कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

‘जी कहिए, बुरा मानने की क्या बात है. अब हम रिश्तेदार होने जा रहे हैं तो संकोच कैसा?’ पापा ने मुसकराते हुए कहा.

‘अब ये त्रिपाठीजी (प्रेरित के पापा) तो रिटायर हो गए हैं और आप के रिटायरमैंट में अभी वक्त है तो आफ्टर रिटायरमैंट आप लोगों ने क्या सोचा है?’

‘जी, मैं कुछ समझ नहीं?’ पापा ने कुछ चौंकते हुए से कहा.

‘मेरा मतलब है कि अब हमारे तो 2 बेटे हैं इसलिए हमें तो कोई चिंता नहीं है बुढ़ापे की, कभी इस के पास और कभी उस के पास रहेंगे. बस, इसी में जीवन कट जाएगा पर आप की तो एक ही बेटी है, सो रिटायरमैंट के बाद वृद्धावस्था में आप लोगों ने कहां रहने का प्लान बनाया है. यहीं इंदौर में या बेटी के पास?’ प्रेरित की मम्मी के इस प्रश्न को सुन कर मम्मीपापा ही नहीं, मैं और प्रेरित भी बुरी तरह चौंक गए थे. कुछ देर बाद मुझे समझ आया कि प्रेरित के मम्मीपापा घुमाफिरा कर जानना चाह रहे थे कि विवाह के बाद मेरे मम्मीपापा की जिम्मेदारी कहीं उन के लाड़ले बेटे को न उठानी पड़ जाए. अपनी मम्मी के इस बेतुके प्रश्न पर प्रेरित का चुप रह जाना मुझे अखर गया और उन के इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए जैसे ही मैं ने अपना मुंह खोलना चाहा था कि मेरी मां ने आंख के इशारे से मुझे रोक दिया था.

‘मां खुद बड़े ही शांतभाव से बोलीं, ‘जी देखिए, पहले तो अभी तो हम ने इस बारे में कुछ सोचा ही नहीं है, पर हां, उम्मीद करता हूं कि जीवन के अंतिम दिनों तक हम इतना फिट रहें कि हमें किसी का मुंह न देखना पड़े. फिर आज के जमाने में नौकरीपेशा लोगों के लिए बेटा और बेटी में फर्क ही कहां रह गया है क्योंकि दोनों ही तो अपनी नौकरी पर चले जाते हैं. न आप का बेटा आप के पास रहेगा और न हमारी बेटी. हां, जरूरत पड़ने पर मेरी बेटी ही मेरा सबकुछ है और इसे हम ने पढ़ायालिखाया भी जीभर के है. तो, देखना तो इसे ही पड़ेगा. वैसे, आप निश्ंिचत रहें, हम दोनों ही इंदौरप्रेमी हैं और यहां से कहीं जाने वाले नहीं.’

मम्मी के इतने नपेतुले और संतुलित शब्दों में दिए गए उत्तर से मैं तो प्रभावित ही हो गई थी पर अकेले में प्रेरित से मिलते ही फट पड़ी थी, ‘‘यह सब क्या है, प्रेरित? आज के समय में जब जीवन के हर क्षेत्र में महिलाएं नितनई बुलंदियों के झंडे गाड़ रही हैं, मातापिता अपनी बेटियों को पढ़ानेलिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे तो ऐसे में इस तरह की बातें, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहीं. मुझे नहीं पता था कि तुम्हारे पेरैंट्स इस प्रकार की सोच रखते हैं. जरूरत पड़ने पर मैं अपने मांपापा का सहारा नहीं बनूंगी तो कौन बनेगा. मैं पहले ही स्पष्ट किए देती हूं कि जिस तरह तुम्हारे मातापिता के लिए तुम ठीक हो वैसे ही अपने मातापिता के लिए मैं हूं, उन के लिए कुछ भी करने के लिए न मैं तुम्हें रोकूंगी और न ही मेरे मातापिता के लिए तुम मुझे रोकोगे और भविष्य में अपनेअपने मातापिता को हम खुद ही डील करेंगे. हां, जहां आवश्यकता होगी, हम एकदूसरे की मदद करेंगे.’

‘मुझे खुद इस बारे में कुछ पता नहीं था कि वे लोग कुछ दकियानूसी सोच वाले हैं. तुम जरा भी चिंता मत करो, बाद में सब ठीक हो जाएगा.’ यह कह कर प्रेरित ने मुझे उस समय बहला दिया था और इस के कुछ दिनों बाद ही मैं प्रेरित की दुलहन बन कर कानपुर आ गई थी. थोड़े से प्रयास से प्रेरित ने हम दोनों की पोस्ंिटग भी कानपुर ही करवा ली थी.

मेरे आने के बाद मांपापा अकेले हो गए थे लेकिन सब से अच्छी बात यह थी कि अपने जौब के अलावा दोनों ने ही गीतसंगीत, बागबानी और कुकिंग जैसे अनेक शौक पाल रखे थे, सो, दोनों ही बहुत व्यस्त रहते थे. इस के अलावा दोनों ही मौर्निंग वाक और व्यायाम को अपनी दिनचर्या में शामिल किए हुए थे. सो, फिजिकली भी वे बेहद फिट थे.

वहीं, प्रेरित के परिवार में इस सब से कोई लेनादेना नहीं था. सब देर तक सोते. यही नहीं, सभी कनपुरिया अंदाज में खाने के भी बहुत शौकीन थे और इसी सब का नतीजा था कि मम्मीजी और पापाजी दोनों ही बीपी, शुगर और ओबेसिटी के शिकार थे और आएदिन डाक्टर के यहां चक्कर लगाते थे. मैं अभी इस सब में ही उलझ थी कि बाथरूम के दरवाजे पर प्रेरित की आवाज आई, ‘‘तुम कर क्या रही हो, सुशीला दीदी पूरा काम कर के चली गईं, मैं औफिस के लिए रेडी हो गया और तुम हो कि नहाने में ही लगी हो. औफिस चलना है या नहीं?’’

‘‘अरे, समय का पता ही नहीं चला. बस, दो मिनट में आई,’’ कह कर मैं ने अपने नहाने व विचारों को बाइंडअप किया और बाहर आ कर फटाफट दोनों का टिफिन तैयार कर के नाश्ता टेबल पर लगा दिया और तैयार हो कर औफिस के लिए निकल पड़े. अभी मैं कार में बैठी ही थी कि मां का फोन आ गया. हम दोनों मां से बात कर सकें, इस के लिए मैं ने फोन स्पीकर पर डाल दिया.

‘‘कैसे हो बच्चो, तुम लोगों को एक गुड न्यूज देनी थी,’’ मां बोलीं.

‘‘हम लोग बिलकुल अच्छे हैं, मां. बस, अभी औफिस के लिए निकले ही हैं. कौन सी गुड न्यूज है, मां, जल्दी बताइए. आप पहले न्यूज बताया कीजिए, फिर और बातें किया कीजिए,’’ मैं ने आतुरता से मां से कहा.

‘‘अगले हफ्ते तेरे पापा का सीनियर सिटीजन क्लब की तरफ से सिक्किम में एक सैमिनार है. सो, हम दोनों ही जा रहे हैं. सैमिनार के बाद एक हफ्ते और रुक कर घूमेंगे, फिर वापस आएंगे. कल ही पता चला तो आज तुम्हें बता दिया.’’

‘‘वाऊ मां, यह तो सच में बहुत अच्छी न्यूज है. जाइएजाइए, खूब घूमिएगा और रोज मुझे पिक्स भेजिएगा. ठीक है, मां. अभी फोन रखती हूं. शाम को घर पहुंच कर बात करूंगी,’’ यह कह कर मैं ने फोन रख दिया. इस बीच प्रेरित बिलकुल शांत थे मानो मेरे मातापिता की अपने मातापिता से तुलना कर रहे हों.

मैं प्रेरित से कुछ बोल पाती, इस से पहले ही कार पार्किंग में लग चुकी थी. मैं और प्रेरित दोनों ही एकदूसरे को बाय कह कर अपनीअपनी केबिन की तरफ बढ़ गए थे. औफिस के कामों में जो हम उलझे तो शाम को 7 बजे ही मिले. वापस आते समय शरीर और मन इतना अधिक थक जाता है कि हम दोनों आमतौर पर शांत ही रहते हैं. घर आ कर डिनर कर के जो बैड पर लेटी तो कुछ अधूरे पन्ने फिर फड़फड़ाने लगे थे.

‘पूर्णशिक्षित होने के बाद भी प्रेरित के मम्मीपापा, बेटाबेटी के फर्क से जरा भी अछूते नहीं थे. बेटे के विवाह में खासे दानदहेज की भी उम्मीद थी उन्हें लेकिन प्रेरित की पसंद ने उन के अरमानों पर पानी फेर दिया था क्योंकि मैं और मम्मी दोनों ही दहेज की सख्त विरोधी थीं और मम्मी ने शुरू में ही स्पष्ट शब्दों में कह दिया था-

‘देखिए बहनजी, हम अपनी बेटी के विवाह में न तो दहेज देंगे और न ही हम उस का कन्यादान करेंगे.’

‘अरेअरे, यह क्या कह रहीं हैं आप, ऐसे विवाह में दहेज की तो हम भी उम्मीद नहीं करते लेकिन कन्यादान तो एक जरूरी रस्म है जिसे हर लड़की के मातापिता करते हैं ताकि उन्हें पुण्य प्राप्त हो सके. क्या आप उस पुण्य को प्राप्त नहीं करना चाहेंगे?’ प्रेरित के मम्मीपापा ने कहा.

‘मेरी बेटी कोई दान की वस्तु नहीं है जो मैं कन्यादान की रस्म करूं. मेरी बेटी हमारे घर की शान, हमारा अभिमान और गरूर है. हमारी बेटी ने हमें मातापिता होने का गौरव प्रदान किया है. कोई अपने गरूर और गौरव का दान करता है भला. कन्यादान की जगह हम प्रेरित और प्रेरणा को एकदूसरे का हाथ सौंप कर पाणिग्रहण संस्कार करेंगे क्योंकि विवाह के बाद जीवन के समस्त उत्तरदायित्वों का निर्वहन इन्हें एकसाथ मिल कर करना है.’

मेरी मम्मी की इतनी तर्कपूर्ण बातें सुन कर प्रेरित के मम्मीपापा शांत हो गए थे और यही कारण था जिस से वे हमारे विवाह को राजी तो हो गए थे पर उतने खुश नहीं थे क्योंकि विवाह के बाद जब प्रेरित की ताईजी ने प्रेरित की मम्मी से पूछा, ‘बहू तो बढि़या है पर दानदहेज में क्याक्या मिला, वह भी दिखाओ या उसे सात परदों में रखने का विचार है.’

‘अरे जिज्जी, कैसी बातें करती हो. जो मिला, सो आप के सामने है. आप की जानकारी के लिए बता दें कि बहुरिया और उस के मम्मीपापा दानदहेज के सख्त विरोधी हैं,’ प्रेरित की मम्मी ने मेरी तरफ इशारा कर के निराशाभरे स्वर में कहा था.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...