‘‘ओफ्फो, कितना काम है, सुबह बाढ़ पीड़ितों के लिए चंदा और कपड़ा इकट्ठा करना है. दोपहर में ‘राजदूत’ में भोजन तो शाम को राजभवन में चाय, सांस तक लेने की फुरसत नहीं है,’’ महिला ग्रुप की अध्यक्षा नीरादेवी अपने चेहरे पर परेशानी के भाव लाते हुए सदस्याओं से बोलीं.
‘‘नीराजी, आप वास्तव में समाज के लिए कितना करती हैं,’’ एक सदस्या ने उन की प्रशंसा करते हुए कहा.
‘‘आप सचमुच बड़ी कर्मठ हैं. सुना है आप को उच्च रक्तचाप भी है, फिर भी आप इतनी मेहनत करती हैं,’’ दूसरी ने पहली से बाजी मारते हुए कहा.
‘‘भई, ऐसे समाजसेवियों के कारण ही तो हमारा समाज रसातल में जाने से बचा है, नहीं तो देश की आज जो स्थिति है वह क्या किसी से छिपी है?’’ तीसरी ने तो जोरदार प्रमाणपत्र ही दे डाला.
नीरा ग्रुप की सदस्यों से इतनी प्रशंसा पा कर फूल कर कुप्पा हो गई. वह बड़ी अदा से अपनी गवींली मुसकान छिपाने का प्रयत्न करती हुई ऐसा अभिनय करने लगीमानो वह इन सब बातों से बेजार हो रही हों. वह बोलीं, ‘‘आप सब इस तरह अपने विचार प्रदर्शित कर ठीक नहीं कर रही हों. मैं यह सब कार्य प्रशंसा के लिए नहीं वरन सैटिस्फैक्शन के लिए करती हूं. यदि देश और समाज के लिए हम अपना इतना सा भी योगदान न दे पाएं तो लानत है हमारे जीवन को.’’ फिर उन्होंने प्रसंग को नया मोड़ देते हुए कहा, ‘‘खैर, अब हम लोग ग्रुप के उद्देश्यों पर ध्यान दें. कल का हमारा कार्यक्रम देहरी ग्राम जाने का है. वहां हमें 8 साल से कम उम्र के बच्चों को नहलानाधुलाना और वहां के लोगों को सफाई का महत्त्व समझाना है. हमें सुबह 9 बजे तक वहां पहुंच जाना है. नीरा यादव के पिता ने एमएलए का चुनाव कई बार लड़ा था और लीडरी उस के खून में आ गई थी. हालांकि पार्टियां बदलने के कारण वह कभी जीत नहीं पाए पर उन की तमन्ना थी कि नीरा कम से कम नगरपालिका पार्षद का चुनाव तो लड़ ले और अकसर उसे उकसाते रहते थे.