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आखिरकार रिश्ते ने दम तोड़ दिया. किसी भी औरत को दूसरी औरत से रिश्ता कभी नहीं सुहाता है. तलाक तक बात पहुंची और हो भी गया. लव मैरिज का यह हश्र कई सारे बीज बो गया. अपनी बेटी को ले कर अनुराधा स्कूल के पास की कालोनी में रहने लगी. बलवंत महल्ले को छोड़ पास ही लगे पुश्तैनी गांव में चले गए और वहीं से अपडाउन प्रारंभ कर दिया. यह सब एक यौवन के शिखर पर पहुंचे पेड़ के कट जाने सा था.

पेड़ कट गया, ठूंठ बचा रह गया. जिंदगी धूप थी, घना साया दोनों के लिए हट गया था. यह सब तब महसूस होता है जब साया वास्तव में हटता है. जब तक दुख का एहसास ही न हो, सुख का कोई मूल्य नहीं जाना जा सकता. इसलिए सुख को ही कई बार दुख मानने की भारी भूल हो जाती है. साए में ही धूप महसूस करने वालों को समय परखता है और एक धोबीपछाड़ में ही नानी याद आ जाती है.

बिखराव के बाद अहं मन को संभालने लगता है और एहसास कराता रहता है सामने वाले की बुराई और समझाता है, अच्छा हुआ जो भी हुआ. रोजरोज की चिकचिक से तो बेहतर है. कोई भी काम करते हैं तो उस की कमियां सामने आती हैं और अहं और पुष्ट हो जाता है. अनुराधा और बलंवत के साथ यही कुछ हो रहा था. लगभग 2 साल साथ गुजारे और 4 वर्ष का कालेज का साथ, कुल मिला कर एक व्यकित के अंदर दूसरे के समा जाने का पूरा समय. अभी ऐसे समय में सिर्फ सामने वाले की कमियां, बुराइयां ही दिखाई देती हैं जैसा कि प्रेम के प्रारंभिक वर्षों में सामने वाले की सिर्फ अच्छाइयां दिखाई देती थीं. साथ रहने से कितनाकुछ बदल गया.

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