आज लखनऊ आते हुए स्वरा को अपनी मम्मी की बहुत याद आ रही थी. बचपन और जिंदगी के 27 साल यहीं लखनऊ में बीते थे. तब वह एक साधारण परिवार की बेटी थी. मम्मी उसे हमेशा कहतीं,”बेटी, पढ़लिख कर एक दिन बड़ी औफिसर बनना.”
तब यह बात स्वरा के समझ में नहीं आती थी. अब जब वह एक आईएएस अधिकारी बन गई थी और खासकर उसी शहर में पोस्टिंग पर तो उस के कानों में मम्मी के कहे शब्द और उन की शुभकामनाएं दोनों ही गूंज रहे थे. आज मम्मी जिंदा होतीं तो उसे इस पद पर देख कर कितना खुश होतीं. यह सब सोचतेसोचते स्वरा की आंखें गीली हो गईं. उस ने पर्स से रूमाल निकाला और चुपके से आंसू पोंछने लगी ताकि ड्राइवर की नजर उस पर न पड़े. कुछ ही देर में वह सरकारी बंगले में पहुंच गई. वहां कुछ देर आराम कर स्वरा फिर अपने काम में व्यस्त हो गई।
आज उसे कार्यालय में सब से मिलना था और उन्हें आगे के लिए निर्देश भी देने थे ताकि कल से कार्यालय को वह अपने हिसाब से चला सके. उसे औफिस से घर आने में काफी रात हो गई थी. उस ने जल्दी से खाना खाया और फिर बिस्तर पर पसर गई. आज उस की आंखों में नींद नहीं थी. रहरह कर बचपन की छोटीछोटी बातें उस की स्मृति में घूम रही थीं. आते हुए रास्ते में जो भी परिचित जगह दिखाई देती वह उस में अपना बचपन तलाशने लगती. मम्मी को याद कर के वह फिर से भावुक हो गई थी. उसे इस जगह तक पहुंचाने में मम्मी का बहुत बड़ा योगदान था.
एक वे ही तो थीं जिन्होंने उसे कभी बोझ नहीं समझा. 2 बेटों के बाद वह पैदा हुई थी. तीनों भाईबहन पढ़नेलिखने में बहुत होशियार थे. घर पर दादी का सारा ध्यान उन्हीं पर लगा रहता. वह भी अपने भाईयों की देखादेखी पढ़ने लग जाती. बचपन से ही वह पढ़ाई में बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रही थी।
घर पर काम करने के लिए मन्नू कामवाली आती थी. वह अपने साथ छोटी बेटी रोजी को भी ले आती. वह स्वरा की ही हमउम्र थी. वह भी अपने छोटेछोटे हाथों से मां के साथ काम करती. उस का काम में हाथ बंटाना मन्नू को बड़ा अच्छा लगता.
लेखिका- डा. के रानी