सारी बात सुन कर नमन का खून खौल उठा.
मन तो किया उस का कि अभी जा कर उस नरेश का खून कर दे, पर उस ने अपने गुस्से पर कंट्रोल कर लिया और सोचने लगा कि अगर उस शख्स के खिलाफ पुलिस में शिकायत करे तो वह खबर तुरंत अखबारों और टीवी की सुर्खियां बन जाएगी और तब शायद क्षितिजा और अवसाद में चली जाएगी, हो सकता है बदनामी के डर से वह खुद को ही खत्म कर ले.
लेकिन अगर दोषी को सजा नहीं मिलती है तो भी खौफ में वह जी नहीं पाएगी. क्या शादी के बाद बलात्कार को याद कर वह अपना वैवाहिक जीवन अच्छी तरह जी पाएगी कभी? ‘नहीं, मैं अपनी क्षितिजा को यों घुटघुट कर मरते नहीं देख सकता. मैं इसे इस अवसाद से बाहर निकाल कर ही रहूंगा और इस के लिए चाहे मुझे कुछ भी क्यों न करना पड़े मैं पीछे नहीं हटूंगा, और फिर मन ही मन नमन ने फैसला कर लिया कि अब उसे क्या करना है.
नमन और क्षितिजा कालेज के समय से ही एकदूसरे से प्यार करते थे. उन की शादी से उन के परिवार वालों को भी कोई आपत्ति नहीं थी पर वे दोनों चाहते थे कि जौब लगने के बाद ही शादी के बंधन में बंधे. नौकरी लगते ही वादे के अनुसार दोनों ने शादी करने का फैसला ले लिया. कुछ दिन बाद ही दोनों की सगाई होनी थी और ये सब हो गया.
दिनप्रतिदिन क्षितिजा को और अवसाद में जाते देख उस के मातापिता और नमन बहुत परेशान थे. सब ने अनेक प्रकार से उसे समझाने की कोशिश की, पर उसे तो जैसे काठ मार गया था. न तो वह किसी से ठीक से बात करती थी और न ही ठीक से कुछ खातीपीती थी. दिनबदिन शरीर और कमजोर होता जा रहा था. अंदर ही अंदर टूट रही थी. उस मंजर को याद कर कभीकभी आधी रात में ही उठ जाती और फिर उसे संभालना काफी मुश्किल हो जाता था.
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