भी नहीं सोचा था. जसप्रीत को समझ नहीं आ रहा था कि मानव की बात का वह क्या जवाब दे?  क्या यह कोई उम्र है उस की अपने बारे में सोचने की? कुछ ही सालों में तो उस के पोतेपोतियों की शादी होगी. मगर जसप्रीत फिर भी अपनेआप को रोक नहीं पा रही थी. बरसों बाद जसप्रीत को लग रहा था कि वह भी एक औरत है जिसे कोई पुरुष पसंद कर सकता है. मगर क्या एक उम्र के बाद औरत औरत रह जाती है या उसे एक बेजान सामान मान लिया जाता है जैसेकि घर में पड़ा हुआ फालतू फर्नीचर, जिस के न होने से घर खालीखाली लगता है मगर उस का घर में कितना योगदान है किसी को पता नहीं होता.

जसप्रीत को पहननेओढ़ने का बेहद शौक था. शोख रंग जसप्रीत के गोरे रंग पर बेहद फबते भी थे. आज भी जसप्रीत को ऐसा लगता है मानों यह हाल ही की बात हो. हर साल लोहड़ी और बैसाखी पर जसप्रीत आबकारी के सलमासितारों वाले दुपट्टे लेती थी. सिल्क, शिफौन, क्रैब और भी न जाने कितने तरह के सूट जसप्रीत के पास थे. सूट ही नहीं, उसे साड़ियों का भी बेहद शौक था. घर की अलमारी जसप्रीत के कपङों से भरी हुई थी.

पति महेंद्र सिंह को भी जसप्रीत को सजाने का बेहद शौक था. मगर जब कुलवंत 13 साल का था और ज्योत 10 साल की थी तभी महेंद्र सिंह की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी. 2 महीने तक तो जसप्रीत को अपना भी होश नहीं था. मगर फिर बच्चों का मुंह देख कर जिंदगी की तरफ लौटना पड़ा. लगभग 2 महीने बाद जब जसप्रीत ने अलमारी खोली तो उस का मन रुआंसा हो गया था. कितने शौक से उस ने सब कपड़े बनवाए थे. जसप्रीत खड़ीखड़ी रोने लगी तब उस की सास नवाब कौर बोलीं,”पुत्तर, कुदरत के आगे किस की चलती है?”

“तू दिल छोटा मत कर. तू नहीं तो तेरी दुरानी, भाभियां ये कपड़े पहन लेंगी.” जसप्रीत बोलना चाह रही थी कि उस का पति मरा है मगर वह अभी जिंदा है. देखते ही देखते जसप्रीत के कपड़े बांट दिए गए थे. उस की जिंदगी की तरह उस के कपड़े भी बेरंग हो गए थे. देवर और दुरानी ने एहसान जताते हुए कहा,”भाभी, बीजी को आप के पास छोड़े जा रहे हैं, आप को सहारा भी हो जाएगा और आप का मन भी लगा रहेगा.”

जसप्रीत को समझ ही नहीं आ रहा था कि सास नवाब कौर उस का सहारा बनेंगी या जसप्रीत को उन का सहारा बनना पड़ेगा. नवाब कौर के साथ रहने से जसप्रीत को उन के हिसाब से और बच्चों के हिसाब से खाना बनाना पड़ता था. जसप्रीत जरा भी हंसबोल लेती तो नवाब कौर की त्यौरियां चढ़ जाती थीं. उन्हें लगता कि जैसे जसप्रीत बेहयाई कर रही हो. घर से दफ्तर जाते हुए और दफ्तर से घर आ कर जसप्रीत को सारा काम करना पड़ता था और सास की दवापानी का भार अलग से था.

1 साल के भीतर ही जसप्रीत मुरझा गई थी. उस की सांसें तो चल रही थीं मगर जिंदगी कहीं पीछे छूट गई थी. तभी जसप्रीत की जिंदगी में विपुल का पदार्पण हुआ. विपुल जसप्रीत के भाई का दोस्त था. वह कभीकभी जसप्रीत के छोटेमोटे काम कर देता था. जसप्रीत और विपुल करीब आ गए थे. कभीकभी जसप्रीत विपुल के घर भी चली जाती थी. जसप्रीत अब फिर से जिंदगी की तरफ दोबारा कदम बढ़ा रही थी. जसप्रीत ने विपुल की जिंदगी में अपना दोयम दरजा स्वीकार कर लिया था. मगर एक दिन जब जसप्रीत और विपुल को जसप्रीत के देवर ने देख लिया तो उस को लानतसलामत दी गई. जसप्रीत के देवर ने कहा, “भाभी, आप को शर्म नहीं आती इस उम्र में यह सब करते हुए?”

उधर जसप्रीत की सास लगातार बोल रही थीं,”औरतें तो अपने सुहाग के साथ सती हो जाती हैं और एक यह है. अरे, 40 साल की उम्र में कौन सी जवानी चढ़ी हुई है तुम्हें?” जसप्रीत के पास इन बातों का कोई जवाब नहीं था. उधर विपुल भी सब बातों के बाद जसप्रीत से कन्नी काटने लगा था. इस घटना के बाद जसप्रीत की सास अधिक चौकन्नी हो गई थी.
जसप्रीत का परिवार भी जसप्रीत को उस की जिम्मेदारियों से अवगत कराता था कि कैसे एक मां बन कर उसे अपने बच्चों के लिए रोल मौडल बनना है. जसप्रीत ने अपने अंदर की औरत का गला घोंट दिया था.

जसप्रीत की सास के साथसाथ जसप्रीत के अपने मातापिता भी उस की ही जिम्मेदारी बनते जा रहे थे. जब भी भाईभाभियों को कहीं घूमने जाना होता था तो जसप्रीत के मातापिता महीनों उस के साथ रहते थे. जसप्रीत का भी मन करता था बाहर घूमनेफिरने का, मगर न तो हालातों ने कभी इस बात की इजाजत दी और न ही जसप्रीत के आसपास वालों को इस की कभी जरूरत लगी.

जसप्रीत की सास और बाकी परिवार उस को बचत और हाथ रोक कर खर्च करने की ही सलाह देता था. विपुल की घटना के बाद भी जसप्रीत की जिंदगी में पुरषों का सिलसिला चलता रहा. बस, अब जसप्रीत पहले से ज्यादा सतर्क हो गई थी. कभीकभी जसप्रीत को लगता जैसे वह खुद को औरत साबित करने के लिए इधरउधर रेगिस्तान में भटक रही है. जहां भी उसे लगता कि पानी है वह मिराज निकलता. जसप्रीत को लगने लगा था कि वह इंसान नहीं एक सामान है. जब तक वह पुरुष को दैहिक सुख दे सकती है तब तक ही पुरुष उस के आसपास बने रहेंगे.

जल्द ही उस को यह बात समझ आ गई थी कि उस की आंतरिक प्यास इधरउधर के अफेयर से कभी नहीं बुझ पाएगी. वह अपनेआप में सिमट गई थी. जसप्रीत को कुदरत ने एक बेटा दिया हुआ है, थोड़े दिनों की बात और है अब उस के दुख खत्म हो जाएंगे. उन दिनों उस ने भी इन बातों पर विश्वास कर लिया था. जसप्रीत के जीवन की धुरी अब कुलवंत और ज्योत बन गए थे. मगर फिर भी क्यों जसप्रीत के अंदर का खालीपन बढ़ता ही जा रहा था. देखते ही देखते जसप्रीत 55 की हो गई थी. कुलवंत अब परिवार में मुखिया की भूमिका निभा रहा था.

कुलवंत का विवाह हो गया था. कुलवंत अपनी पत्नी में डूब गया था और ज्योत ने भी जल्द ही अपनी पसंद से विवाह कर लिया था. जसप्रीत की सास और मातापिता का निधन हो गया था. कुलवंत बराबर अपनी मां पर पैतृक घर बेचने का दबाव डाल रहा था. जसप्रीत अब 62 की हो गई थी. नौकरी प्राइवेट थी, इसलिए पेंशन नहीं थी. लोगों की सलाह पर उसे लगा कि बेटे से बिगाड़ना ठीक नहीं है इसलिए उस ने घर बेच दिया. कुलवंत ने एक शानदार सोसायटी में फ्लैट ले लिया था. उस फ्लैट में जसप्रीत एकाएक बूढ़ी और अकेली हो गई थी. सारा दिन वह घर के कामों में लगी रहती और अपनी पोती झलक को संभालती. जसप्रीत की जिंदगी बेरंग हो गई थी.

जब झलक का 10वां बर्थडे था तब जसप्रीत की बहू अजीत कौर की मम्मी हरप्रीत भी आई हुई थीं. रंगों और शोखी से भरपूर हरप्रीत को देख कर कोई नहीं कह सकता था कि उन की इतनी बड़ी नातिन हैं. हरप्रीतजी ने ही जबरदस्ती उस रोज जसप्रीत को गुलाबी रंग का सूट पहनाया जो उन के रंग में घुल सा गया था. जाने से पहले हरप्रीतजी ने जसप्रीत से कहा,”आप खुद के लिए जीना सीखिए, आप बस 62 साल की हुई हैं, अभी भी आप के पास जिंदगी है.”

अब जसप्रीत धीरेधीरे ऐक्सरसाइज में ध्यान लगाने लगी थी. सोसायटी के क्लब में जाने से जसप्रीत को अपने कुछ हमउम्र मिले और उसे कुछ ऐसे रास्ते भी मिले जिस से वह अपने लिए कमा भी सकती थी. उस ने धीरेधीरे अपने हमउम्र लोगों की सहायता से औनलाइन ट्रक्सैक्शन, इन्वेस्टमैंट और बैंकिंग सीखी. उस ने अपने आर्थिक फैसले खुद लेने शुरू कर दिए.

जैसे ही जसप्रीत आर्थिक रूप से स्वावलंबी हुई उस के पंख खुलने लगे. बच्चों की जिम्मेदारियां भी पूरी हो गई थीं. इसलिए जसप्रीत ने अब देश घूमने का फैसला किया था. उस के बाहर घूमने का फैसला उस के बेटे को पसंद नहीं आया था.  मगर क्योंकि वह अपने पैसे से जा रही थी कोई कुछ बोल नहीं पाया था.

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