Social Interest :
बढ़िया अंक
नवंबर (द्वितीय) अंक पढ़ा. इस अंक में प्रकाशित कहानी ‘जीवनज्योति’ मन को छू गई. इस के लेखक को साधुवाद. जहां तक लेख की बात है, सभी
लेख एक से बढ़ कर एक थे. स्थायी स्तंभ ‘इन्हें आजमाइए’, ‘पाठकों की समस्याएं’ भी काबिलेतारीफ थीं. इतना अच्छा अंक प्रस्तुत करने के लिए संपादन मंडल को बधाई. - हर ज्ञान सिंह सुथार हमसफर
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शानदार अंक
नवंबर (द्वितीय) अंक में अग्रलेख, ‘पलायन की त्रासदी’ बहुत सही लिखा गया है. बिहार में रोजगार की कमी है, इसलिए लोग पलायन कर रहे हैं और पलायन करने वाले ज्यादातर गरीब तबके के लोग ही होते हैं.
इस के अलावा लेख, ‘पति की मनमानी कब तक बर्दाश्त करें’ भी बहुत सटीक लिखा गया है. चाहे पत्नी पढ़ी-लिखी जॉब करने वाली हो या हाउसवाइफ, पति की मनमानी उसे सहनी पड़ती है. घर न टूटे, इसलिए पत्नियां पति की मनमानियां सहती जाती हैं.
कहानी ‘मकसद’ बहुत अच्छी लगी. सच में, दूसरे देशों में अगर अपने देश के लोग मिल जाएं तो मन खिल उठता है. - मिनी सिंह
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बच्चों के मुख से
हमारे पड़ोसी का 6 साल का बेटा ईशु बहुत चंचल व हाजिरजवाब है. एक बार हम लोग उस के जन्मदिन पार्टी में गए. वहां उस से कुछ बच्चों न पूछा, ‘‘तुम्हारा स्कूल आईसीएसई या सीबीएससी बोर्ड है?’’
उस ने तपाक से कहा, ‘‘मेरे स्कूल में ये दोनों नहीं, बल्कि ब्लैकबोर्ड है.’’
उस की बात सुनते ही हम सब लोगों का हंसते-हंसते बुरा हाल हो गया. - डी के श्रीवास्तव
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सर्दी में मैं अपने मायके गई. वहां मेरी भतीजी भी अपनी 4 साल की बेटी नूरी के साथ आई हुई थी.
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