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‘हम ने तो सुना है कि बहू इकलौती है, कोई भाई नहीं है इस के तो बबलू (प्रेरित का घर का नाम) तुम्हें देखे कि आपन सासससुर को...’’ ताईजी कुछ कम नहीं थीं, सो, मम्मीजी की दुखती रग पर हाथ रख दिया था.

‘जिज्जी देखो, हमार तो दुई बिटवा हैं. बुढ़ापा तो बहुत आराम से कटे. चिंता तो वे करें जिन के बिटवा नहीं है. हमें किसी और के सहारे की का जरूरत. अब इस ब्याह में तो अरमान पूरे न हुए, बिट्टू के ब्याह में देखना अपने सारे अरमान पूरे करूंगी,’’ मम्मीजी ने लगभग मुझे सुनाते हुए कहा था.

विवाह के बाद हम दोनों हनीमून के लिए साउथ घूमने गए. मुन्नार, कन्याकुमारी, मदुरई जैसी प्राकृतिक छटाओं से भरपूर केरल को घूम कर हम दोनों ने दोनों माताओं के लिए कांजीवरम साडि़यां खरीदीं. जब मम्मीजी को साड़ी दी तो वे बड़ी खुश हुईं पर साथ ही यह बोलीं, ‘अपनी मम्मी के लिए नहीं लाईं? वैसे हमारे कानपुर में तो बेटियों से कुछ लिया नहीं जाता.’

‘जी, मम्मीजी, लाई हूं न, बिलकुल आप के जैसी, आप की ही तरह. वे भी मेरी प्यारी मां हैं न.’

मन के अंदर उठते तूफानी गुबार को किसी तरह शांत करते हुए मैं ने कहा था. इस के बाद हम दोनों ने अपने बैंक को जौइन कर लिया और जिंदगी बुलेट ट्रेन की स्पीड से दौड़ने लगी थी. दो वर्षों बाद मैं ने हमारे प्यार की निशानी आरुषी को जन्म दिया. एक बार फिर हमारी जिंदगी खुशियों से गुलजार हो उठी थी. पापामम्मी ढेर सारे साजोसामान के साथ अपनी नातिन से मिलने आए थे. इस के 4 वर्षों बाद घर का घटनाक्रम बहुत तेजी से बदला. हमारा प्रमोशन हुआ तो कानपुर से दिल्ली ट्रांसफर हो गया. प्रेरित के भाई प्रेरक का मैडिकल पूरा हो गया और उन की पोस्ंिटग लखनऊ के के जी मैडिकल कालेज में हो गई. मम्मीपापाजी अपने डाक्टर बेटे के लिए लड़की खोजने में लग गए. मेरी शादी में अधूरे रह गए अपने सभी अरमानों को मानो अब वे पूरा कर लेना चाहते थे. इस बीच जितने भी रिश्ते आए उन में जो मम्मीजी, पापाजी की कसौटियों पर खरे उतरे उन्हें शौर्ट लिस्ट कर के रख लिया गया था ताकि भैया जब छुट्टी में आएं तो उन का रिश्ता पक्का किया जा सके. जब भैया इस बार दीवाली पर आए तो पापाजी ने खुश होते हुए कुछ लड़कियों के फोटो उन के सामने रखते हुए कहा, ‘बेटा, अब तेरा ब्याह करना बचा है. बहुत सारे रिश्ते आए थे. उन में से जो हमें अच्छे लगे उन की फोटो रख कर शेष वापस कर दी हैं. अब इन में से तुम जिसे बताओ उसे ही फाइनल कर देते हैं.’

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