कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

‘‘वैसे तो बाग और घर दोनों ही ठीक हैं, फिर भी अपने सामने धनीराम से पौधों की कटाईछंटाई करवा दूंगी. कारपेट और सोफे वगैरा भी वैक्यूम क्लीनर से साफ करवा देती हूं, पार्टी...’’

दया और नहीं सुन सकी और भागी हुई बगीचे में पानी देते अपने पति धनीराम के पास पहुंच कर बोली, ‘‘आज रविवार वाला धारावाहिक और फिल्म दोनों गए. मैडम के बाग की कटाईछंटाई, फिर वैक्यूम से घर की सफाई और फिर पार्टी का प्रोग्राम है...’’

‘‘तुझे कैसे पता? मैडम तो अभी बाहर आई ही नहीं,’’ धनीराम बोला.

‘‘फोन पर किसी को आज का प्रोग्राम बता रही थीं. तुम कमरे में जा कर जल्दी से नाश्ता कर आओ. एक बार मैडम ने काम शुरू करवा दिया तो पूरा होने के बाद ही सांस लेंगी और लेने देंगी.’’

तभी बंगले के सामने एक गाड़ी आ कर रुकी.

‘‘ले मिल गई पूरे दिन की छुट्टी. मैडम तो अब सब कुछ भूल कर सारा दिन कमरा बंद कर के प्रेमलता मैडम के साथ ही बतियाएंगी,’’ धनीराम चहकते हुए प्रेमलता के लिए गेट खोलने को लपका.

‘‘आशा कहां है?’’ प्रेमलता ने तेजी से अंदर आते हुए पूछा.

‘‘दया गई है बुलाने. आप बरामदे में बैठेंगी या लौन में?’’

प्रेमलता बगैर कुछ बोले तेजी से बरामदे की सीढि़यां चढ़ने लगी और सामने कमरे से निकलती आशा पर नजर पड़ते ही हाथ में पकड़े रिवौल्वर से आशा के सीने में 5-6 गोलियां दाग दीं और फिर उतनी ही तेजी से अपनी गाड़ी की ओर बढ़ते हुए बोली, ‘‘ड्राइवर, पुलिस स्टेशन चलो.’’

‘‘पुलिस यहीं आ रही है मैडम, मैं ने आप के हाथ में रिवौल्वर देखते ही 100 नंबर पर फोन कर दिया है. आप कहीं नहीं जा सकतीं,’’ हाथ में मोबाइल पकड़े दया का कालेज में पढ़ने वाला बेटा यश प्रेमलता का रास्ता रोक कर खड़ा हो गया.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...