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‘‘नहीं, न ही सासससुर यहां हैं. ससुर हैं. वे अपने दूसरे बेटे के पास रहते हैं. उन का नंबर हमें मालूम नहीं है.’’

‘‘और क्या जानती हो मैडम के बारे में?’’

‘‘यही कि अखबार में काम करती थीं. साहब दुबई में काम करते हैं, महीने 2 महीने में आते थे... कभी मैडम भी चली जाती थीं. बड़े अच्छे...’’

‘‘प्रेमलता के बारे में जो भी जानती हो विस्तार से बताओ?’’

दया के चेहरे पर क्रोध और घृणा के भाव उभरे. बोली, ‘‘बस इतना ही जानते हैं

कि वे मैडम की बचपन की सहेली थीं. बावरी सी हो जाती थीं मैडम इन्हें देखते ही. जिस छुट्टी के रोज प्रेमलता अचानक दिन में आ जाती थीं, तब चाहे कितना भी काम पड़ा हो उन के आते ही मैडम हमें अपने कमरे में जाने को कह देती थीं यह कह कर कि जब तक न पुकारें आना मत.’’

‘‘प्रेमलता अकसर आती थीं?’’

‘‘हां, रात को भी यहीं रुकती थीं. मैडम भी जाती थीं उन के घर. औफिस से फोन कर के कह देती थीं कि आज प्रेम के घर जा रही हूं. सुबह आऊंगी. दोनों ही नौकरी करती थीं. सो दिन में तो फुरसत होती नहीं थी.’’

‘‘साहब की दोस्ती भी थी प्रेमलता से?’’

‘‘पता नहीं. उन के आने पर तो जब कोई दावत होती थी तभी आती थीं वह और दावत में तो साहब सब से ही हंस कर बात करते हैं.’’

‘‘साहब और मैडम में कभी झगड़ा हुआ प्रेमलता का नाम ले कर?’’

‘‘हमारे साहब व मैडम में कभी झगड़ा नहीं होता था साहब.’’

‘‘माफ करिएगा इंस्पैक्टर, आशा मैडम और दिलीप सर जैसे संभ्रांत दंपती नौकरों के सामने नहीं झगड़ते,’’ स्नेहा बोली, ‘‘और फिर उन के झगड़े का प्रेमलता की हत्या करने से क्या संबंध?’’

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