असगर अपने दोस्त शकील की शादी में शरीक होने रामपुर गया. स्कूल के दिनों से ही शकील उस के करीबी दोस्तों में शुमार होता था. सो दोस्ती निभाने के लिए उसे जाना मजबूरी लगा था. शादी की मौजमस्ती उस के लिए कोई नई बात नहीं थी और यों भी लड़कपन की उम्र को वह बहुत पीछे छोड़ आया था.
शकील कालेज की पढ़ाई पूरी कर के विदेश चला गया था. पिछले कितने ही सालों से दोनों के बीच चिट्ठियों द्वारा एकदूसरे का हालचाल पता लगते रहने से वे आज भी एकदूसरे के उतने ही नजदीक थे जितना 10 बरस पहले.
असगर को दिल्ली से आया देख शकील खुशी से भर उठा, ‘‘वाह, अब लगा शादी है, वरना तेरे बिना पूरी रौनक में भी लग रहा था कि कुछ कसर बाकी है. तुझ से मिल कर पता लगा क्या कमी थी.’’
‘‘वाह, क्या विदेश में बातचीत करने का सलीका भी सिखाया जाता है या ये संवाद भाभी को सुनाने से पहले हम पर आजमाए जा रहे हैं.’’
‘‘अरे असगर, जब तुझे ही मेरे जजबात का यकीन न आ रहा हो तो वह क्यों करेगी मेरा यकीन, जिसे मैं ने अभी देखा भी नहीं,’’ शकील, असगर के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला.
बातें करतेकरते जैसे ही दोनों कमरे के अंदर आए असगर की निगाहें पल भर के लिए दीवान पर किताब पढ़ती एक लड़की पर अटक कर रह गईं. शकील ने भांपा, फिर मुसकरा दिया. बोला, ‘‘आप से मिलिए, ये हैं तरन्नुम, हमारी खालाजाद बहन और आप हैं असगर कुरैशी, हमारे बचपन के दोस्त. दिल्ली से तशरीफ ला रहे हैं.’’
दुआसलाम के बाद वह नाश्ते का इंतजाम देखने अंदर चली गई. असगर के खयाल जैसे कहीं अटक गए. शकील ने उसे भांप लिया, ‘‘क्यों साहब, क्या हुआ? कुछ खो गया है या याद आ रहा है?’’
असगर कुछ नहीं बोला, बस एक नजर शकील की तरफ देख कर मुसकरा भर दिया.
शादी के सारे माहौल में जैसे तरन्नुम ही तरन्नुम असगर को दिखाई दे रही थी. उसे बिना बात ही मौसम, माहौल सभी कुछ गुनगुनाता सा लगने लगा. उस के रंगढंग देख कर शकील को मजा आ रहा था. वह छेड़खानी पर उतर आया. बोला, ‘‘असगर यार, अपनी दुनिया में वापस आ जाओ. कुछ बहारें देखने के लिए होती हैं, महसूस करने के लिए नहीं, क्या समझे? भई, यह औरतों की आजादी के लिए नारा बुलंद करने वालियों की अपने कालेज की जानीमानी सरगना है, तुम्हारे जैसे बहुत आए और बहुत गए. इसे कुछ असर होने वाला नहीं है.’’
‘‘लगानी है शर्त?’’ असगर ने चुनौती दी, ‘‘अगर शादी तक कर के न दिखा दूं तो मेरा नाम असगर कुरैशी नहीं.’’
शकील ने उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘मियां, लोग तो नींद में ख्वाब देखते हैं, आप जागते में भी.’’
‘‘बकवास नहीं कर रहा मैं,’’ असगर ने कहा, ‘‘बोल, अगर शादी के लिए राजी कर लूं तो?’’
‘‘ऐसा,’’ शकील ने उकसाया, ‘‘जो नई गाड़ी लाया हूं न, उसी में इस की डोली विदा करूंगा, क्या समझा. यह वह तिल है जिस में तेल नहीं निकलता.’’
और इस चुनौती के बाद तो असगर तरन्नुम के आसपास ही नजर आने लगा. अचानक ही एक से एक शेर उस के होंठों पर और हर महफिल में गजलें उस की फनाओं में बिखर रही थीं.
शकील हैरान था. यह तरन्नुम, जो हर आदमी को, आदमी की जात पर लानत देती थी, कैसे अचानक ही बहुत लजीलीशर्मीली ओस से भीगे गुलाब सी धुलीधुली नजर आने लगी.
घर में उस के इस बदलाव पर हलकी सी चर्चा जरूर हुई. शकील के साथ तरन्नुम के अब्बाअम्मी उस से मिलने आए. शकील ने कहा, ‘‘ये तुम से कुछ बातचीत करना चाहते थे, सो मैं ने सोचा अभी ही मौका है फिर शाम को तो तुम वापस दिल्ली जा ही रहे हो.’’
असगर हैरान हो कर बोला, ‘‘किस बारे में बातचीत करना चाहते हैं?’’
‘‘तुम खुद ही पूछ लो, मैं चला,’’ फिर अपनी खाला शहनाज की तरफ मुड़ कर बोला, ‘‘खालू, देखो जो भी बात आप तफसील से जानना चाहें उस से पूछ लें, कल को मेरे पीछे नहीं पडि़एगा कि फलां बात रह गई और यह बात दिमाग में ही नहीं आई,’’ इस के बाद शकील कमरे से बाहर हो गया.
असगर ने कहा, ‘‘आप मुझ से कुछ पूछना चाहते थे, पूछिए?’’
शहनाज बड़ा अटपटा महसूस कर रही थीं. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या सवाल करें. उन के शौहर रज्जाक अली ने चंद सवाल पूछे, ‘‘आप कहां के रहने वाले हैं. कितने बहनभाई हैं, कहां तक पढ़े हैं? सरकारी नौकरी न कर के आप प्राइवेट नौकरी क्यों कर रहे हैं? अपना मकान दिल्ली में कैसे बनवाया? वगैरहवगैरह.’’
असगर जवाब देता रहा लेकिन उसे समझ में नहीं आ रहा था कि इतनी तहकीकात किसलिए की जा रही है. शहनाज खाला थीं कि उस की तरफ यों देख रही थीं जैसे वह सरकस का जानवर है और दिल बहलाने के लिए अच्छा तमाशा दिखा रहा है. खालू के चंदएक सवाल थे जो जल्दी ही खत्म हो गए.
शहनाज खाला बोलीं, ‘‘तो बेटा, जब तुम्हारे सिर पर बुजुर्गों का साया नहीं है तो तुम्हें अपने फैसले खुद ही करने होते होंगे, है न…’’
‘‘जी,’’ असगर ने कहा.
‘‘तो बताओ, निकाह कब करना चाहोगे?’’
‘‘निकाह?’’ असगर ने पूछा.
‘‘और क्या,’’ खाला बोलीं, ‘‘भई, हमारे एक ही बेटी है. उस की शादी ही तो हमारी जिंदगी का सब से बड़ा अरमान है. फिर हमारे पास कमी भी किस चीज की है. जो कुछ है सब उसे ही तो देना है,’’ खाला ने खुलासा करते हुए कहा.
‘‘पर आप यह सब मुझ से क्यों कह रही हैं?’’
इस पर खालू ने कहा, ‘‘बात ऐसी है बेटा कि आज तक हमारी तरन्नुम ने किसी को भी शादी के लायक नहीं समझा. हम लोगों की अब उम्र हो रही है. अब उस ने तुम्हें पसंद किया है तो हमें भी अपना फर्ज पूरा कर के सुर्खरू हो लेने दो.’’
‘‘क्या?’’ असगर हैरान रह गया, ‘‘तरन्नुम मुझे पसंद करती है? मुझ से शादी करेगी?’’ असगर को यकीन नहीं आ रहा था.
‘‘हां बेटा, उस ने अपनी अम्मी से कहा है कि वह तुम्हें पसंद करती है और तुम्हीं से शादी करेगी. देखो बेटा, अगर लेनेदेने की कोई फरमाइश हो तो अभी बता दो. हमारी तरफ से कोई कसर नहीं रहेगी.’’
‘‘पर खालू मैं तो शादी,’’ असगर कुछ कहने के लिए सही शब्द सोच ही रहा था कि खालू बीच में ही बोले, ‘‘देखो बेटा, मैं अपनी बच्ची की खुशियां तुम से झोली फैला कर मांग रहा हूं, न मत कहना. मेरी बच्ची का दिल टूट जाएगा. वह हमेशा से ही शादी के नाम से किनारा करती रही है. अब अगर तुम ने न कर दी तो वह सहन नहीं कर सकेगी.’’
एक पल को असगर चुप रहा, फिर बोला, ‘‘आप ने शकील से बात कर ली है.’’
‘‘हां,’’ खालू बोले, ‘‘उस की रजामंदी के बाद ही हम तुम से बात करने आए हैं.’’
शहनाज खाला उतावली सी होती हुई बोलीं, ‘‘तुम हां कह दो और शादी कर के ही दिल्ली जाओ. सभी इंतजाम भी हुए हुए हैं. इस लड़की का कोई भरोसा नहीं कि अपनी हां को कब ना में बदल दे.’’
‘‘ठीक है, जैसा आप सही समझें करें,’’ असगर ने कहा.
शहनाज खाला ने उस का हाथ पकड़ कर अपनी आंखों से लगाया, ‘‘बेटा, तुम तो मेरे लिए फरिश्ते की तरह आए हो, जिस ने मेरी बच्ची की जिंदगी बहारों से भर दी,’’ खुशी से गमकते वह और खालू घर के अंदर खबर देने चले गए.
उन के जाने के बाद शकील कमरे में आते हुए बोला, ‘‘तो हुजूर ने मुझे शह देने के लिए सब हथकंडे आजमाए.’’
असगर ने कहा, ‘‘तू डर मत, मैं जीत का दावा कार मांग कर नहीं कर रहा हूं.’’
‘‘तू न भी मांगे,’’ शकील ने कहा, ‘‘तो भी मैं कार दूंगा. हम मुगल अपनी जबान पर जान भी दे सकने का दावा करते हैं, कार की तो बात ही क्या.’’
‘‘मजाक छोड़ शकील,’’ असगर ने कहा, ‘‘कल उसे पता लगेगा तब…’’
‘‘अब कुछ असर होने वाला नहीं है,’’ शकील ने कहा, ‘‘अपनेआप शादी के बाद हालात से सुलह करना सीख जाएगी. अपने यहां हर लड़की को ऐसा ही करने की नसीहत दी जाती है.’’
‘‘पर तू कह रहा था शकील कि वह आम लड़कियों जैसी नहीं है, बड़ी तेजतर्रार है.’’
‘‘वह तो शादी से पहले 50 फीसदी लड़कियां खास होने का दावा करती हैं पर असलीयत में वे भी आम ही होती हैं. है न, जब तक तरन्नुम को शादी में दिलचस्पी नहीं थी, मुहब्बत में यकीन नहीं था, वह खास लगती थी. पर तुम्हें चाह कर उस ने जता दिया है कि उस के खयाल भी आम औरतों की तरह घर, खाविंद, बच्चों पर ही खत्म होते हैं. मैं तो उस के ख्वाबों को पूरा करने में उस की मदद कर रहा हूं,’’ शकील ने तफसील से बताते हुए कहा.
और यों दोस्त की शादी में शरीक होने वाला असगर अपनी शादी कर बैठा. तरन्नुम को दिल्ली ले जाने की बात से शकील कन्नी काट रहा था. अपना मकान किराए पर दिया है, किसी के घर में पेइंगगेस्ट की तरह रहता हूं. वे शादीशुदा को नहीं रखेंगे. इंतजाम कर के जल्दी ही बुला लेने का वादा कर के असगर दिल्ली वापस चला आया.
तरन्नुम ने जब घर का पता मांगा तो असगर बोला, ‘‘घर तो अब बदलना ही है. दफ्तर के पते पर चिट्ठी लिखना,’’ और वादे और तसल्लियों की डोर थमा कर असगर दिल्ली चला आया.
7-8 महीने खतों के सहारे ही बीत गए. घर मिलने की बात अब खटाई में पड़ गई. किराएदार घर खाली नहीं कर रहा था इसलिए मुकदमा दायर किया है. असगर की इस बात से तरन्नुम बुझ गई, मुकदमों का क्या है, अब्बा भी कहते हैं वे तो सालोंसाल ही खिंच जाते हैं, फिर क्या जिन के अपने घर नहीं होते वह भी तो कहीं रहते ही हैं. शादी के बाद भी तो अब्बू, अम्मी के ही घर रह रहे हैं, ससुराल नहीं गई, इसी को ले कर लोग सौ तरह की बातें ही तो बनाते हैं.
असगर यों अचानक तरन्नुम को अपने दफ्तर में खड़ा देख कर हैरान हो गया, ‘‘आप यहां? यों अचानक,’’ असगर हकलाता हुआ बोला.
तरन्नुम शरारत से हंस दी, ‘‘जी हां, मैं यों अचानक किसी ख्वाब की तरह,’’ तरन्नुम ने चहकते से अंदाज में कहा, ‘‘है न, यकीन नहीं हो रहा,’’ फिर हाथ आगे बढ़ा कर बोली, ‘‘हैलो, कैसे हो?’’ असगर ने गरमजोशी से फैलाए हाथ को अनदेखा कर के सिगरेट सुलगाई और एक गहरा कश लिया.
तरन्नुम को लगा जैसे किसी ने उसे जोर से तमाचा मारा हो. वह लड़खड़ाती सी कुरसी पकड़ कर बैठ गई. मरियल सी आवाज में बोली, ‘‘हमें आया देख कर आप खुश नहीं हुए, क्यों, क्या बात है?’’
असगर ने अपने को संभालने की कोशिश की, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं. तुम्हें यों अचानक आया देख कर मैं घबरा गया था,’’ असगर ने घंटी बजा कर चपरासी से चाय लाने को कहा.
‘‘हमारा आना आप के लिए खुशी की बात न हो कर घबराने की बात होगी, ऐसा तो मैं ने सोचा भी नहीं था,’’ तरन्नुम की आंखें नम हो रही थीं.