कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

वैसे, वर्षभर में मेरी मालकिन मेरी मेहनत से उपजाऊ गेहूं से अकसर आधा भाग मेरे लिए छोड़ देती हैं जिस से मैं जीवननिर्वाह कर सकूं. उन की अनुमति से मैं थोड़ीबहुत सब्जी उगा भी लेता हूं व कुछ सब्जी बेच कर नमक और तेल खरीद लाता हूं, कभीकभी गाय का दूध भी बेच कर. बचे हुए दूध का मट्ठा निकाल कर शराब की तरह पी जाता हूं.

मेरी गायें मेरी तरह कमजोर हैं, तभी तो उन के मालिकों ने उन्हें छोड़ दिया. पर वे दयालु हो कर मेरे लिए अपनी पूरी शक्ति से दूध छोड़ती हैं. मुझे यह अच्छा नहीं लगता! मैं गाय के बछड़े को पहले दूध पिलाता हूं. वह और क्या खाए? जब वह हरी घास खाने लगेगा, तब वह दौड़ता हुआ चारों तरफ फिरेगा और मेरा व अपनी गौमाता का हृदय हरा करेगा. मेरे लिए गौमाताएं ही सबकुछ हैं जिन के सहारे मैं जी रहा हूं तथा जिन में 3 करोड़ देवताओं का वास है. ईश्वर मेरे लिए कहां है, यदि वह कहीं है भी तो उसी ने ही मुझे यह गरीबी और अभाव का जीवन दिया है.

इस गरीबी से नजात पाने के लिए मैं ने कई दरख्वास्तें दीं- घर बनाने के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना में, राशन कार्ड बनवाने के लिए और सरकारी जमीन पाने के लिए. पर मैं सफल न हो सका. प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत मेरे नाम पर जमीन होना अनिवार्य है. मेरे नाम कोई जमीन नहीं है और न ही मेरी मालकिन मेरे नाम ज़मीन कर पाएंगी या कर सकेंगी. मालकिन के लिखने पर भी लेखपाल मेरे नाम ज़मीन नहीं चढ़ाएगा. वह कहेगा कि रजिस्ट्री का खर्च? फिर खर्चा भी बहुत अधिक. डीड राइटर्स से ले कर वकील, चपरासी, क्लर्क और सबरजिस्ट्रार को खर्चापानी.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...