“राधे ने शहर से दूर एक चाल में कमरा लिया और दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे थे. वह दूध का काम करने के साथ एक हलवाई की दुकान में भी काम करने लगा था. वे लोग 3-4 महीने भी नहीं रह पाए थे कि स्वामीजी के आदमी उन लोगों का पता लगा कर आए और उन लोगों को अपने साथ ले गए. वह अपने कमरे में आ कर खुश हो गई थी लेकिन राधे को यहां आना अच्छा नहीं लगा था. उस ने सख्त ताकीद कर दी थी कि तुम स्वामीजी से दूरी बना कर रहना.
“मंदिर के पीछे कई सारे कमरे बने हुए थे जो प्रंबंध कमेटी ने पुजारियों के परिवारों के रहने के लिए बनाए हुए थे. उस के सिवा भी 8-10 कमरे थे जो यात्रियों के लिए बनाए गए थे लेकिन उन सब कमरों में अब स्वामीजी के चहेते रहते थे. गुरु जी की पत्नी भी वहीं पर रहती थीं. उन के कमरे में एसी लगा था, बड़ा टीवी और सारी सुखसुविधाएं थीं.
यह आश्रम बूआ के घर के पास ही था, इसलिए वह वहां पर उसे देख चौंकी थी. लेकिन उस ने इशारे से चुप रहने को कह दिया था.
“राधे, तुम्हारी बहू तो कमरे में ही घुसी रहती है, बाहर आ कर दर्शन तो कर लिया करे.”
जब वह सजधज कर आश्रम में पहुंची, तो स्वामीजी वहीं बाहर ही बैठे हुए थे. ‘आनंदी बहू, यहां पर तुम्हें कोई परेशानी या कुछ जरूरत हो, तो बता देना. राधे तो एकदम लापरवाह है और गैरजिम्मेदार लड़का है.’
“वे स्वयं उठ कर मंदिर में चढे हुए ढेर सारे फल और मिठाई उस की झोली में डाल कर बोले, ‘सब बच्चों को ही मत खिलाना, खुद भी खाना. कितनी कमजोर लग रही हो. मैं राधे से कहूंगा कि मेहरी का बड़ा सुख लेकिन खर्ची का बड़ा दुख.’ उन के चेहरे पर अनोखा तेज देख उस का मन उन के प्रति श्रद्धा से भर उठा था. वह उन के चमकते चेहरे और आकर्षक व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हो गई थी.