‘‘आप ही बताइए मैं क्या करूं, अपनी नौकरी छोड़ कर तो आप के पास आ नहीं सकता और इतनी दूर से आप की हर दिन की नईनई समस्याएं सुलझ भी नहीं सकता,’’ फोन पर अपनी मां से बात करतेकरते प्रेरित लगभग झंझला से पड़े थे.
जब से हम लोग दिल्ली से मुंबई आए हैं, लगभग हर दूसरेतीसरे दिन प्रेरित की अपने मम्मीपापा से इस तरह की हौटटौक हो ही जाती है. चूंकि प्रेरित को अपने मम्मीपापा को खुद ही डील करना होता है, इसलिए मैं बिना किसी प्रतिक्रिया के बस शांति से सुनती हूं.
अब तक गैस पर चढ़ी चाय उबल कर पैन से बाहर आने को आतुर थी, सो, मैं ने गैस बंद की और 2 कपों में चाय डाल कर टोस्ट के साथ एक ट्रे में ले कर बालकनी में आ बैठी. कुछ ही देर में अपना मुंह लटकाए प्रेरित मेरी बगल की कुरसी पर आ कर बैठ गए और उखड़े मूड से पेपर पढ़ने लगे.
‘‘अब क्या हुआ, क्यों सुबहसुबह अपना मूड खराब कर के बैठ गए हो? मौर्निंग वाक करने का कोई फायदा नहीं अगर आप सुबहसुबह ही अपना मूड खराब कर लो,’’ मैं ने प्रेरित को कुछ शांत करने के उद्देश्य से कहा.
‘‘पापा कल पार्क में गिर पड़े, मां को गठिया का दर्द फिर से परेशान कर रहा है. अभी 15 दिन पहले ही तो लौटा हूं कानपुर से, डाक्टर से पूरा चैकअप करवा कर और जहां तक हो सकता था, सब इंतजाम कर के आया था. जैसेजैसे उम्र बढ़ेगी, नितनई समस्याएं तो सिर उठाएंगी ही न. यहां आने को वे तैयार नहीं. बिट्टू के पास जाएंगे नहीं तो क्या किया जाए? नौकरी करूं या हर दिन इन की समस्याएं सुलझता रहूं? इस समस्या का कोई सौल्यूशन भी तो दूरदूर तक नजर नहीं आता,’’ प्रेरित कुछ झंझलाते हुए बोले.