सुजाता यह सब देखतीसुनती तो दंग रह जाती. एक मध्यवर्गीय परिवार कैसे इतनी रकम इस तरह स्वाहा कर सकता है, आवश्यकताओं की बलि दे कर बेकार के शौक पूरे कर सकता है? कोई उन्हें यथार्थ से अवगत क्यों नहीं कराता? क्या मिलता है इन नएनए फैशनों से? क्या वह उस से कुछ सीख कर लाभ उठा सकती है? यदि वह स्वयं ही कपड़े डिजाइन कर सकती तो कम से कम एक कला तो आती.
सुजाता को लगा कि उसे समस्या का समाधान मिल गया है. वह रतना को अपने कपड़े स्वयं डिजाइन करने का सु झाव देगी, जितना वह स्वयं जानती है, उस से उसे सीखने में मदद देगी. उसे विश्वास था कि कपड़ों की शौकीन रतना इस क्षेत्र में अवश्य रुचि लेगी.
उस का अनुमान ठीक ही था. इंटर की परीक्षा देने के बाद उस ने घोषणा कर दी थी कि वह बीए में न बैठ कर डिजाइन स्कूल में भरती होगी. मातापिता उस के इस निश्चय पर बहुत नाराज थे. बीए, एमए की डिगरी के सामने सिलाई में निपुणता का मतलब फिर पुराने जातिगत काम करना जो वे अब छोड़ना चाहते थे, क्योंकि उन में पैसा नहीं था, की दृष्टि में मूल्य ही क्या था? परंतु एक बार निश्चय कर लेने की रतना की जिद कोई सरलता से तोड़ नहीं सकता था.
इस बात को रतना के दिमाग में बैठाने के लिए सुजाता को भी भर्त्सना का कुछ न कुछ हिस्सा जरूर मिला था, परंतु वह प्रसन्न थी कि वह एक बेकार शौक और थोथी पढ़ाई की जगह, जो केवल डिगरी के लिए की जा रही थी, ठोस कार्य के लिए सु झाव दे सकी थी.