मम्मी कहतीं, "मन्नू, रोजी को पढ़ने के लिए स्कूल भेजा कर. झाड़ूपोंछे में क्यों इस की जिंदगी बरबाद कर रही है?"
"काम नहीं करेंगे तो खाएंगे क्या? हम तो रोज कुआं खोद कर पानी पीने वाले लोग हैं। हमारे घर जब कोई बच्चा पैदा होता है तो हमें खुशी इस बात की होती है कि काम करने के लिए 2 हाथ और मिल जाएंगे."
"तेरी सोच अपनी जगह ठीक है, मन्नू लेकिन अब समय बदल गया है. सरकारी स्कूलों में अब काफी सुविधाएं हो गई हैं. अपनी बेटी को स्कूल में पढ़ालिखा."
"हम उसे स्कूल भेजेंगे तो उस की दादी बहुत नाराज होंगी. वे कहती हैं कि इसे अपने साथ काम पर ले जा और इसे अभी से काम सिखा. 2 घर और बढ़ेंगे तो 4 पैसे घर में ही आएंगे."
"काम के लिए तू शाम को भी उसे अपने साथ ला सकती है. दिनभर इस तरह छोटी सी बच्ची को ले कर इधरउधर क्यों डोलतीफिरती है."
मम्मी की बात सुन कर मन्नू चुप हो गई थी. कुछ दिनों के लिए रोजी का घर पर आना थोड़ा कम हो गया. उसे भी मम्मी के उपदेश अच्छे नहीं लगते थे. समय के साथ रोजी बड़ी हो रही थी. गरीब के बच्चे वक्त से पहले ही बड़े दिखाई देने लगते हैं. रोजी अपना पहनावा ऐसा रखती कि 13 साल की उम्र में ही 16-17 साल की लगने लगी. स्वरा उस से बहुत कम बात करती. सच पूछो तो उसे पढ़ाई के कारण किसी से बात करने की फुरसत भी न लगती.
शाम के समय स्वरा को गणित पढ़ाने उन के ट्यूटर मनीष घर पर आ जाते. स्वरा की मम्मी उस समय घर पर ही रहतीं. वे पढ़ाई के साथसाथ मनीष पर भी नजर रखतीं. जवान होती स्वरा को मनीष सर बहुत अच्छे लगने लगे थे। कभीकभी पढ़ाते हुए वे उसे छू लेते तो स्वरा रोमांचित हो जाती. यह बात मनीष अच्छे से महसूस करते और वक्तबेवक्त उस की भावनाओं को उकसा भी देते.