2 दिन बाद सुलेखा दुकान पर जाने की तैयारी कर रही थी. मोहनलाल नियम से चाबी लेने घर पर आता था. सुलेखा आज बहुत परेशान थी. कल सवेरे से गया हुआ अमर अभी तक घर नहीं लौटा था. वह अपने एकमात्र हितैषी मोहनलाल को अमर को ढूंढ़ने के लिए भेजने की सोच ही रही थी कि दरवाजे की घंटी बजी. उस ने जल्दी से दरवाजा खोला तो उस के होश गुम हो गए. दरवाजे पर वर्दीधारी पुलिस के 2 आदमी खड़े थे. वे पूछ रहे थे कि अमर का यही घर है?
उस ने कांपते हुए सिर हिलाया. एक पुलिस वाला बोला,"अमर और उस के कुछ दोस्तों को कल शहर से दूर एक खंडहर पर गांजे के साथ पकड़ा गया. वे सभी गांजे और चरस का सेवन करते पकड़े गए हैं," यह सुनने के बाद सुलेखा को घबराहट के मारे चक्कर आ गया. वह वहीं गिर पड़ी. उसी समय मोहनलाल भी घर पर दुकान की चाबी लेने आ गया था. सारी बातें सुन कर वह भी सकते में आ गया. उस के तो हाथपैर फूल गए. उस ने रोमा को मां की देखभाल करने को कह पुलिस के साथ थाने जा पहुंचा. वहां अमर की हालत देख उस का दिल कांप उठा. अमर उसे देख रो पड़ा और इस मुसीबत से बचाने के लिए गुहार लगाने लगा. होश में आते ही सुलेखा भी पुलिस थाने आ पहुंची. अमर को देख उस का दिल दुखी हो गया. मन दुख से हाहाकार कर उठा.क्या करे, किस के आगे दया की भीख मांगे.
मोहनलाल ने सलाह दी कि वह कहीं से रमेश का पताठिकाना पता कर उन्हें ही खबर पहुंचाने की कोशिश करता है. इस समय अमर को डांटनेफटकारने या पुलिसकर्मियों के आगे हाथपैर जोड़ने से बात नहीं बनेगी. इसलिए अमर को सांत्वना दे कर उन दोनों ने पुलिसकर्मियों से अमर पर थोड़ा नरम रुख रखने की विनती कर बताया कि गलत दोस्तों की संगत में पड़ जाने की वजह से उस ने ऐसा किया.
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