छांव हमेशा चुनौती देती है
उस धूप की उष्णता को,
राहत देती है अरमानों को,
लेकिन परतंत्र होती है
किसी वस्तु, व्यक्ति की,
उजाले की.
परतंत्रता पुष्ट करती है
हमारे अहं को,
और अहं परतंत्र कर लेता है
हमारे मन को,
इस के बाद छांव भी धूप ही लगती है.
छांव का अपना साम्राज्य है, तो धूप का भी. किस का कितना बड़ा राजपाट है, यह व्यक्तिव्यक्ति पर निर्भर करता है. यह इसलिए भी क्योंकि कई बार छांव होने पर भी छांव दिखाई नहीं देती, उलटे, उन्हें धूप ही लगती है. इसलिए धूप-छांव व्यक्ति सापेक्ष है.
घर में अभी तक 2 पीढ़ियां रह रही थीं कि परसों ही यह परिवार 3 पीढ़ियों में बदल गया. घर में नए मेहमान का आगमन हुआ. तीसरी पीढ़ी की शुरुआत. ढोलधमाके, बधाई, मिठाई, खुशियां, खीलबताशे, मानमनुहार, उपहार का आदानप्रदान सबकुछ उसी शक्ल में जो इस दौर में होता है. ढोलधमाके के स्थान पर डीजे, खीलबताशे के स्थान पर केक, बधाइयों की जगह फिल्मों के गीत, सैल्फी खींचते ढेरों हाथ, पंडितजी चार मंत्र पढ़ कर कोने में दक्षिणा प्राप्ति के लिए इंतजाररत, घर के बुजुर्ग हो रहे कोलाहल से थोड़ी दूर अपने हमउम्रों की महफिल में, जो जवान हैं पुरुष हैं वे इस इंतजार में हैं कि कब उन की बोतलें खुलें, महिलाएं सदैव की तरह हैरानपरेशान, मेहमानों के बच्चों को तो जैसे मौका ही आज लगा है, बड़े बच्चे आमतौर की तरह मोबाइलों में उलझेसुलझे से, घर की 2 अदद कामवालियां उफनती नदी जैसी और जो नवागत है, सलोना है जिसे पता नहीं है कि वह कहां, किधर, क्यों है. उल्लास का दिन खत्म. चल पड़ी फिर जिंदगी ढर्रे पर.
बलवंत सिंह इस परिवार के मुखिया हैं और इस नगर की एक कालोनी में सपरिवार निवास करते हैं. उन के वयोवृद्ध पिता जगजीवन सिंह साथ रहते हैं. बलवंत के 2 पुत्र और 2 पुत्रियां हैं. पुत्रियां बड़ी हैं और ब्याह कर अपनेअपने घरों इटारसी व गंजबासौदा में रहतीं हैं. दोनों पुत्र नौकरी करते हैं, बड़े वाला विवाहित हो कर क्लर्क है श्रम विभाग में और छोटे वाला अविवाहित है तथा बैंक में मैनेजर है. बलवंत की पत्नी अनुराधा कुछ जल्दबाज किस्म की हैं. उन के ऊपर हमेशा जल्दबाजी सवार रहती है. वे बेहद जहीन और 'परफैक्शनिष्ट' हैं. हर काम में उन्हें पूर्णता चाहिए. इस के विपरीत बलवंत संवेदनशील तो हैं लेकिन हैं बेतरतीब. कहीं भी, कुछ भी चलेगा वाला अंदाज.
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