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उस ने एक बार फिर घड़ी देखी. बस, 2 ही घंटे बचे हैं. पहुंचते ही उस के कान पकड़ूंगी, ‘कहीं इस तरह लापरवाही की जाती है. एक तू ही नौकरी करता है.’ जब से उस की नौकरी लगी है, एक भी दिन मेरे पास नहीं बैठा. पूरे दिन नौकरी, घर आता है, तो लैपटाप और मोबाइल फोन. न खाने का ध्यान, न सोने का. यह भी कोई जिंदगी है. मुझे तो लगा था, एमबीए हो गया, पढ़ाई खत्म हो गई. पर राम जाने यह कितनी परीक्षाएं देता रहता है. और कंपनी वाले भी कैसे हैं. कहीं बाहर का कोई काम होगा, तो उसे ही भेजते हैं. अभी जल्दी ही 2 बार मुंबई भेजा. शायद उन्हें पता है कि अश्वित अकेला है. शादी नहीं हुई है. इसलिए उसे ही भेजते हैं. कहीं ऐसा होता है.

अब तो इसे खूंटे से बांधना ही पड़ेगा. लोग कहते होंगे कि मांबाप नहीं हैं, इसलिए छुट्टा सांड़ की तरह घूम रहा है. आखिर कौन ध्यान दे? पर जब भी उस से शादी की बात करो, वह सिर झटक देता है. रमाजी कई बार अपनी बेटी के लिए कह चुकी हैं. लड़की डाक्टर है. अच्छा घर है. फिर क्या दिक्कत है. पर ये महादेव माने तब न. 28 साल के हो गए हैं, पर अक्ल नहीं है. कभी घर का भी खयाल नहीं रहता. यह भी पता नहीं है कि रात को कितने ताले लगाने पड़ते हैं. इतना बड़ा घर और वह अकेला. रात में चार आदमी घुस आएं तो क्या कर लेगा? मैं भी बेकार उतावली हो कर के चली आई. उस की तो जिद करने की आदत है.

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