हमेशा व्यस्त रहने वाले डाक्टर गणपति से जब अपने बेटे की बेरुखी और उदासी छिपी न रही तो उन्होंने अपनी पत्नी से पूछा, ‘‘रजत आजकल इतना परेशान क्यों है, तुम्हें कुछ मालूम है, संध्या?’’
संध्या ने मायूसी से सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘कई बार पूछा पर कुछ बताता ही नहीं. निक्की ने तो उस के दोस्त रमेश से भी पूछा था कि क्या औफिस में कोई गड़बड़ है तो रमेश ने बताया कि वहां सब ठीक चल रहा है पर वहां सब का खयाल है कि पारिवारिक वजह से रजत परेशान है.’’
‘‘तब तो समस्या गंभीर है. मैं मौका देख कर रजत से बात करूंगा.’’
शाम को जब वे घर लौटे तो संध्या और उन की बेटी निकिता बहुत खुश नजर आ रही थीं.
‘‘आप तो मौका ही तलाशते रह गए और निक्की ने रजत की परेशानी की वजह भी जान ली,’’ संध्या ने चहकते हुए कहा.
‘‘परेशान नहीं, वह अपने स्कूटर को ले कर क्षुब्ध है, पापा,’’ निकिता ने उन के कुछ पूछने से पहले ही बता दिया, ‘‘आप तो जानते ही हैं कि आजकल रफ्तार का जमाना है. रजत के दोस्तों के पास मोटरसाइकिलें हैं, सो मैं ने सोचा है कि रजत का स्कूटर मैं ले लूं और उसे नई मोटरसाइकिल दिलवा दूं. मु?ो वाहनऋण मिल गया है. कल मोटरसाइकिल बुक करवा कर उस के कागज रजत को दे कर उसे चौंका दूंगी पर अभी आप लोग उसे कुछ मत बताना.’’
‘‘अच्छी बात है, मगर ऋण के चक्कर में पड़ने के बजाय मु?ा से कहा होता, मैं दिलवा देता.’’
‘‘आप जमा की हुई रकम निकालते, पापा. वह तो विभागीय ऋण है, वेतन में से धीरेधीरे कटता रहेगा.’’
‘‘लेकिन तु?ो स्थायी हुए अभी दिन ही कितने हुए हैं? तु?ो ऋण इतनी जल्दी कैसे मिल गया?’’ डाक्टर साहब ने पूछा.
‘‘यह मत पूछिए, पापा,’’ निकिता हंसी, फिर बोली, ‘‘प्रेम है न, बंगला नं. 602 में रहने वाले जज साहब का बेटा, वह हमारे यहां कार्मिक विभाग में अधिकारी है. रोजाना ही पूछता था कि कोई काम हो तो बताओ. सो बस, उसी से वाहन ऋण के लिए कहा और उस ने दिलवा दिया. कैसे दिलवाया, यह तो वही जाने.’’
डाक्टर साहब जैसे ही हाल में से अपने कमरे में घुसे, संध्या पीछेपीछे आ गई और बोली, ‘‘आप ने निक्की की बात से कुछ अंदाजा लगाया? प्रेम निकिता को चाहता है. लड़का और परिवार दोनों ही अच्छे और अपने जानेपहचाने हैं. आप जज साहब से मिल कर रिश्ते की बात करो न.’’
‘‘अभी नहीं संध्या, जब निक्की स्वयं कहेगी या उस की हरकतों से लगेगा कि वह भी प्रेम को चाहती है तब हम उस के रिश्ते की बात चलाएंगे. मैं ने आज तक कैरियर या अन्य किसी बारे में भी अपने बच्चों पर अपनी पसंद नहीं थोपी है, फिर शादी जैसे अहम और व्यक्तिगत मसले कैसे थोप सकता हूं.
‘‘संध्या, निक्की को अब जीने के लिए किसी बैसाखी की जरूरत नहीं है. वह आत्मनिर्भर है. हां, जब किसी संगीसाथी की इच्छा होगी, शादी कर लेगी. वैसे, प्रेम मु?ो भी पसंद है और मैं चाहता हूं कि निकिता भी उसे पसंद कर ले, मगर अपनी मरजी से, तुम्हारे या मेरे कहने से नहीं,’’ कह कर डाक्टर साहब मुसकराए तो संध्या मन मसोस कर बाहर आ गई.
संध्या के जुड़वां बच्चे होते ही उन्होंने परिवार नियोजन करवाने का फैसला किया था. मां के लाख सम?ाने के बावजूद उन्होंने अपना फैसला नहीं बदला था. आम स्त्रियों की तरह संध्या भी यही चाहती थी कि उस का बेटा इंजीनियर और बेटी डाक्टर बने, लेकिन 10वीं पास करते ही दोनों बच्चों ने कहा था कि विज्ञान में उन की कोई रुचि नहीं है.
निकिता ने वाणिज्य की पढ़ाई कर एमबीए किया था और रजत ने 12वीं पास कर के फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया था.
बच्चों के लीक से हट कर कुछ करने के फैसले से संध्या बहुत विचलित हुई थी, लेकिन डाक्टर साहब ने बच्चों से बहुत ही इतमीनान से कहा था, ‘जिस में तुम्हारी रुचि है, वही करो. पढ़ाई और कमाई तो तुम्हें ही करनी है.’ पर संध्या कई वर्षों तक क्षुब्ध रही थी.
अब रजत जानेमाने एक्सपोर्ट हाउस में ‘इन हाउस डिजाइनर’ था, उस के बनाए कपड़ों की देशविदेश में जबरदस्त मांग थी, उस का भविष्य उज्ज्वल लग रहा था और निकिता को भी एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी मिल गई थी.
संध्या थोड़ा सहज हुई थी तो डाक्टर साहब ने एक बार फिर अपने चिरपरिचित अंदाज में बच्चों से कहा था, ‘‘देखो भई, जब जहां शादी करना चाहो, बता देना. हमारा काम तो धूमधड़ाका करना है, सो कर देंगे, बाकी जिंदगी तुम्हारी है. जीवनसाथी का चुनाव तो तुम्हें खुद ही करना होगा.’’ पर डाक्टर साहब ने ऐसा कह कर बहू और दामाद ढूंढ़ने के संध्या के अरमानों पर पानी फेर दिया था.
रात का खाना खाते वक्त डाक्टर साहब ने रजत से पूछा, ‘‘तेरा स्कूटर ठीक चल रहा है?’’
‘‘बिलकुल,’’ रजत बोला.
‘‘स्पीड इत्यादि ठीक पकड़ता है?’’
‘‘जी हां.’’
‘‘मोटरसाइकिल जितनी?’’ इस बार संध्या ने पूछा.
‘‘मोटरसाइकिल जितनी कैसे पकड़ सकता है?’’ रजत ने चिढ़ कर कहा, ‘‘उस की जितनी क्षमता है, उतनी ही स्पीड पकड़ता है.’’
‘‘ज्यादा क्षमता वाली मोटरसाइकिल दौड़ाने की तेरी इच्छा नहीं होती,’’ संध्या ने रजत को फिर कुरेदा.
‘‘जब मोटरसाइकिल दौड़ाने की इच्छा होगी तब खरीद लूंगा,’’ रजत ने दोटूक उत्तर दिया.
‘‘अरे, तू क्या खरीदेगा,’’ संध्या बोली, ‘‘तेरी बहन ने तो तेरे लिए खरीद भी ली.’’
‘‘यह सुन कर रजत को तो जैसे करंट सा लगा, खाने की प्लेट सरका कर वह बिफर पड़ा, क्यों खरीदी, किस के कहने से?’’
‘‘उस का दिल किया.’’
‘‘उस का दिल जो चाहे वह करे और वही हम भी करें, क्या मुसीबत है?’’ संध्या की बात काटते हुए रजत भड़क उठा, ‘‘अगर मु?ो मोटरसाइकिल चाहिए तो क्या मैं खुद नहीं खरीद सकता था, पापा नहीं दिलवा सकते? निक्की की कमाई की गाड़ी पर बैठने की क्या मुसीबत है?’’
पलभर के लिए कमरे में सन्नाटा
छा गया.
‘‘इस घर में तेरामेरा कुछ नहीं है, रजत. हम तीनों कमाते हैं और किसी की कमाई से कुछ भी खरीदा जा सकता है. वह तु?ो मोटरसाइकिल दे कर तेरा स्कूटर खुद ले रही है तो इस में बिगड़ने की क्या बात है?’’ डाक्टर साहब ने संयत स्वर में कहा.
‘‘निक्की, तु?ो स्कूटर चाहिए तो दूसरा खरीद ले. मु?ो कुछ देने या मु?ा से अदलाबदली करने की कोई जरूरत नहीं है,’’ कह कर रजत उठ खड़ा हुआ.
‘‘रुको रजत, मु?ो अभी बहुतकुछ कहना और पूछना है. संध्या और निक्की, तुम भी बैठी रहो.
‘‘हां तो रजत, पहले अपने उखड़ेपन या तनावग्रस्त होने की वजह बताओ,’’ डाक्टर साहब ने हुक्म के अंदाज में कहा.
‘‘आप सुन नहीं सकेंगे,’’ रजत बोला.
‘‘यह नौटंकी छोड़ और साफसाफ बोल, क्या बात है?’’ हक्कीबक्की होने के बाद भी निकिता ने हंसने की कोशिश करते हुए कहा.
‘‘तो फिर सुन, मेरी परेशानी की वजह तू ही है, निक्की, सिर्फ तू.’’
‘‘क्या बक रहा है, बदतमीज? जान छिड़कती है वह तु?ा पर,’’ संध्या चिल्लाई.
‘‘जान छिड़कने का इतना चाव है तो प्रेम पर छिड़के, जो इस पर मरता है. मु?ो बख्शो, बहनजी,’’ कहते हुए हक्कीबक्की बैठी निकिता से रजत ने हाथ जोड़े, फिर वह मम्मीपापा की ओर मुखातिब हो कर बोला, ‘‘आप के इस लाड़प्यार की वजह से मु?ो जिस का प्यार चाहिए, वह नहीं मिल रहा.’’
‘‘तू कहना क्या चाह रहा है, साफसाफ बोल,’’ संध्या बोली.
‘‘तो सुनिए, मेरे साथ भी लड़कियां पढ़ती थीं और अब काम भी करती हैं. कई लड़कियां मु?ा में दिलचस्पी भी लेती हैं, मगर यह सुनते ही कि छुट्टी का समय मैं अपनी बहन के साथ गुजारता हूं, वे मु?ा से कतराने लगती हैं.
‘‘खैर, यह एक तरह से अच्छा ही है, क्योंकि मेरी दिलचस्पी सिर्फ एक ही लड़की में है और उसे आप सब जानते हैं. मेरा मतलब, कैलाशचंद्रजी की लड़की अर्पिता से है.
‘‘अर्पिता भी मु?ो स्कूल के दिनों से चाहती है. उस के घर वाले भी मु?ो पसंद करते हैं, लेकिन न अर्पिता और न ही उस के घर वाले शादी के लिए हां कर रहे हैं और वजह है, मेरी जुड़वां बहन, कुमारी निकिता.’’
‘‘मगर मैं ने किया क्या है, भाई?’’ निकिता ने रोंआसी हो कर पूछा, ‘‘अर्पी से मेरी गहरी मित्रता तो नहीं, लेकिन अच्छी जानपहचान जरूर है. मु?ो याद नहीं आ रहा कि कभी मैं ने उस की या उस की मां की शान में कोई गुस्ताखी की हो.’’
‘‘यह किस ने कहा कि तुम ने उन का अपमान किया है?’’
‘‘तो फिर उन्हें निकिता से क्या शिकायत है?’’ रजत की बात काटते हुए डाक्टर साहब ने पूछा.
‘‘वह मैं बताती हूं,’’ संध्या बोली, ‘‘कैलाशचंद्रजी को ही नहीं, दूसरे लोगों को भी हमारे यहां लड़की देने में एतराज होगा. मैं खुद ही ऐसे घर में, जहां लड़के की कुंआरी बहन होगी, निकिता का रिश्ता नहीं करूंगी’’, संध्या ने कहा.
‘‘कैसी बचकानी बात कर रही हो, संध्या?’’ डाक्टर साहब ने हंस कर कहा, ‘‘घर में एक बेटी होने से क्या निकिता को हमउम्र सहेली नहीं मिल जाएगी? खैर, दूसरों की छोड़ो, अपनी निकिता की वजह से कोई हम से नाता जोड़ना नहीं चाहता, यह मैं मानने को तैयार नहीं.’’
‘‘आप कैलाशचंद्रजी से मेरे लिए अर्पिता को मांग कर तो देखिए न, आप को खुद ही यकीन हो जाएगा कि असलियत क्या है,’’ रजत बेसाख्ता बोला.
‘‘लो, अभी फोन पर मांग लेता हूं,’’ इस से पहले कि डाक्टर साहब को कोई रोकता, उन्होंने कैलाशचंद्र का नंबर मिलाया और मतलब की बात पर आ गए, ‘‘कैलाश, अपनी दोस्ती को रिश्ते में बदल देते हैं, यार. अपनी अर्पिता की शादी मेरे रजत से कर दो. वह शायद अभी न माने, लेकिन रजत तैयार है और सम?ादार मांबाप वह होते हैं दोस्त, जो लड़केलड़की का खयाल किए बिना जो शादी करना चाहे, उसी की शादी पहले कर देते हैं. खैर, यह सब छोड़ो, यह बताओ कि रजत और अर्पिता के रिश्ते के बारे में तुम्हारा क्या खयाल है. हां, मु?ो कोई जल्दी नहीं है,’’ उन्होंने कैलाशचंद्र से कह कर फोन रख दिया.
‘‘कहिए पापा, साफ मना किया या टाल दिया?’’ रजत ने व्यंग्य से पूछा.
‘‘नहीं, न तो साफ मना किया और न टाला. पहले बोले कि घर में बहू लाने से पहले दामाद लाऊं. फिर बोले कि मौका देख कर, घर में सलाह कर के मु?ा से बात करेंगे,’’ डाक्टर साहब खिसियाए से बोले.
‘‘यानी, अगर टाला नहीं तो कोई उत्साह भी नहीं दिखाया,’’ संध्या ने टिप्पणी की.
‘‘आप पहले निकिता की शादी तय कीजिए. फिर देखिए, मु?ा से शादी करने के लिए वे कैसा उत्साह दिखाते हैं,’’ रजत बोला.
‘‘तुम्हारी शादी कराने के चक्कर में पापा मेरी शादी जबरदस्ती तो करने वाले नहीं हैं,’’ निकिता इठला कर बोली, ‘‘क्यों पापा?’’
डाक्टर साहब थोड़ी देर तो असमंजस की स्थिति में चुप रहे, फिर मजबूरी के भाव से बोले, ‘‘मैं क्या कहूं, निक्क. मैं खुद ही नहीं सम?ा पा रहा हूं कि तुम्हारी शादी का रजत की शादी से क्या ताल्लुक है?’’
‘‘मैं सम?ाती हूं, क्या ताल्लुक है,’’ संध्या बोली, ‘‘आजकल के आधुनिक परिवार की परिभाषा है कि पतिपत्नी और बस, 1-2 बच्चे. उस में सासससुर के लिए तो जगह हो सकती है, लेकिन देवरननद यानी अतिरिक्त लोगों के लिए नहीं.’’
‘‘आप इस बात से निश्ंिचत रहें. मैं रजत को भरोसा दिलाना चाहती हूं कि मैं उस की बीवी को कभी भी परेशान नहीं करूंगी,’’ निकिता बोली.
3-4 दिनों बाद ही अर्पिता के मातापिता शादी का प्रस्ताव ले कर आ गए. शीघ्र ही रजत व अर्पिता की शादी धूमधाम से हो गई. निकिता ने बड़े उत्साह से सब काम संभाला.
रजत के हनीमून से लौटने से पहले ही निकिता ने अपने लिए विदेशी कंप्यूटर खरीद लिया. अब उस का अधिकांश पैसा कंप्यूटर की किस्तें भरने व खाली समय कंप्यूटर के सामने बैठने में गुजरने लगा. अब उस के पास न तो शौपिग के लिए फालतू पैसा था और न ही समय, जो कभीकभार सब को उपहारों से लादती रहती. दूसरे काम तो दूर, वह टीवी भी नहीं देखती थी. घर में रहते हुए भी उस का होना, न होना बराबर था.
एक दिन मौसेरे भाई गौरव की शादी पर उस की इच्छा से चलने की बात सुन कर सब को हैरानी हुई. शादी में जाने से एक दिन पहले डाक्टर साहब ही बोले, ‘‘लेकिन समय पर औफिस से घर आ जाना. ऐसा न हो कि हम तैयार हो कर तुम्हारे इंतजार में टीवी के सामने ही बैठे रह जाएं.’’
ऐसा सुन कर निकिता मुसकराई, फिर बोली, ‘‘पापा, ऐसी बात है तो चलिए, मैं कल औफिस ही नहीं जाती. बहुत दिनों से मैं ने छुट्टी भी नहीं ली है. अपना कमरा व हुलिया सब ठीक भी करना है.’’
अगली सुबह निकिता देर से सो कर उठी. अपना कमरा सुव्यवस्थित करने के बाद वह ब्यूटीपार्लर चली गई. जब वह लौट कर आई तो संध्या किसी से फोन पर बात कर रही थी.
‘‘अच्छा, देखूंगी,’’ कुछ देर बात करने के बाद अनमने भाव से कह कर संध्या ने रिसीवर रख दिया.
‘‘किस का फोन था, मां?’’
‘‘तेरी मं?ाली भाभी का.’’
‘‘जरूर पूछ रही होगी कि क्या पहन रही हो?’’ निकिता हंसी, ‘‘वैसे कौन सी साड़ी पहन कर जाओगी, मां?’’
‘‘मैं जा ही नहीं रही. तुम सब अपने पापा के साथ चले जाना.’’
‘‘मगर आप क्यों नहीं जा रहीं?’’ निकिता ने चौंक कर पूछा.
‘‘वैसे ही,’’ संध्या अनमनी सी बोली.
‘‘यह भी कोई बात हुई, मौसी बुरा नहीं मानेंगी? और फिर बड़े, म?ाले तथा छोटे मामा और मौसा आप के न आने की वजह पूछपूछ कर हमारा जो हालबेहाल करेंगे, उस के बारे में सोचा आप ने?’’
‘‘और तेरी शादी न करने की वजह पूछपूछ कर सब मु?ो जो जलील करते रहते हैं, उस के बारे में तू ने भी कभी सोचा है?’’
संध्या का सवाल सुन कर निकिता सकते में आ गई. फिर बोली, ‘‘तो आप इस वजह से गौरव की शादी में नहीं जा रहीं?’’
‘‘हां, वहां तेरी भाभी मु?ो तेरे लिए कोई इंजीनियर लड़का दिखाएंगी और उस की मां से भी मिलवाएंगी. वे लोग गौरव की ससुराल वालों के पड़ोसी हैं, सब से मिल कर, देख कर और फिर भरी बिरादरी में सब की बातें सुन कर क्या करूंगी,’’ संध्या लंबी सांस ले कर बोली.
‘‘किसी की बातें सुनने की क्या जरूरत है, भाभी जिसे दिखाएं उसे देख लेना, जिस से मिलवाएं उस से मिल लेना,’’ निकिता बोली.
‘‘उस के बाद, सब नहीं पूछेंगे कि लड़का कैसा लगा? अब आगे क्या करना है, तब क्या कहूंगी?’’
‘‘वही, जो आमतौर पर ऐसे मौकों पर कहा जाता है कि सब से सलाह करने के बाद ही कुछ कह सकती हूं या बाद में बताऊंगी.’’
‘‘लेकिन बताऊंगी क्या? ढाक के तीन पात. जब तू ने शादी करनी ही नहीं तो फिर कहीं बात शुरू करने से क्या फायदा?’’
‘‘शादी कर लूंगी मां और वह भी आप की पसंद की,’’ यह सुन कर संध्या भौचक रह गई. निकिता उन की ओर देख कर फिर बोली, ‘‘सच कह रही हूं, मां. मैं कई दिनों से आप से इस बारे में बात करना चाह रही थी, जिंदगी में व्यक्तिगत सफलता व आत्मनिर्भरता के अलावा इंसान को दूसरों की निकटता और उस से मिली खुशी भी चाहिए.’’
यह सुन कर संध्या ने राहत की सांस ली, फिर बोली, ‘‘तु?ो यह एहसास
कब हुआ?’’
निकिता थोड़ी देर तो चुप रही, फिर कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘एहसास तो खैर बहुत पहले करवाने की कोशिश की थी, स्वीटी ने, लेकिन मैं उस की बातें सुनती ही नहीं थी. आप को स्वीटी याद है न. पतली, सांवली सी मेरी सहेली?
‘‘स्वीटी का कहना था कि संतुलित जिंदगी जीने के लिए व्यावसायिक सफलता व आत्मनिर्भरता के अलावा एक फ्रैंड होना भी जरूरी है, जिस से भविष्य के सपने देखे जाएं, जिस से उपहारों का आदानप्रदान किया जाए. वह अकसर गुनगुनाती रहती थी- ‘जिदगी बहार है, मुहब्बत की फुहार से…’ लेकिन मेरा कहना था कि जिंदगी तो स्नेह से भी गुलजार हो सकती है.
‘‘मैं रजत के साथ उस के उज्ज्वल भविष्य के सपने देखा करती थी, उसे ढेरों उपहार देती, नाटकों और अन्य महंगे सांस्कृतिक कार्यक्रमों में ले कर जाती थी, सो मेरा जीवन तो बड़े संतुलित ढंग से गुजर रहा था.
‘‘तभी रजत ने यह प्रहार कर दिया कि मेरी वजह से उस की शादी नहीं हो रही. यही नहीं, जब वह मु?ा से इस बारे में अकेले में बात करने मेरे औफिस आया तो उस ने साफसाफ कहा कि मेरी दखलंदाजी के अलावा मेरे द्वारा जबतब उसे उपहार देना भी पसंद नहीं है.
‘‘वह नहीं चाहेगा कि शादी के बाद मैं बिना वजह उसे या अर्पिता को तोहफों से लादती रहूं. मु?ो रजत की वह बात कहीं गहराई तक कचोट गई, लेकिन तभी मैं ने कंप्यूटर का विज्ञापन देखा. उसे खरीदने के बाद तो मेरे पास न किसी के लिए समय रहा और न ही पैसा.
‘‘फिर भी कभीकभी उस यांत्रिक जिंदगी में किसी से अपनेपन की निकटता की तलब उठती थी तो वह प्रेम से बातचीत कर के पूरी हो जाती थी. वह मु?ो चाहता है, इस का एहसास प्रेम मु?ो जबतब कराता रहता था, लेकिन कब तक वह मेरी ‘हां’ का इंतजार करता? आखिर उस ने भी शादी कर ली.’’
‘‘मेरी सहेलियों या सहकर्मियों की भी या तो शादीसगाई हो चुकी है या फिलहाल किसी हमउम्र के पास मेरे लिए वक्त नहीं है, सो अब मेरे पास केवल 2 विकल्प बचते हैं, मां, या तो अपनी उम्र से बड़े, अधेड़ों की बासी जिंदगी में नयापन भरूं या आप की पसंद से शादी कर लूं.’’
यह सुन कर संध्या कुछ बोली नहीं, व्यस्त भाव से उठ खड़ी हुई.
‘‘आप कहां चलीं, मां?’’ निकिता ने चौंक कर पूछा.
‘‘साड़ी और जेवर का चयन करने, जो शाम को पहन कर जाऊंगी. आखिर भावी समधिन से मिलने जा रही हूं,’’ संध्या अंदर जातेजाते बोली.
निकिता को लगा जैसे अलमारी खोलते हुए मां गुनगुना रही थीं- ‘जिंदगी बहार है…’