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सुलेखा और दोनों बच्चे रमेश के इस बदलाव से बेहद परेशान थे. बात अब सुलेखा की सहनशक्ति से बाहर होती जा रही थी. क्या करे, किस से मदद ले. उन के परिवार की लोग मिसाल दिया करते थे. आज वह बङी दुविधा में फंस गई थी.

 

अगले दिन उस ने निर्णायक कदम उठाया. सुबह उठते ही उस ने मौका देख कर बड़े प्यार से रमेश को समझाया कि वह किस बाबाजी के जाल में फंस कर अपने परिवार, कामकाज को भुला बैठा है. बारबार समझाने पर रमेश की ओर से कोई आश्वासन न पा कर वह आगबबूला हो गई. उस ने चिल्ला कर कहा कि या तो तुम अपने परिवार पर ध्यान दो या उस पाखंडी बाबा को चुन लो. अपने गुरु को पाखंडी कहने पर रमेश आपे से बाहर हो गया. उस ने आव देखा न ताव सुलेखा के गाल पर  एक थप्पड़ जड़ दिया. सुलेखा आवाक रह गई. बच्चे भी दौड़ कर बाहर आ गए. अपमान और क्रोध से सुलेखा तड़प कर रोने लगी. रमेश आवेश में बड़बड़ाते हुए बिना कुछ कहे घर से बाहर चला गया.

 

अमर और रोमा की आज से बोर्ड परीक्षा शुरू होने वाली थी. दोनों बच्चे बुझे मन से परीक्षा देने गए पर परीक्षा में एकाग्रता की कमी से कुछ खास नहीं कर पाए. घर आए तो सन्नाटा सा पसरा था. सुलेखा ने बताया कि रमेश आज दुकान पर भी नहीं पहुंचे. समय बीतता गया. ऐग्जाम समाप्त हो गया फिर रिजल्ट भी आ गए. दोनों बच्चों के परीक्षा परिणाम निराशाजनक थे. घर में मानों मुर्दनी  सी छा गई.

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