Writer- अपूर्वा चौमाल
पिछले दिनों ग्रुप एडमिन ने कुछ नए मैंबर्स ग्रुप में जोड़े थे. स्नेहा उन में से एक थी. जब से वह जुड़ी है, ग्रुप जैसे जिंदा हो गया. दिनभर में कभीकभार ही बजने वाली नोटिफिकेशन की घंटी इन दिनों जबतब टनटनाने लगी थी. स्नेहा का रिप्लाई हरेक पोस्ट पर तो अनिवार्यतया होता ही है, यही नहीं, अपने रिप्लाई के रिप्लाई पर भी वह रिप्लाई जरूर देती है.
‘पता नहीं कितनी ठाली है ये लड़की. इसे कोई कामधंधा नहीं है क्या?’ मनोज जैसे कई लोग शायद यही सोचते होंगे.
लेकिन इस बात से किसी सूरत में इनकार नहीं किया जा सकता कि गजब की लड़की है स्नेहा. कमाल का सैंस औफ ह्यूमर है. हर पोस्ट पर कोई न कोई चुटकी, कुछ न कुछ चटपटा, कोई ऐसा अतरंगा कमैंट कि वह बरबस मुसकराने को विवश कर दे.
‘लेकिन स्नेहा क्या सचमुच कोई लड़की ही है? कोई प्रौढ़ या उम्रदराज महिला भी तो हो सकती है. प्रोफाइल पिक्चर देखने से तो कुछ भी अंदाजा नहीं हो रहा,’ स्नेहा के बारे में जिज्ञासु होता जा रहा मनोज इन दिनों शेरेलक होम्स बना हुआ है. दिनभर में न जाने कितनी दफा स्नेहा के नाम पर टैब कर के देखता है कि कौन जाने किसी समय कोई सुराग मिल ही जाए. मगर स्नेहा भी कहां कच्चे कंचों से खेली थी, जो आसानी से पकड़ में आ जाती. बेशक वह हर दिन अपनी डीपी बदलती थी, लेकिन मजाल है कि किसी एक दिन भी उस का दीदार हुआ हो. हां, तसवीर में लगने वाले फूल जरूर हर दिन अलग होते हैं. कभी कली, कभी खिलता फूल तो कभीकभी भरपूर खिले हुए फूलों का गुच्छा.
इन फूलों के आधार पर ही मनोज उस की उम्र का अंदाजा लगाने की कोशिश करता रहता, लेकिन जासूसी की कसम… कभी किसी सटीक निर्णय पर वह नहीं पहुंच सका. किसी दिन वह उसे कली सी कमसिन युवती तो अगले ही दिन खिले फूल सी भरपूर महिला महसूस होती और कभी लगती किसी पुष्प गुच्छ सी, जिंदगी का भरपूर अनुभव लिए उम्रदराज महिला सी.
‘पता नहीं, लोग डीपी में अपनी खुद की तसवीर क्यों नहीं लगाते,’ झुं झलाता हुआ मनोज सिर पटक कर रह जाता, लेकिन स्नेहा का दीदार नहीं पा सका.
एक बार दिल ने कहा भी कि हथियार डाल कर सीधेसीधे ग्रुप एडमिन से पूछ ही लो न, या फिर कर लो वीडियोकौल. एक ही झटके में सब बेपरदा हो जाएगा. लेकिन जो मजा खुद पतीली चढ़ा कर पकाने में है, वह परोसी हुई थाली खाने में कहां?
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‘स्नेहा की पहेली तो मैं खुद ही सुल झाऊंगा और वह भी बिना किसी की मदद के,’ मनोज ने मन ही मन ठान लिया. ठानने को तो उस ने ठान लिया, लेकिन अब बात आगे कैसे बढ़े. इसलिए एक दिन उस ने डरतेडरते, हिम्मत करतेकरते स्नेहा के एक कमैंट पर कंटीला सा कमैंट कर दिया. स्वभाव के अनुसार तुरंत स्नेहा हाजिर थी.
‘‘जे बात, क्या करारा जवाब आया है. तबीयत तर हो गई. जियो बंधु,’’ स्नेहा ने चटक मूड में मनोज के जवाब को झटक दिया और इस के साथ ही मनोज को पटक भी दिया. मनोज की हिम्मत बढ़ी. उस ने स्नेहा की इसी रिप्लाई को लक्ष्य करते हुए उसे व्यक्तिगत नंबर पर स्माइली वाले 2 स्टिकर मय आभार भेज दिए.
लेकिन हाय रे, उसे अपने व्यक्तिगत कमैंट का कोई व्यक्तिगत जवाब न मिला. मनोज जरा सा निराश हुआ. हां… हां, जरा सा ही. लेकिन निराश ही हुआ, हताश नहीं.
अब पहली पटकनी पर ही मैदान छोड़ने वाले भी कभी सफल जासूस बन सके हैं भला? मनोज ने भी निराशा को परे झटक दिया और उम्मीद की टौर्च जला कर स्नेहा को सोशल मीडिया पर तलाश करने लगा.
गूगल पर ‘स्नेहा’ नाम सर्च करते ही
सैकड़ों लिंक स्क्रीन पर दिखने
लगे. हर उम्र की स्नेहा अपने हर रूप में वहां मौजूद थी.
यह देख मनोज चकरा गया. सरनेम और शहर के फिल्टर भी डाल कर देखे, लेकिन सूची पर कुछ विशेष कैंची
नहीं चली.
‘इन में मेरी वाली कौन सी है,’ मनोज ने कान खुजाया. वह स्नेहा को तो नहीं पहचान पाया, लेकिन ‘मेरी’ शब्द दिमाग में आते ही उस के दिल की धड़कन एकाएक बढ़ गई. अभी यदि ईसीजी की जाए तो निश्चित रूप से डाक्टर कंफ्यूज होगा ही होगा. कुछ दिन दिल को आराम करने की सलाह के साथ धड़कन पर काबू पाने वाली दवा भी सु झा दे तो कोई आश्चर्य नहीं.
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‘बातों से तो यह 25-30 साल की लगती है. इस से कमसिन उम्र होती तो इस ग्रुप में न होती और यदि उम्रदराज होती तो इस की बातों में भी अनुभव वाली गंभीरता होती. हो सकता है कि
40 के आसपास हो,’ मनोज की अपनी सम झ के अनुसार लगते कयास अपने चरम पर थे, लेकिन अभी तक स्नेहा की उम्र का स्थायी आकलन नहीं हो पाया था.
यह एक रचनाधर्मियों का ग्रुप है जिस में 200 से अधिक नएपुराने, नौसिखिए व अनुभवी लेखक, साहित्यकार, गायक, चित्रकार और रंगकर्मी जैसे सृजनशील लोग जुड़े हुए हैं. इन में से अधिकांश तो देश के ही विभिन्न शहरोंराज्यों से हैं, कुछ प्रवासी भी हैं. सब लोग यहां अपनी रचनात्मकता सा झा करते रहते हैं. कभी अपना कोई नया सृजन तो कभी कोई अन्य उपलब्धि भी.