तब तक चपरासी चाय रख कर चला गया था. असगर ने चाय में चीनी डाल कर प्याला तरन्नुम की तरफ बढ़ाया. तरन्नुम जैसे एकएक घूंट के साथ आंसू पी रही थी.
असगर ने एकदो फाइलें खोलीं. कुछ पढ़ा, कुछ देखा और बंद कीं. अब उस ने तरन्नुम की तरफ देखा, ‘‘क्या कार्यक्रम है?’’
‘‘मेरा कार्यक्रम तो फेल हो गया,’’ तरन्नुम लजाती सी बोली, ‘‘मैं ने सोचा था पहुंच कर आप को हैरान कर दूंगी. फिर अपना घर देखूंगी. हमेशा ही मेरे दिमाग में एक धुंधला सा नक्शा था अपने घर का, जहां आप एक खास तरीके से रहते होंगे. उस कमरे की किताबें, तसवीरें सभी कुछ मुझे लगता है मेरी पहचानी सी होंगी लेकिन यहां तो अब आप ही जब अजनबी लग रहे हैं तब वे सब...’’
असगर के चेहरे पर एक रंग आया और गया. फिर वह बोला, ‘‘यही परेशानी है तुम औरतों के साथ. हमेशा शायरी में जीना चाहती हो. शायरी और जिंदगी 2 चीजें हैं. शायरी ठीक वैसी ही है जैसे मुहब्बत की इब्तदा.’’
‘‘और मुहब्बत की मौत शादी,’’ असगर की तरफ गहरी आंखों से देखते हुए तरन्नुम बोली.
‘‘मुझे पता है तुम ने बहुत से इनाम जीते हैं वादविवाद में, लेकिन मैं अपनी हार कबूल करता हूं. मैं बहस नहीं करना चाहता,’’ असगर ने उठते हुए कहा, ‘‘तुम्हारा सामान कहां है?’’
‘‘बाहर टैक्सी में,’’ तरन्नुम ने बताया.
‘‘टैक्सी खड़ी कर के यहां इतनी देर से बैठी हो?’’
‘‘और क्या करती? पता नहीं था कि आप यहां मिलोगे भी या नहीं. फिर सामान भी भारी था,’’?तरन्नुम ने खुलासा किया.
जाहिर था असगर उस की किसी भी बात से खुश नहीं था.