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मुंबई के एलटीटी रेलवे स्टेशन पर मैं अपनी बेटी के साथ प्लेटफार्म पर ट्रेन की प्रतीक्षा कर रही थी. अपनी आदत के मुताबिक आसपास बैठे यात्रियों का मुआयना भी करती जा रही थी. अचानक मेरी नजर एक व्यक्ति पर पड़ी. उस की उम्र तकरीबन 45 वर्ष लग रही थी. कपड़ों से किसी अच्छे घर का जान पड़ता था. सामान के नाम पर एक छोटा सा बैग था, जिसे उस ने सीने से चिपका रखा था. बालदाढ़ी बेतरतीब तरीके से बढ़े हुए थे. वह चारों तरफ ऐसे देख रहा था मानो कोई उस के पीछे लगा हुआ हो और वह छुप रहा हो. चेहरे पर पसीने के साथसाथ डर और घबराहट भी स्पष्ट दिख रहे थे. मुझे उस का चेहरा कुछ जानापहचाना सा लग रहा था, मगर ठीक से याद नहीं आ रहा था. उस ने एक छड़ी भी कुरसी से टिका कर रखी थी. मैं ने उस के पैर देखे, मगर पैर तो सहीसलामत हैं और छड़ी ले कर चलने की यह कोई उम्र भी नहीं थी उस की.

तभी ट्रेन के आने की अनाउंसमेंट होने लगी और चारों तरफ अफरातफरी मच गई. मेरा भी ध्यान उस व्यक्ति की तरफ से हट गया. अगले ही पल ट्रेन आ गई और मैं भी अपनी बेटी के साथ अपनी सीट पर जा बैठी.

स्लीपर क्लास डब्बा था, इसलिए मैं ने बैठते ही खिड़की खोल दी. वैसे भी शाम होने वाली थी. तभी मेरी नजर खिड़की के बाहर गई. वह व्यक्ति उस छड़ी के सहारे मुश्किल से चल पा रहा था. मुझ से रहा नहीं गया और मैं नीचे उतर गई.

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