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वे मुझ से जब अपने जिस्म की मालिश करने के लिए कहने लगीं तो मैं ने मना कर दिया. मुझे काम करते हुए 3 वर्ष बीत चुके थे. फिर भी उन्होंने मुझे विद्यालय में आने से मना कर दिया जैसे विद्यालय उन की निजी जायदाद हो. उन्होंने अपने गांव से एक दूसरे व्यक्ति को मेरे स्थान पर नौकरी पर रख लिया.
मैं फिर लाचार हो गया. मेरा सुनहरा स्वप्न था- सरकारी नौकरी, अच्छी तनख्वाह और मरते समय तक पैंशन. मैं सपना देखता कि मैं ने रुपए जोड़ कर एक खेत खरीद लिया. जो मुझे काम नहीं देते थे, उन्हें मैं काम देने लगा. एक विधवा आ कर मेरी कुटी में रहने लगी. मुझे अपने हाथ से खाना नहीं बनाना पड़ता. पर सुबह होते ही मेरा सपना चूरचूर हो गया. मैं फिर से अंडरवियर-बनियान में घूमने लगा.

मुझे वन विभाग की पौधशाला ने भी काम पर नहीं लिया क्योंकि मेरी जगह दूसरा आदमी आ गया था. इस देश में बेकारों की कमी नहीं है. एक को काम पर बुलाओ, तो सौ लोग दौड़े चले आएंगे. मैं अपनी पुरानी जिंदगी में लौट आया. वही खेत पर घर, मेरी प्रिय गायें तथा जहां भी काम मिला, काम किया और मजदूरी ली. पड़ोस में इदरीस चाचा जरूर मुझे भूखा नहीं रहने देते थे. पता नहीं उन के इसलाम धर्म में ऐसा क्या है. वे हर समय मुझे अपने हैंडपंप से पानी लेने देते तथा अपने बाग से कंद-मूल-फल व सब्जी भी. मैं भी उन के बाग में मेहनताना लिए बिना काम करता रहता.

इसी दौरान पड़ोस में प्लास्टिक की काली थैलियों का कारखाना प्रगति कर रहा था. पास के किसान उन थैलियों में पौधे उपजा कर सारे देश में भेज रहे थे. मुझे वहां नियमित काम मिलने लगा- कभी थैलियों में छेद करने का तो कभी थैलियों की पैकिंग करने का. मैं मन लगा कर, परिश्रम से कारखाने में काम करता, साथसाथ कारखाने के बाग में भी काम कर देता.

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