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उन्होंने गौर से देखा, फिर बोलीं, “इस की फोटो तुम्हारे फोन में कैसे?”

जब उस ने मेले की बात बताई तो वे अपने अतीत में खो गईं और बताने लगीं,

“यह आनंदी है. मां ने बताया था, वह किसी स्वामी जी के साथ रहने लगी है.”

“ओह, अब याद आ गया, इस को आप के घर में ही देखा था.”

“हां, तुम सही कह रही हो. जिन दिनों तुम इन का संदेशा ले कर आया करती थीं, यह मेरे घर पर ही रहा करती थी. लेकिन मेरे यहां इस का मन नहीं लगा था और 6 महीने में ही मेरी बूआ के यहां इलाहाबाद लौट गई थी.

“इस की सुंदरता ही इस के लिए अभिशाप बन गई. बदमाशों से बचाने के लिए बूआ ने इसे मेरे घर भेज दिया था. इस के काम करने के ढंग से हम सब बहुत खुश थे. यह बहुत सुंदर और सलीकेदार थी. इस के 2 नन्हें मासूम बाहर बरामदे में बैठ कर सब को टुकुरटुकुर देखते रहते और उन्हें जो दे दिया जाता, चुपचाप खा लेते. यह खाना बहुत अच्छा बनाती, रोटी बहुत मुलायम बनाती और बड़े प्यार से सब को खिलाया करती थी.

“एक दिन मां से रोरो कर अपने ऊपर हुए अत्याचार की सारी कहानी सुना रही थी. जब वह 12 साल की थी तभी मातापिता ने 40 वर्षीय उम्रदराज दिलीप के पल्ले उसे बांध दिया. वह मासूम कली की तरह थी, जो पूरी तरह से अभी खिल भी नहीं पाई थी. दिलीप नशे डूबा हुआ आया और पहली रात ही नोचखसोट कर उसे लहूलुहान कर दिया था. अब तो वह उस की शक्ल देख कर ही कांप उठती. लेकिन अपना वह दर्द किस से कहती?

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