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‘तुम्हारा ट्रिप कैसा रहा?’

‘बहुत अच्छा,’ अभी मैं आगे बताने ही जा रही थी कि पुण्पा ने पूछा, ‘तुम ने मेरे हस्बैंड कीह अलमारी तो नहीं खोली थी?’

‘क्याऽऽ...’ मैं इस अप्रत्याशित प्रश्न पर यकीन नहीं कर पा रही थी.

‘मेरे हस्बैंड की कोई एक चीज भी छू ले तो इन्हें तुरंत पता चल जाता है. जानती हो, हमारे यहां भारत में 200 गमले हैं. यदि कोई एक फूल भी तोड़ ले तो इन्हें तुरंत पता चल जाता है,’’ पुष्पा बोलती ही जा रही थी. मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था. मैं कुछ क्षण के लिए अवाक ही खड़ी रह गई.

‘मगर मैं तुम्हारे हस्बैंड की अलमारी क्यों छूने लगी. मैं तो तुम्हारे साथ ही थी,’ किसी तरह मेरे मुंह से आवाज निकली.

‘यों ही पूछा, मेरे हस्बैंड कह रहे थे कि लगता है किसी ने मेरी अलमारी को हाथ लगाया है. उन्हें गलतफहमी हुई होगी.’

‘हो सकता है, मुझे नहीं मालूम.’  मैं ने यह कह तो दिया, मगर उस के बाद पुण्पा की दी हुई चाय जैसे कुनेन घोल कर बनाई हुई लगी.

‘तुम जानती हो, किसी ने मेरे घर की तलाशी ली है.’

‘थैंक गौड, मैं तो चली गर्ई थी,’ मैं ने राहत की सांस लेते हुए कहा. मगर मुझे माहौल में घुटन सी महसूस होने लगी.

‘पता नहीं. लोग दोस्त बन कर पीठ में खंजर भूंकते हैं,’ पुण्पा बोलती जा रही थी. मुझे लगा यह पुण्पा का असली चेहरा था या ट्रिप पर जाने से पहले वाली पुण्पा असली थी.

‘मुझे तो लोग चोर समझते हैं, मैं तो चोर हूं. बाप रे बाप.’ पुण्पा पर जैसे दौरा सा पड़ गया था. मैं घबरा गई. उस के पति दूसरे कमरे थे. समझ में नहीं आ रहा था कि उन्हें बुलाऊं या नहीं. सुन तो वे भी रहे होंगे. मैं चुपचाप पत्थर बनी बैठी रही. उस के पति का एटिट्यूट भी मुझे कुछ अजीब सा ही लगा.

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