निम्मो खूब तेज दौड़ी. पीछे मुड़मुड़ कर देखती जाती. हंसती खिलखिलाती. चौदह साल की उम्र में भागने की गति देखते ही बनती है. उस के आनंद का ठिकाना न था. उसे लगा, आज तो अहमर और अमान को उस ने पछाड़ ही दिया पर उस के पेट में अचानक तेज दर्द की लहर उठी. ओह, मां ने पिछले महीने सम?ाया तो था पर उसे इस बात पर ज्यादा सोचने का मौका नहीं मिला था कि लो, अब यह दूसरे महीने में फिर पीरियड की शुरुआत थी. उस ने महसूस किया, उस की फ्रौक कुछ गीली हो गई है. वह वहीं धम्म से बैठ गई. तेजतेज धौंकनी सी चलती सांसों को काबू किया और पीछेपीछे आराम से चलते अहमर और अमान को हंसते हुए आते देखा तो सकुचा गई. अहमर ने दूर से ही कहा, ‘‘जोश ठंडा हो गया न?’’ वह कुछ नहीं बोली, पेट पर हाथ रखते हुए बोली, ‘‘मु?ो घर जाना है.’’

‘‘क्या हुआ?’’

‘‘कुछ नहीं. बस, घर जाना है.’’

‘‘खेलेगी नहीं?’’

‘‘आज नहीं.’’

‘‘पर हुआ क्या है?’’

‘‘तुम दोनों को नहीं पता होगा. मां कहती है लड़कों को इस बारे में कुछ नहीं बताना. लड़कों से ऐसी बातें नहीं करनी हैं.’’

अहमर और अमान ने एकदूसरे को देखा, फिर मुसकराए. अमान ने कहा, ‘‘तु?ो पीरियड होने लगा?’’

‘‘तुम्हें यह सब पता है?’’

दोनों हंस पड़े, ‘‘तू कितनी बुद्धू है. आजकल सब को सबकुछ पता रहता है. सुन, तु?ो कोई दिक्कत हो रही है?’’

‘‘हां, पेट में बहुत दर्द है.’’

‘‘चल, तु?ो घर छोड़ आएं, तेरी मां अभी घर लौट आई होगी?’’

‘‘नहीं, पिताजी भी कुछ देर से आएंगे.’’

‘‘चल, घर चल.’’

तीनों की टोली सब मस्ती भूल घर लौट चली. तीनों बनारस के बाहरी नए बसे इलाके की एक छोटी सी बस्ती में रहते थे. तीनों में खूब प्यार था. घर भी थोड़ी दूरी पर थे. निम्मो के पिता श्याम गोदौलिया की कपड़े की दुकान में काम करते थे. मां इंदु संजय गांधी नगर के कुछ घरों में खाना बनाने का काम करती थीं. ये आम गरीब परिवार थे. इन्हें हिंदूमुसलिम की राजनीति से कोई मतलब न था, दिन में सब मेहनत करते, रात को पड़ कर सो जाते. संघर्ष और मेहनत का फिर एक और दिन निकलता, जीने की जद्दोजेहद में किसी से नफरत करने का न समय बचता, न हिम्मत.

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