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‘‘ऐसा नहीं होगा, तुम्हारे प्रेम के प्रतिदान में मैं तुम्हें अपने साथ प्रतिष्ठित करूंगा. तुम विश्वास रखो,’’ पृषघ्र ने दृढ़ स्वर में कहा.

‘‘मेरे लिए यही प्रतिदान पर्याप्त है कि आप ने मेरे प्रेम को स्वीकार किया. ऋषियों द्वारा स्थापित इन कठोर नियमों और परंपराओं को तोड़ना सरल नहीं है, कुमार. परंपराओं और नियमों की चट्टानों से हम सिर फोड़तेफोड़ते मृत्युपर्यंत विजयी नहीं हो सकेंगे. आप अपना शिक्षण पूर्ण कर राजगृह को लौट जाएंगे और यह गुर्णवी यथावत ‘गुर्णवी’ ही रह जाएगी.’’

‘‘नहीं, ऐसा नहीं होगा. मैं शक्ति के बल पर इस सनातनी व्यवस्था को बदल दूंगा.’’

‘‘मैं जानती हूं कुमार, आप जैसा क्षत्रिय वीर दूरदूर तक नहीं है. आप की तलवार की गति मैं ने देखी है. आप के धनुष की टंकार भी सुनी है और बाणों को आप की आज्ञा के प्रतिकूल जाते कभी नहीं पाया. आप केवल आप ही हैं परंतु केवल शस्त्रों से तो समाज नहीं बदल सकता. मु  झे लगता है, हम दोनों को एकदूसरे तक पहुंचने में हजारों वर्ष लगेंगे.’’

‘‘तुम्हें मु  झ पर विश्वास नहीं है या चुनौती दे रही हो?’’ गंभीर स्वर में पृषघ्र ने पूछा.

‘‘मैं एक अबला और उस पर भी शूद्रा, भला आप को क्या चुनौती दे सकती हूं. परंतु मैं ने जो भी कहा है वह यथार्थ है, नभ में चमकते इस चंद्रमा की तरह,’’ कहते हुए उस ने आकाश में चमकते चंद्रमा को इंगित किया.

‘‘नहीं, गुर्णवी, तुम ने पृषघ्र को केवल चाहा है, प्रेम किया है. उस की शक्ति और बाह्य रूप को देखा है, उस के अंतर्मन को नहीं जाना. आओ, तुम्हें विश्वास दिला दूं,’’ कहते हुए पृषघ्र ने उस का हाथ पकड़ा और   झटके से उठा कर अपने बाईर्ं ओर चट्टान पर खड़ा कर लिया.

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