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कल से नमन क्षितिजा को फोन लगाए जा रहा था, पर न तो वह अपना फोन उठा रही थी और न ही वापस उसे फोन कर रही थी. लेकिन आज जब उस का फोन बंद आने लगा तो नमन आशंका से भर उठा.

‘‘हैलो आंटी, क्षितिजा कहां है? मैं कल से उसे फोन लगा रहा हूं, पर वह फोन नहीं उठा रही है और आज तो उस का फोन ही बंद आ रहा है. कहां है क्षितिजा?’’

नमन के कई बार पूछने पर भी जब सुमन ने कोई जवाब नहीं दिया तो वह बेचैन हो उठा. बोला, ‘‘आंटी, क्या हुआ सब ठीक तो है?’’

‘‘बेटा, वो...वो... क्षितिजा अस्पताल में...’’ इतना बोल कर सुमन सिसक कर रोने लगीं.

‘‘अस्पताल में?’’ अस्पताल का नाम सुनते ही नमन घबरा गया, ‘‘पर... पर क्या हुआ उसे?’’

फिर सुमन ने जो बताया उसे सुन कर नमन के पैरों तले की जमीन खिसक गई. फिर बोला, ‘‘ठीक है आंटी, आ... आप रोइए मत. मैं कल सुबह की फ्लाइट से ही वहां पहुंच रहा हूं.’’

नमन को देखते ही क्षितिजा के आंसू फूट पड़े. वह उस के सीने से लग कर एक बच्ची की तरह बिलखबिलख कर देर तक रोती रही.

‘‘बस क्षितिजा बस, अब मैं आ गया हूं न... सब ठीक हो जाएगा,’’ उस के आंसू पोंछते हुए नमन बोला.

मगर डर के मारे वह इसलिए नमन को नहीं छोड़ रही थी कि वह दरिंदा फिर उस के सामने न आ जाए. हिचकियां लेते हुए कहने लगी, ‘‘नमननमन उ... उस ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा. उस ने धोखे से मेरे साथ... बोलतेबोलते वह बेहोश हो गई.’’

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