Section 13B Law : वो जमाना बीत गया जब शादी जन्म जन्मांतर का बंधन हुआ करती थी. पुराने विवाह संस्था में बराबरी नहीं थी. औरतें झेलती थीं क्योंकि उन्हें मानसिक तौर पर झेलने और सहने के लिए तैयार किया जाता था. औरतों की मानसिक गुलामी में धर्म बहुत बड़ी भूमिका निभाता था. तमाम धार्मिक कहानियों में नारी को अबला, कमजोर और बेवकूफ ही दिखाया गया. विवाह ऐसी संस्था थी जिसमें औरतों के लिए इस से बाहर निकलने का कोई विकल्प ही नहीं था. पति की मौत के बाद भी वह पति की दासी ही मानी जाती थी और आजीवन विधवा बन कर जिंदगी गुजार देती थी. न तो तलाक की कोई व्यवस्था थी और न ही विधवा को दूसरी शादी की इजाजत थी.
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के बाद कानूनी रूप से औरतों को विवाह नामक संस्था में बराबरी का दर्जा हासिल हुआ. इस कानून में सब से बड़ी बात यह थी की अब औरत भी तलाक ले सकती थी लेकिन यह इतना भी आसान नहीं था. तलाक के लिए वाजिब कारण साबित करना पड़ता था. अगर पति तलाक न देना चाहे तो औरत को मजबूरन शादी में बंधे रहना पड़ता था. इंदिरा गांधी ने हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की इस खामी को दूर करने के लिए इस कानून में संशोधन करवाया जिस से तलाक का रास्ता पहले से आसान हो गया.
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 में इंदिरा गांधी की सरकार के दौरान 1976 में संशोधन हुआ और इस अमेंडमेंट में 13बी को जोड़ा गया. अगर पति और पत्नी साथ न रहना चाहें तो 13बी के तहत अलग हो सकते हैं. लेकिन इस में भी एक समस्या थी. 13बी के तहत तलाक लेने में तकरीबन डेढ़ साल का समय लगता था. एक साल अलग रहने और उस के बाद 6 महीने का कूलिंग-ऑफ-पीरियड. जो शादी टूट चुकी हो उस में यह डेढ़ साल का वक़्त दोनों पक्ष के लिए बेहद भारी पड़ता था.
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