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मेरा नाम जिलेराम है. मैं झांसी से 16 किलोमीटर दूर झांसी-खजुराहो नैशनल हाईवे पर एक खेत की मेंड़ पर झोंपड़ी बना कर रहता हूं. मेरी झोंपड़ी चारों ओर दोतीन फुट ऊंची मिट्टी की दीवारों पर लकड़ी और बांस गाड़ कर बनी है जिस की लंबाई 10 फुट तथा चौड़ाई भी 10 फुट है. झोंपड़ी के ऊपर पुरानी टीन, टूटी एसबेस्टस शीट तथा मेंड़ के सहारे छप्पर डाल रखा है. झोंपड़ी में चारों तरफ पुरानी प्लास्टिक शीट चढ़ा रखी है ताकि झोंपड़ी में पानी न गिरे. झोंपड़ी के फर्श पर मिट्टी बिछा कर उसे चिकना बना दिया है और उस पर गोबर लीप दिया है. झोंपड़ी में एक ओर साहब द्वारा दी गईं 2 टूटी कुरसियों को एकदूसरे के सामने रख व बीच में एक प्लाई डाल कर पलंग बना लिया है. झोंपड़ी के दूसरे किनारे पर ईंटों से एक चूल्हा बनाया है जिस में मैं मिट्टी के बरतन में खाना बनाता हूं. मेरे पास गिनती के चारपांच बरतन हैं- एक थाली, लोटा, गिलास, डैकची और एक प्लेट. दोतीन प्लास्टिक की बोतलें हैं जिन में दूध, मट्ठा और तेल रखा रहता है. सब्जी काटने के लिए कुल्हाड़ी ही मेरा चाकू है. मसालों के तौर पर नमक और खेत की हलदी. पानी भरने के लिए मटका तथा पेन्ट की खाली बालटी. बिछाने के लिए मिली पुरानी चादर. बची हुई जगह में एक किनारे पर गायों के लिए बंधा हुआ भूसा. लकड़ी, बांस व सूखे झाड़ से बना दरवाजा तथा दरवाजा बंद करने के लिए बांस में लगी कील से प्लास्टिक की डोरी से फंसा दरवाजा. झोंपड़ी के दरवाजे पर लगा एक पौधा जो सांपबिच्छू के काटने पर व्यक्ति को बचा लेता है.

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